शकुनी को लंगड़ा किसने किया था?

आज हम महाभारत के एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करेंगे जिन्हें महाभारत के युद्ध के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है। दोस्तों महाभारत पढ़ते हुए या टीवी पर देखते हुए हमें उसमें कई गलतियां नजर आती हैं जिनके कारण महाभारत का युद्ध हुआ था।

इसमें कई ऐसे शख्स थे जिनकी वजह से यह युद्ध हुआ लेकिन इसमें से सबसे बड़ा खलनायक शकुनी को माना जाता है। यह वही शकुनी है जो लंगड़ा कर चलता था और अपनी एक आंख तिरछी करके अपने भांजे दुर्योधन को पांडवों के खिलाफ भड़काता रहता था।

इसी शकुनि की वजह से कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ था। ऐसा भी माना जाता है कि शकुनि ने अपनी बहन गांधारी के हंसते खेलते संसार को बर्बाद कर दिया था। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि शकुनि की मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी।

तो आज हम आपको बताएँगे कि शकुनी को लंगड़ा किसने किया था और उसके पासो का क्या राज़ था?

शकुनी को लंगड़ा किसने किया था और मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग प्राप्त क्यों हुआ था?

शकुनी को लंगड़ा किसने किया था?

कौरवों के शातिर मामा जिन्हे सब शकुनि के नाम से जानते हैं, वह गंधार राज सुबल का पुत्र था। राजा सुबल की कई रानियां और कई पुत्र थे जिनमें से शकुनी और गांधारी रानी सुधर्मा की संताने थी।

शकुनी शांत एवं बुद्धिमान राजकुमार था और राजकुमारी गांधारी विश्व की सबसे सुंदर स्त्री थी और उन्हें भगवान शिव की आराधना करने पर सौ पुत्र प्राप्त करने का वरदान प्राप्त था। उस समय हस्तिनापुर सबसे बड़ा साम्राज्य था, लेकिन हस्तिनापुर का सिंहासन हमेशा खाली रहता था और भीष्म पितामह ही हस्तिनापुर के सिंहासन की रक्षा करते थे।

कैसे हुआ गांधारी और धृतराष्ट्र का विवाह?

एक दिन भीष्म पितामह अपनी विशाल सेना लेकर गांधार के लिए निकल पड़े। जब गांधार राज सुबल ने भीष्म पितामह से शांति समझौता करना चाहा तब भीष्म ने धृतराष्ट्र के लिए सुबल पुत्री गांधारी का हाथ मांग लिया क्योंकि वह जानते थे कि गांधारी को सौ पुत्र प्राप्त करने का वरदान है और उस समय हस्तिनापुर को अपने उत्तराधिकारी की जरूरत है।

गांधारी मांगलिक थी इसलिए पहले उसका विवाह बकरे के साथ करवाया गया था, जिसकी बाद बकरे की बलि दे दी गई थी। उसके बाद गांधारी का दूसरा विवाह धृतराष्ट्र से हुआ था।

शकुनी को लंगड़ा किसने किया था और उसके पासो का क्या राज़ था?

जब गांधारी के पहले विवाह के बारे में भीष्म पितामह को पता चला, तो उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और उसके परिणाम स्वरूप राजा सुबल के पूरे परिवार को कारावास में डाल दिया। कारावास में केवल एक व्यक्ति लायक ही भोजन मिलता था जिससे धीरे-धीरे सभी की मृत्यु होने लगी। ऐसा भी माना जाता है कि शकुनि को जिंदा रहने के लिए अपने मरे हुए भाई का मांस खाना पड़ा था।

जब राजा सबल की मृत्यु होने वाली थी, तो उन्होंने शकुनी को अपने पास बुला कर कहा कि मेरी मृत्यु के पश्चात तुम मेरी हड्डियों से जुआ खेलने के लिए पासे बना लेना और यह पासे तुम्हारे मन मुताबिक ही चलेंगे।

फिर राजा सुबल ने एक लाठी से शकुनि का दाया पैर बेरहमी से घायल कर दिया और उसे लंगड़ा बना दिया। राजा सुबल ने शकुनि के साथ ऐसा इसलिए किया ताकि शकुनी का लंगड़ा पैर उसे हमेशा बदला लेने का स्मरण करवाता रहे और कुरुवंश का अंत करना ही उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन जाए।

जब राजा सुबल अपनी आखिरी सांसे गिन रहे थे तब उन्होंने भीष्म पितामह से मिलने की इच्छा प्रकट की और उन्हें मिलने के लिए बुलाया। फिर राजा सुबल ने भीष्म से हाथ जोड़कर विनती की कि उनके केवल एक पुत्र शकुनी को जीवन दान दे दिया जाए। शकुनी लंगड़ा होने के कारण अब कोई हानि नहीं पहुंचा सकता था इसीलिए भीष्म ने लंगड़े शकुनी को जीवनदान दे दिया।

कैसे हुई थी शकुनि की मृत्यु?

कहते हैं उस समय भगवान कृष्ण के बाद शकुनी ही सबसे ज्यादा बुद्धिमान था। वह अपनी माता-पिता की मृत्यु के बाद अपनी बहन गंधारी के साथ ही रहने लगा।

महाभारत के युद्ध के आखिरी दिन शकुनी और सहदेव के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें सहदेव ने कुल्हाड़ी से शकुनी को मार दिया। भले ही शकुनि की मृत्यु हो गई थी लेकिन उसने जीवित रहते हुए अपने परिवार की मृत्यु का बदला पूरे कुरु वंश का विनाश कर के ले लिया था।

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