अंतिम संस्कार के समय मृतक के सर पर 3 बार डंडा क्यों मारते है?

जब जलते हुए शव के सर पर डंडा मारा जाता है, तो उस क्रिया को कपाल क्रिया कहते हैं। परंतु आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि क्या कपाल क्रिया करना आवश्यक है? और हिंदू धर्म में इस क्रिया का क्या महत्व बताया गया है?

आज हम जानेंगे कि कपाल क्रिया के पीछे क्या तर्क है? और हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार अंतिम संस्कार के समय मृतक के सर पर 3 बार डंडा क्यों मारते है?

अंतिम संस्कार के समय मृतक के सर पर 3 बार डंडा क्यों मारते है?

कपाल क्रिया क्या है और कपाल क्रिया क्यों की जाती है?

हिंदू धर्म के अनुसार जन्म से लेकर मुत्यु तक 16 संस्कार होते हैं। जिसमें से दाह संस्कार को अंतिम संस्कार भी कहा जाता है। अंतिम संस्कार के दौरान एक मृत शरीर को जलाकर इस दुनिया से विदा कर दिया जाता है। अंतिम संस्कार के दौरान भी कई तरह की रस्में निभाने का प्रावधान है, जैसे कि सिर मुंडवाना, मृत शरीर के चारों तरफ चक्कर लगाना और जलती चिता में मृत शरीर के कपाल यानी सिर को डंडे से फोड़ना।

हम में से बहुत से लोग ऐसे होंगे जो कि कपाल क्रिया के बारे में जानते ही नहीं होंगे, परंतु हिंदू धर्म ग्रंथों में कपाल क्रिया के कई कारण बताए गए हैं।

कपाला मोक्षम की विधि

शास्त्रों के अनुसार एक मनुष्य के शरीर में 11 द्वार होते हैं। माना जाता है कि जीव आत्मा मस्तिष्क के द्वार से शरीर में प्रवेश करती है, परंतु यह आत्मा व्यक्ति के कर्मों के आधार पर इन सभी द्वारों में से एक द्वार के माध्यम से शरीर से निकलती है।

मस्तिष्क द्वार को शरीर में मौजूद 11 द्वारों में से सबसे उच्च माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो आत्मा सिर से निकलती है वह मोक्ष प्राप्त करने में सफल होती है और जन्म व मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है। इस विधि को ‘कपाला मोक्षम’ भी कहा जाता है परंतु ऐसा मोक्ष बिना किसी गुरु के मार्गदर्शन के प्राप्त करना कठिन है। मरने वाले व्यक्ति के लिए मोक्ष की कामना करते हुए, मृतक के रिश्तेदार उसके सिर या कपाली पर डंडे से मारते हैं।

आत्मा का दुरपयोग होने से बचाने के लिए

जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो सिर को डंडे से मारकर इसलिए फोड़ा जाता है क्योंकि तंत्र विद्या करने वाले लोग मृतक के सिर का दुरपयोग कर सकते हैं।

बहुत से दुष्ट तांत्रिक शमशान से कपाल इखट्टे कर लेते है। इसी कपाल द्वारा मृत इंसान की आत्मा को प्रेत बनाकर ये तांत्रिक अपने काम निकलते हैं, इसीलिए अघोरियों ने इस दुष:क्रिया को रोकने के लिए यह प्रथा बनाई कि मृत्यु के बाद सभी की कपाल क्रिया कर दी जाए। जब कपाल ही नहीं रहेगा तो उससे कोई दुष:क्रिया नहीं हो पाएगी।

यह कारण किसी को बताया नहीं जाता, अन्यथा कोई इसे मानेगा नहीं। परंतु समय-समय पर ऐसा देखा गया है कि अच्छी आत्माओं को भी प्रेत बना कर उनसे गलत कार्य करवाये जाते है, इसलिए यह क्रिया करनी जरूरी है।

मृतक के सर पर 3 बार डंडा क्यों मारते है?

सिर पर तीन बार डंडा मरना एक तरह की रस्म है। एक बार जब चिता जल जाती है तब मुखाग्नि देने वाला, बांस के डंडे से मृत व्यक्ति की खोपड़ी पर 3 बार मारता है। तीन बार मारने के पीछे यह कारण है कि एक बार में कपाली/खोपड़ी आसानी से नहीं टूटती है इसलिए तीन बार मारते हैं। जब उस कपाली को डंडे से मारकर तोड़ा जाता है तो चिता की गर्मी की वजह से वह खोपड़ी जल्दी टूट जाती है।

शास्त्रों में लिखा गया है कि शरीर नश्वर है अर्थात वह मरता है लेकिन आत्मा कभी नहीं मरती। किसी व्यक्ति के मरने के बाद आत्मा तुरंत किसी अन्य गर्भ में प्रवेश कर लेती है। कहते है कि जब कोई आत्मा शरीर को छोड़ती है तो वह पूरी तरह धरती को छोड़ नहीं पाती है और कुछ दिन अपने प्रियजनों के पास रहती है।

आशा करती करते है कि आपको हमारी आज की यह जानकारी अच्छी लगी होगी | धन्यवाद |

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