कर्म बड़ा या भाग्य: हम में से बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि भाग्य कुछ नहीं होता और हर व्यक्ति अपना भाग्य, कर्मों के माध्यम से बनाता है। दूसरी ओर भाग्यवादी लोग कहते हैं कि किस्मत में जो कुछ लिखा होता है वही मिलता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कर्म और भाग्य के 2 बिंदुओं की धुरी पर घूमते रहते हैं और इसी तरह एक दिन इस संसार से चले जाते हैं।
आज हम जानेंगे कि कर्म बड़ा या भाग्य।
यह कहावत तो हम सबने सुनी ही होगी कि जैसा बीज बोओगे, वैसा फल पाओगे। उस बीज में भाग्य है या दुर्भाग्य, यह तो हमारे द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कर्मों के आधार पर ही तय होता है।
अगर आप अच्छे कर्म करते हैं तो आप भाग्यशाली होंगे और बुरे कर्म करेंगे तो आपको दुर्भाग्य का सामना करना पड़ेगा।
कर्म बड़ा या भाग्य?
कर्म और भाग्य में से किसे बड़ा माना जाए, इसका सही और सटीक उत्तर भगवद गीता में पाया जाता है। चलिए भाग्य और कर्म को अच्छे से समझने के लिए इसे एक कहानी के माध्यम से समझते हैं।
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देवर्षि नारद जी का भगवान विष्णु से कर्म को लेकर प्रश्न
एक बार देवर्षि नारद जी बैकुंठ धाम गए, वहां उन्होंने भगवान विष्णु को नमन किया। नारद जी ने श्री हरि से कहा, ‘‘प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा, जो व्यक्ति पाप कर रहे हैं उन्ही का भला हो रहा है।’’
तब श्री हरि ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है देवर्षि जो भी हो रहा है सब नियति के जरिए हो रहा है।’’
नारद जी बोले, ‘‘मैं तो देखकर आ रहा हूं प्रभु, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।’’
फिर नारद जी ने भगवान विष्णु को बताया कि वह अभी एक जंगल से आ रहे थे और वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था। तभी एक चोर वहां से गुजरा पर वह गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका, वह उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर आगे बढ़ गया। आगे जाकर चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली।
थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु जा रहे थे। उन्होंने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश और पूरे शरीर का जोर लगाते हुए उस गाय को बचा लिया। लेकिन गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु जब आगे गए तो एक गड्ढे में गिर पड़े।
नारद जी ने श्री हरि से कहा, ” प्रभु! यह कैसा न्याय हुआ?”
नारद जी की बात सुनने के बाद भगवान बोले, “यह सही ही हुआ क्योंकि उस चोर की किस्मत में तो खजाना था लेकिन उसके पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं। वहीं, उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटे से हादसे में बदल गई।”
यह बात पूरी तरह सत्य है कि इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। इंसान को अच्छे कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि कर्मों से भाग्य बदला जा सकता है।
दोस्तों सही बात तो यह है कि कर्म भाग्य को अपनी तरफ आकर्षित करता है। हम जितने अच्छे कर्म करेंगे उतना ही हमारा भाग्य उदय होता रहेगा। असल में भाग्य हमारे कर्मों का ही परिणाम होता है परंतु यदि भाग्य के भरोसे बैठकर कोई कर्म करने से झिझकता है तो समझ लीजिए उस व्यक्ति ने पीड़ा और परेशानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है।
भगवद गीता में भी कर्म और भाग्य को लेकर यही संदेश दिया गया है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि तुम्हारे कर्मों पर तुम्हारा अधिकार है परंतु कर्म के फल पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं, इसीलिए फल के प्रति आसक्त हुए बिना अपना कर्म करते रहो।
आज के लिए इतना ही, आशा करते है आपको हमारी आज की यह प्रस्तुति पसंद आई होगी | नमस्कार।