जब दुर्योधन ने देखा कर्ण को अपनी पत्नी के साथ: महाभारत के बारे में तो हम सब जानते ही हैं। दुर्योधन को महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा खलनायक माना जाता है। वह हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के 100 पुत्रों में से सबसे बड़ा पुत्र था। दुर्योधन किसी भी कीमत पर हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठना चाहता था।
उसे विश्वास था कि आगे चलकर वही अपने राज्य का कार्यभार संभालेगा, लेकिन अपने कुकर्मों और अधर्म के चलते वह और कौरवों की पूरी सेना महाभारत के युद्ध में पांडवो से जीत नही पाई। जिसके फल स्वरूप दुर्योधन के मनसूबे कामयाब नहीं हो पाए।
हम आपको दुर्योधन के जीवन से जुड़ा एक अहम किस्सा बताने जा रहे है, जिसके बारे में बहुत काम लोग ही जानते होंगे।
दुर्योधन का जन्म
जब दुर्योधन का जन्म हुआ था तब महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र को दुर्योधन की हत्या करने का परामर्श दिया था । उनका मानना था कि यदि दुर्योधन जीवित रहा तो वह पुरे कुल यानी कि पूरे कुरु-वंश का सर्वनाश लेकर आयेगा ।
लेकिन धृतराष्ट्र को महर्षि वेदव्यास जी की यह बात उचित नहीं लगी और उन्होंने अपने पहले पुत्र दुर्योधन को जीवन जीने का अधिकार दिया, इसी कारणवश आगे चलकर महाभारत का युद्ध भी हुआ था।
ऐसा माना जाता है कि दुर्योधन अपने मित्र कर्ण पर आँख बंद करके भरोसा करता था क्योंकि महाभारत में केवल कर्ण ही था जो कि दुर्योधन को पांडवो के हाथो से बचा सकता था ।
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दुर्योधन का भानुमति से विवाह
दोस्तों दुर्योधन के विवाह से जुड़ी भी एक कथा है। दरअसल एक बार कम्बोज महाजनपद के राजा ने अपनी बेटी भानुमति का स्वयंवर आयोजित किया था। इस स्वयंवर में दुर्योधन को भी आमंत्रित किया गया था। पहले तो वह स्वयंवर में जाने के लिए तैयार नहीं था परंतु जब उसे पता चला कि भानुमति बहुत रूपवान है और किसी अप्सरा से कम नहीं है, तब दुर्योधन स्वयंवर में जाने के लिए तैयार हो गया।
उसने स्वयंवर में जाकर देखा कि भारतवर्ष के सभी ताकतवर राजा एवं राजकुमार वहां मौजूद थे। इन सभी राजाओं व राजकुमारों में दुर्योधन और कर्ण के अलावा जरासंध, रुक्मी, और शिशुपाल भी थे | स्वयंवर के नियमो के अनुसार राजकुमारी को स्वयं अपना वर चुनना होता था । जब वरमाला पहनने की बारी आई तो भानुमति दुर्योधन के नजदीक से गुजर गयी, परंतु उसने दुर्योधन के गले में वरमाला नहीं पहनाई ।
दुर्योधन ने इसे अपने अपमान के रूप में देखा और इस अपमान को वह सह नहीं पाया । उसने कर्ण के बाहुबल से भानुमति से विवाह कर लिया और उसे लेकर हस्तिनापुर चला आया ।
दुर्योधन अपनी पत्नी भानुमति से बहुत प्रेम करता था और जब वह आखेट पर जाता था तो भानुमति को साथ लेकर जाता था ।
क्या हुआ जब दुर्योधन ने देखा कर्ण को अपनी पत्नी के साथ?
कुछ ही समय में कर्ण और भानुमति के बीच भी अच्छी मित्रता हो गयी ।
एक बार कर्ण ने दुर्योधन की अनुपस्थिति में भानुमति के कक्ष में प्रवेश कर लिया और उसके साथ चौसर खेलने लगा। अचानक किसी के कदमो की आहट सुनकर भानुमति को अहसास हुआ कि दुर्योधन कक्ष की ओर आ रहा है। इतने में ही भानुमति चौसर से खड़ी हो गयी लेकिन कर्ण को लगा कि भानूमती हारने की वजह से उठ गयी है ।
ऐसा सोचते हुए कर्ण ने भानूमती का हाथ पकड़कर उसे पुनः अपने पास बैठाने की कोशिश की । ऐसा करने के दौरान कर्ण की भुजा में जड़ित माला टूट गयी और तभी दुर्योधन उनके सामने आ गया ।
कर्ण और भानूमती ने सोचा कि अब दुर्योधन उन दोनों पर शक करेगा, परंतु उसने ऐसा नहीं किया । दुर्योधन दुनिया में केवल तीन ही व्यक्तियों पर विश्वास करता था – उसके मामा शकुनि, मित्र कर्ण और अपनी सुन्दर पत्नी भानुमति । उसने कक्ष में आकर कर्ण से कहा कि “मित्र, अपनी माला संभालो।” ऐसा कह कर वह तुरंत वहां से चला गया ।
कर्ण और भानूमती का रिश्ता
हालाकि कुछ दन्तकथाये यह भी कहती है कि कर्ण और भानूमती का रिश्ता पवित्र नहीं था, लेकिन ऐसी किसी भी बात का प्रमाण महाभारत में नही मिलता, तो इस बात को नकारा जा सकता है।
दुर्योधन का यह विश्वास देखकर कर्ण भावुक हो गया और बाद में उसने अपने मित्र दुर्योधन से पुछा कि “तुमने मुझ पर शक क्यों नहीं किया मित्र?”
दुर्योधन ने उत्तर देते हुए कहा कि, “दुनिया में तुम्ही तो ऐसे व्यक्ति हो जिस पर मैं आँख मूंदकर विश्वास कर सकता हूँ।” यह सुन कर कर्ण ने वचन लिया कि एक दिन वह पांडवो के खिलाफ इतना भयंकर युद्ध करेगा कि सारा विश्व याद रखेगा।
आज के लिए इतना ही, आशा करते है आपको हमारी आज की यह पोस्ट पसंद आई होगी | नमस्कार।