कौन हैं ब्रह्मा विष्णु महेश के पिता?

कौन हैं ब्रह्मा विष्णु महेश के पिता?: आज हम भारतीय इतिहास के एक ऐसे विषय पर चर्चा करेंगे जिसको लेकर अक्सर लोगों के बीच संशय बना रहता है।

क्या आप जानते हैं कि ब्रह्मा विष्णु महेश के आराध्य या उनके पिता कौन हैं?

कौन हैं ब्रह्मा विष्णु महेश के पिता?

कौन हैं ब्रह्मा विष्णु महेश के पिता?


अंग्रेजी में भगवान को कहा जाता हैं God

  • G – Generator (स्थापक)
  • O – Operator (पालनाहार)
  • D – Destructor (विनाशकारी)

हिंदी में इसे ही भगवान कहा जाता है। परमात्मा अपना दिव्य कर्तव्य तीन देवताओं के माध्यम से कराते हैं।

  • ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना
  • विष्णु द्वारा नई दुनिया की पालना
  • महेश के द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश।

भगवत गीता के अनुसार परमात्मा

गीता में वर्णित है कि परमात्मा ने हम सबसे वादा किया है कि जब-जब धरती पर धर्म की ग्लानि चरम सीमा लांघेगी तब-तब मैं अधर्म का विनाश करने और सतधर्म की पुनर्स्थापना करने इस धरा पर अवतरित होऊंगा।

इसके अलावा गीता में यह भी वर्णित है कि परमात्मा निराकार हैं, परमात्मा का जन्म दिव्य अलौकिक है। वह माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते।

परमात्मा जब अपने किए वायदे के अनुसार धर्म की ग्लानि चरम सीमा पर पहुंचने पर इस धरा पर अवतरित होते हैं। तब परमात्मा स्थापना, पालना और विनाश रूपी दिव्य कर्तव्य, इन तीनो ही देवताओं ब्रह्मा विष्णु महेश के माध्यम से कराते हैं।

शिव और शंकर(महेश) में क्या अंतर है?

अक्सर शिव और शंकर को एक समझा जाता है, पर आज हम जानेंगे शिव और शंकर में अंतर

  • शिव निराकार ज्योति बिंदु परमात्मा हैं। जबकि शंकर शरीरधारी देव आत्मा हैं।
  • शिव सृष्टि के सर्व मनुष्य आत्माओं के पिता हैं। ब्रह्मा विष्णु महेश एक तरह से देखा जाए तो शिव के पुत्र हैं क्योंकि शिव सर्व मनुष्य आत्माओं और देव आत्माओं के पिता हैं।
  • शिव रचयिता हैं। जबकि ब्रह्मा विष्णु महेश रचना हैं। इन त्रिदेव के रचयिता परम पिता परमात्मा शिव हैं।
  • शिव परमात्मा हैं जबकि ब्रह्मा विष्णु महेश देव आत्मा हैं।
  • शिव सृष्टि के आदि, मध्य, अंत के ज्ञाता हैं, ज्ञान के सागर हैं। जबकि ब्रह्मा में सृष्टि के आदि अर्थात स्थापना का ज्ञान है, विष्णु में नई दुनियां के पालना का ज्ञान है। तो वहीं शंकर में सृष्टि के अंत अर्थात विनाश का ज्ञान है।
  • शिव निराकार ज्योति बिंदु अशरीरी हैं। ब्रह्मा विष्णु महेश का शरीर होता है।

जब यह दुनियां पुरानी हो जाती है, जब चारों ओर पापाचार, भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच जाता है। तब परमात्मा शिव देव आत्मा शंकर के द्वारा पुरानी दुनियां का विनाश कराते हैं, इसलिए कहा जाता है शंकर जी का त्रिनेत्र खुलने पर पुरानी दुनियां का विनाश होता हैं और परमात्मा शिव साथ ही साथ देव आत्मा ब्रह्मा के द्वारा नई दुनियां की स्थापना का कार्य करते हैं।

नई सृष्टि के स्थापना के लिए परमात्मा शिव जो कि ज्योति बिंदु निराकार स्वरूप हैं। वह स्वयं ब्रह्मा के तन में अवतरित होते हैं और ब्रह्मा के मुख से दिव्य अलौकिक गीता ज्ञान सुनाते हैं।

पुरानी दुनिया में सर्व मनुष्य आत्माओं के संस्कार नकारात्मक होते हैं। गीता ज्ञान को अपने जीवन में आत्मसात करने से कलयुग के नकारात्मक संस्कारों से ग्रस्त साधारण मनुष्य आत्माओं के दिव्य-दैवीय गुण जागृत होते हैं। वहीं गीता ज्ञान से कलयुगी मनुष्य आत्माओं के आसुरी अवगुण का नाश होता है।

जितना मनुष्य आत्मा के दिव्य दैवीय गुण जागृत होते जाते हैं उनके विचार, वाणी, कर्म में दिव्यता आती जाती है, जिसके फलस्वरूप यह कलयुगी भ्रष्टाचारी सृष्टि का रूपांतरण सतयुगी श्रेष्ठाचारी सृष्टि में हो जाता है।

गीता ज्ञान किसी जाति या धर्म विशेष के लिए नहीं है बल्कि गीता ज्ञान तो जगत के सर्व मनुष्य आत्माओं के संस्कारों में परिवर्तन के माध्यम से पुरानी दुनियां को नया बनाने का एक साधन है।

जब निराकार ज्योति बिंदु परमात्मा शिव, ब्रह्मा के शरीर में अवतरित होकर गीता ज्ञान का उच्चारण करते हैं। तो जो मनुष्य आत्माएं इस ज्ञान को धारण कर सृष्टि में ज्ञान के विस्तार करने के निमित्त बनती हैं, वह कहलाते हैं ब्रह्मा के सहयोगी हाथ ब्राह्मण जिसको ही ब्रह्मा के शरीर में चार हाथ के प्रतीक के रूप में दिखाया जाता हैं।

वहीं हम देखते हैं ब्रह्मा के तस्वीरों में उनके चार मुख दिखलाए जाते हैं जिसके पीछे आध्यात्मिक रहस्य यह कि ब्रह्मातन में अवतरित होकर जब परमात्मा शिव जो गीता ज्ञान सुनाते हैं। गीता ज्ञान को विश्व के कोने-कोने में ब्राह्मणों के माध्यम से चारों दिशा में पहुंचाया जाता है। चूंकि यह ज्ञान विश्व के चारों दिशा में फैलता है तो इसे ही दर्शाने के लिए ब्रह्मा के चार मुख दिखलाए जाते हैं।

पूर्ण रूप से सृष्टि का अंत कभी भी नहीं होता, केवल परिवर्तन होता है।

यह सृष्टि नई से पुरानी बनती हैं। फिर वही पुरानी दुनिया को गीता ज्ञान द्वारा परिवर्तन कर नई दुनियां बनाई जाती हैं।

जिस तरह बीज से झाड़ बनता है फिर झाड़ बड़ा होता है झाड़ का विनाश होता है फिर बीज से नया झाड़ बनता है ठीक उसी तरह जब पुरानी दुनियां का भगवान शंकर के द्वारा विनाश होता है तब प्रकृति के पांच तत्व और मनुष्य आत्माओं के खुद के पांच विकार मनुष्य आत्माओं को घेर लेते हैं और धीरे-धीरे पुरानी दुनिया का विनाश प्राकृतिक आपदाओं, घर-घर कलह क्लेश, देश-देश में लड़ाई, परमाणु हथियार के माध्यम से होता है।

हर बार महाविनाश उपरांत कुछ मनुष्य आत्माएं भारत की भूमि पर जीवित बच जाती हैं, क्योंकि वह गीता ज्ञान के माध्यम से प्रकृतिजीत बन चुकी होती है। उनके दिव्य दैवीय गुण जागृत हो चुके होते हैं।

जब सृष्टि पर से सभी भ्रष्टाचारी मनुष्य आत्माएं खत्म हो जाती हैं तब श्रेष्ठाचारी युग, नवयुग, दैवीय युग का आरंभ होता है। जिसे ही कहा जाता है स्वर्ग, जन्नत, पैराडाइज या हेवेन। 

भारत भूमि पर जब देवी-देवताओं का वास होता है तब यह भारत स्वर्ग होता हैं जहां सर्व गुण संपन्न देवी-देवता वास करते हैं। सोने के महल होते हैं, अथाह हीरे, जवाहरात होते हैं इसलिए तब के भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता है।

भारत में जब स्वर्ग होता है तब नवयुग, दैवीय युग के विश्व महाराजन विष्णु होते हैं। लक्ष्मी और नारायण के संयुक्त स्वरूप को विष्णु कहा जाता है, इसलिए प्रतीक के तौर पर विष्णु के चार हांथ दिखलाए जाते हैं। जिसका अर्थ यह है कि लक्ष्मी और नारायण दैवीय युग के विश्व महाराजा और विश्व महारानी होते हैं। जिसके द्वारा नई दुनियां के प्रजा की पालना होती है, इसलिए लक्ष्मी-नारायण को पालनहार कहते हैं।

जैसे आज प्रधानमंत्री एक पद का नाम है। वैसे ही “विष्णु’ दैवीय युग के विश्व महाराजा और “लक्ष्मी” विश्व महारानी के पद का नाम है। उस पद में जो भी विश्व महाराजा व विश्व महारानी के रूप में पदासिन होता है। उस राजा रानी के जोड़े को कहा जाता है “विष्णु’

तो दोस्तों आज हमने समझा कि परमात्मा शिव जो कि निराकार ज्योति बिंदु एक तारे की तरह हैं, पर हैं अति सूक्ष्म से भी सूक्ष्म। परमात्मा शिव, देव आत्मा ब्रह्मा के द्वारा नई दुनियां की स्थापना और देव आत्मा शंकर के द्वारा पुरानी दुनियां का विनाश और देव आत्मा विष्णु के द्वारा नई दुनियां की पालना का दिव्य कर्तव्य कराते हैं।

आशा करते हैं कि आपको हमारी आज की यह जानकारी अच्छी लगी होगी | धन्यवाद |

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