मृतक को नए कपड़े क्यों पहनाए जाते हैं: दोस्तों मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा सच है, जिसे कोई भी नही टाल सकता। जो इस धरती पर आया है उसे एक ना एक दिन यह शरीर छोड़कर परमात्मा की शरण में जाना ही होता है, लेकिन फिर भी मनुष्य जीवन-भर भौतिक सुविधाओं के मोह में पड़ जाता है। जब व्यक्ति अपनी आखिरी सांसें गिन रहा होता है, तब कहीं जाकर उसे जीवन की सच्चाई पता चलती है और वह इस संसार की मोह-माया से परे होता है।
अंतिम संस्कार से जुड़ी ऐसी कई बातें हैं जो हम नहीं जानते। हममें से बहुत से लोगों के मन में यह सवाल आता होगा कि मृत व्यक्ति को उसके संस्कार से पहले नए कपड़े क्यों पहनाए जाते हैं?
आज हम आपको बताने वाले हैं कि संस्कार से पहले मृतक को नए कपड़े क्यों पहनाए जाते है?
मृतक के कपड़े उनके घरवालों को नहीं पहनने चाहिए
जब कोई अपना इस दुनिया से चला जाता है तो अक्सर लोग उनकी वस्तुओं को याद के रूप में संभाल कर रख लेते हैं। इन वस्तुओं में आमतौर पर कपड़े भी होते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि मृतक के कपड़े उनके घरवाले पहन लेते हैं लेकिन ऐसा कभी नहीं करना चाहिए।
सनातन धर्म के अनुसार मृत व्यक्ति के कपड़े पहनने की सख्त मनाई है। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई मृत व्यक्ति के कपड़े पहनता है तो वह अतीत की यादों से बाहर नहीं आ पाता और विशेष रूप से उस व्यक्ति से जुड़ी यादों से बाहर नहीं आ पाता।
अगर हम किसी मृत व्यक्ति का सामान उपयोग में लाते हैं तो यह हमें मानसिक रूप से कमजोर बना सकता है क्योंकि हम उस दुखद क्षण को भूल नहीं पाते और वह व्यक्ति हमें बार-बार याद आता रहता है, इसीलिए कहा जाता है कि आपको मृतक की कोई भी वस्तु या कपड़े आदि इस्तेमाल में नहीं लाने चाहिए इन्हें हमेशा दान कर देना चाहिए।
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संस्कार से पहले मृतक को नए कपड़े क्यों पहनाए जाते हैं?
संस्कार से पहले मृतक को नहलाना, एक प्रकार से उसकी आंतरिक व भारवी शुद्धि के लिए किया जाता है।
हिंदू धर्म के 18 पुराणों में से एक गरुड़ पुराण के अनुसार मृतक व्यक्ति को पहले गंगाजल से स्नान करवाना चाहिए फिर उसके शरीर पर चंदन, तिल के तेल और घी का लेप लगाना चाहिए।
गरुड़ पुराण के अनुसार किसी भी शव को बिना वस्त्रों के नही जलाना चाहिए। मृतक के शरीर को पूरी तरह नए वस्त्रों से ढक देना चाहिए और इस बात का विशेष रूप के ध्यान रखना चाहिए कि मृतक के वस्त्र नये हों, शुद्ध हों और सफेद रंग के हों। सफेद रंग शांति और पवित्रता का रंग होता है। सनातन धर्म में सफेद रंग को शोक, मृत्यु और मोक्ष का प्रतीक भी माना जाता है।
गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि मृत व्यक्ति को पहनाए जाने वाले वस्त्रों को पहले थोड़ी देर धूप में रखना चाहिए, और हो सके तो गौमूत्र या फिर गंगा जल का छिड़काव करके उन्हे शुद्ध कर लेना चाहिए।
ऐसे करने से कपड़ो के माध्यम से मृत व्यक्ति के शरीर के चारों ओर एक पवित्र कवच बन जाता है जो शव को बुरी शक्तियों के संपर्क में आने से बचाता है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि मृतक एक नए सफर पर जा रहा है ऐसे में, नए वस्त्र पहनाकर ही उसे विदा किया जाता है।
इसके बाद अंतिम संस्कार की विधि को आगे बढ़ाते हुए, शव को चिता पर लिटा दिया जाता है और उस पर पुष्प आदि रखे जाते हैं।
अंतिम संस्कार में कभी जल्दी न करे
किसी की मृत्यु होने पर यदि उसके परिवार के लोग अंतिम संस्कार में बहुत जल्दबाजी करते हैं तो यह बिल्कुल सही नहीं है। किसी का अंतिम संस्कार 9 घंटे के अंदर कर देना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि यदि यमराज ने गलती से किसी के प्राण ले लिए हैं तो वे उन्हें पुनः लौट आने की ताकत भी रखते हैं, इसीलिए कहा जाता है कि किसी के अंतिम संस्कार करने में बहुत जल्दबाजी नहीं करना चाहिए कम से कम 8 से 9 घंटे रुकना चाहिए।
दाह संस्कार के बाद अस्थियों को गंगा जी या अन्य पवित्र नदियों में प्रवाहित कर देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं और वह पाप मुक्त हो जाता है।
आशा करता हूं आपको हमारी आज की यह पोस्ट पसंद आई होगी | नमस्कार।