गांधारी ने एक साथ 100 पुत्रो को जन्म कैसे दिया?: महाभारत चन्द्रवंशियो के दो परिवारों, पांडवो और कौरवो के बीच के युद्ध की कथा है | वह युद्ध इतना घातक था कि उसका अनुमान महाभारत के भीष्म पर्व में दिये एक श्लोक से लगाया जा सकता है जिसका अर्थ था कि उस युद्ध में ना तो पुत्र पिता को, ना ही पिता पुत्र को, ना भाई-भाई को, ना मामा-भांजे को और ना ही मित्र-मित्र को पहचानता था |
न पुत्रः पितरं जज्ञे पिता वा पुत्रमौरसम्।
भ्राता भ्रातरं तत्र स्वस्रीयं न च मातुलः॥
उसी महाभारत से जुडी बहुत-सी विचित्र कथाएं है, जो कि अविश्वसनीय है | उन्ही विचित्र कथाओ में से एक कथा है गांधारी ने एक साथ 100 पुत्रो को जन्म कैसे दिया?
किसी महिला के द्वारा एक साथ सौ बच्चों को जन्म देना, असंभव सी बात लगती है, किन्तु अब प्रश्न यह है कि फिर कैसे गांधारी ने सौ पुत्रो और एक कन्या को एक साथ जन्म दिया था? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमारे साथ अंत तक जुड़े रहे |
गांधारी ने एक साथ 100 पुत्रो को जन्म कैसे दिया?
महाभारत धर्मयुद्ध गांधारी के 100 बेटे और कुंती के 5 पुत्रो के बीच हुआ था| गांधार नरेश सुबल की पुत्री गांधारी जब धृतराष्ट के साथ विवाह करने के पश्चात् हस्तिनापुर में पहली बार आई, तब उन्हें ये ज्ञात हुआ कि उनके पति अंधे है| इस बात को जानने के बाद उन्होंने ने भी अपना पति धर्म निभाते हुए अपनी आँखों पर पट्टी बांध कर, पति के समान आजीवन रोशनी विहीन जीवन जीने की प्रतिज्ञा ले ली थी |
ऐसा कहा जाता है कि एक दिन महर्षि वेद व्यास हस्तिनापुर आए और गांधारी ने व्यास जी का बहुत आदर सत्कार किया, जिससे वेदव्यास जी बहुत प्रसन्न हुए और गांधारी से वरदान मांगने को कहा |गांधारी ने वरदान में पति के समान 100 शक्तिशाली पुत्रो का आशीर्वाद माँगा |
कुछ समय पश्चात् गांधारी गर्भवती हो गई| आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि गांधारी 9 महीने की बजाय 2 वर्ष तक गर्भवती रही थी | 2 वर्षो के पश्चात उन्होंने एक मांस के टुकड़े को जन्म दिया, इसका सीधा सा अर्थ था कि गांधारी की गर्भ से किसी भी पुत्र के जन्म नहीं लिया था|
ऐसा कहा जाता है कि वेदव्यास जी को अपनी योगदृष्टि के द्वारा जैसे ही इसका ज्ञात हुआ वो तुरंत हस्तिनापुर आ गए |
महृषि वेदव्यास जी के आदेश के अनुसार 101 घी के मटके तैयार किए गए, वेदव्यास जी ने स्वयं उस मांस के 101 छोटे छोटे टुकड़े कर उन् मटको में डाल कर उन्हें बंद करवा दिया और गांधारी को यह आदेश दिया कि वो इन्हे 2 वर्ष के पश्चात् ही खोले |
2 वर्षो के पश्चात् उन्ही मटको में से गांधारी के 100 पुत्रो के साथ साथ एक पुत्री का भी जन्म हुआ, जिसका नाम दुशाला था|
ऐसा कहा जाता है कि उन मटको में से सबसे पहले दुर्योधन का जन्म हुआ था और उसके जन्म के पश्चात ऋषि मुनियो के द्वारा यह भविष्यवाणी की गई थी कि यह कुल का नाशक होगा इसलिए इसका बलिदान देना ही श्रेष्ठ होगा कित्नु पुत्र प्रेम में गांधारी और धृतराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया था |