मांस खाना पुण्य है या पाप: मनुष्य जिस प्रकार हवा और पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता, उसी प्रकार भोजन के बिना भी जीवित रहना असंभव है | उसी भोजन की जरुरत को देखते हुए, पृथ्वी पर कुछ मनुष्य मासाहार का सेवन करते है, तो कुछ शाकाहार का सेवन करते है |
हमारे मन में हमेशा यह प्रश्न उत्पन्न होता रहता है कि मांस खाना पुण्य है या पाप?
आज हम आपको बताएँगे कि हमारे वेदो और पुराणों के अनुसार कौन-सा भोजन श्रेष्ठ है |
आयुर्वेद के अनुसार भोजन के प्रकार
आयुर्वेद के अनुसार भोजन तीन प्रकार के होते है सात्विक, राजसिक और तामसिक |
सात्विक भोजन हमारे शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ मन को शांति प्रदान करने वाला और आयु को बढ़ाने वाला होता है |(जैसे ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज, ताजा दूधी और बादाम आदि )
ज्यादा नमकीन, खट्टा और मसालेदार भोजन या यु कहे तो अतिस्वादिष्ट खाद्य पदार्थ को राजसिक भोजन कहा जाता है | यह भोजन रोग को उत्पन्न (जैसे मसालेदार भोजन, चाय, कॉफी और तले हुए खाद्य पदार्थ )
प्याज , लहसुन, तंबाकू, मांस, शराब आदि का इस्तेमाल किया हुआ और ज्यादा पक्का हुआ मसालेदार भोजन तामसिक भोजन हैं जो शरीर और मन को सुस्त करते हैं। इनके अत्यधिक सेवन से जड़ता, भ्रम और भटकाव महसूस होने के साथ जटिल रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती है |
मांस खाना पुण्य है या पाप?
अब हम बात करेंगे कि हिन्दू धर्म के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप ? अलग-अलग लोगो का इस विषय पर अलग-अलग मत है, तो अब हम आपको हिन्दू पुराणों में इस विषय पर क्या कहा गया है वह बताएँगे|
गरुड़ पुराण कथा के अनुसार
इस विषय पर एक कथा गरुड़ पुराण से आती है जो कि भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप से जुडी है | एक बार श्री कृष्ण यमुना नदी के तट पर अपनी प्रिय बांसुरी बजा रहे थे | उसी समय दूर से दौड़ता हुआ हिरण आया और भगवान के पीछे आकर छुप गया, वह बहुत डरा हुआ था |
भगवान श्री कृष्ण ने स्नेह से उसे सहलाया और बोले तुम इतना डरे हुए क्यों हो ? वह डर से एक ही तरफ देख रहा था जहाँ से वो भाग कर आया था | तभी वही से शिकारी भी भागता हुआ आया और श्री कृष्ण से बोला ये मेरा शिकार है इसलिए इसे मुझे सौप दो |
भगवान बड़े प्रेम से बोले हर प्राणी के जीवन पर सबसे पहला अधिकार स्वयं उसी का होता है, फिर तुम्हे ये कैसे लगता है कि इसपर सिर्फ तुम्हारा अधिकार है |
भगवान के ऐसे वचन सुन शिकारी क्रोध से भर गया और बोला तुम मुझे ज्यादा ज्ञान मत दो | ये मेरा शिकार है और मैं इसे पका के खाना चाहता हूँ |
यह सुन भगवान फिर बोले किसी जीव के प्राण लेकर उसका भक्षण करना पाप है, तो तुम ऐसा करके क्यों पाप कामना चाहते हो?
वह शिकारी बोला मुझे पाप और पुण्य का भेद नहीं पता बस पता है तो यह मेरा भोजन है और मुझे जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता है |
और वैसे भी मैं इसके प्राण हर कर इसे जीव बंधन से ही तो मुक्त कर रहा हूँ, यह तो पुण्य कर्म हुआ ना ? फिर आप मुझे पुण्य कर्म करने से क्यों रोक रहे हो?
जहाँ तक कि मैंने शास्त्रों के बारे में सुना है, जीव हत्या तो उनमे भी उचित बताई गई है |
वह फिर बोला राजा महाराजा भी तो शिकार किया करते है, तो सारे पाप-पुण्य क्या केवल निर्धनों के लिए ही बने है ?
भगवान श्री कृष्ण मन में विचार करने लगे कि तामसिक भोजन करने के कारण इसकी बुद्धि क्षीण हो गई है, जिससे यह कुछ भी समझ नहीं पा रहा है |
भगवान को गहरा विचार करते देख वो शिकारी बोला चलिए अब आप ही मुझे बता दीजिये कि मांस खाना पुण्य है या पाप?
श्री कृष्ण ने बताया मांस खाना पुण्य है या पाप?
यह सुन भगवान श्री कृष्ण बोले ठीक है अब मैं तुम्हे एक कथा सुनाता हूँ, जिससे तुम्हे ज्ञात हो जायेगा कि मांस खाना पुण्य है या पाप ?
शिकारी ने मन में विचार किया कि कथा सुनकर थोड़ा अपना मनोरंजन कर लेता हूँ, उसके पश्चात् हिरण को तो मैं ले ही जाऊंगा |
भगवान बोले एक बार मगध में सूखे के कारण अन्न का उत्पादन बहुत काम हो गया, और यह देख वहाँ के राजा बहुत चिंता में डूब गए क्युकी वह जानते थे कि यदि इस संकट का जल्दी ही कोई समाधान नहीं निकला तो, राज्य में जमा किया अनाज भी जल्दी खत्म हो जायेगा और सारी प्रजा बहुत बड़े संकट में पड़ जाएगी |
राजा ने इस समस्या के निवारण हेतु तत्काल अपने सभी मंत्रियो व् सलाहकारों की बैठक बुलाई |
बैठक में राजा बोले कि आप सभी के मत में ऐसी कौन-सी सबसे सस्ती वस्तु है जिससे हम इस समस्या को सुलझा सकते है | राजा से मुख से ऐसे वचन सुन सभी मंत्री विचार करने लगे कि अन्न, सब्जिया व् फल इत्यादि को उगाने में तो बहुत समय और श्रम लगेगा |
तभी शिकार का शौक रखने वाला एक मंत्री सभा में खड़े होकर बोला हे राजन! मेरे मत में सबसे सस्ता और आसानी से मिलने वाला भोजन मांस है | जिससे हमारी प्रजा भूखी भी नहीं रहेगी और हमरा राजधन भी बचा रहेगा |
मंत्री की बात सुन बाकि सभी मंत्रियो ने भी उसका समर्थन कर दिया, केवल महामंत्री शांत बैठे रहे |
यह देख राजा महामंत्री से बोले, मैंने देखा कि सभी मंत्रियो ने अपना अपना मत दिया केवल आपने ही अपना मत नहीं दिया| कृपया आप भी इस विषय पर अपना मत दीजिये|
महामंत्री बोले हे राजन! मांस सबसे सस्ता भोजन है मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ और इस विषय पर अपना मत देने के लिए मुझे कल तक का समय दे|
यह सुन राजा ने महामंत्री की बात मानते हुए अगले दिन फिर से सभा बुलाने का आदेश दिया |
उसी रात महामंत्री उसी मंत्री के घर गए जिन्होंने मांस को सबसे सस्ता भोजन बताया था | महामंत्री को अपने घर आया देख मंत्री खड़े होकर उन्हें प्रणाम करने लगे और बोले कि हे महामंत्री! यदि आपको मुझसे कुछ काम था तो, आप मुझे सन्देश भेज देते मैं स्वयं आपके पास आ जाता |
महामंत्री बोले कि संध्या के समय महाराज बहुत बीमार पड़ गए है और वैद्य जी के अनुसार उनके प्राण बचाने के लिए किसी शक्तिशाली मनुष्य का 2 तोला मांस आवश्यक है |
आप महाराज के करीबी है, तो मैं चाकू से आपके हृदये को चीरकर केवल 2 तोला मांस निकालूंगा| यह सुन उस मंत्री के हाथ पैर फूलने लगे और उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया |
महामंत्री बोले आप केवल हाँ बोले उसके बदले मैं आपको 1 लाख मुद्राओ के साथ-साथ एक बड़ी जागीर और महामंत्री का पद भी दिलवा दूंगा |
मंत्री विचार करने लगा कि अगर मैं ही जीवित नहीं रहूँगा, तो ये धन दौलत मेरे किस काम की ?
वह भागता हुआ अपने घर से 1 लाख मुद्राये लाया और महामंत्री के चरणों में बैठ गया और बोला हे महामंत्री! आप अपनी 1 लाख मुद्राओ में मेरी 1 लाख मुद्राये और मिला लीजिये, और किसी अन्य को दो तोले मांस के लिए ढूंढ लीजिये |
कृपया मुझे क्षमा करे और मैंने जो महाराज के लिए 2 तोला मांस देने के लिए मना किया है, यह बात किसी को ना बताएं| यह कहकर मंत्री अपने घर हड़बड़ाता हुआ चला गया |
महामंत्री इसी प्रकार बाकि मंत्रियो के घर भी गए, किसी भी मंत्री ने 2 तोला मांस देने के लिए सहमति नहीं दी और अपना बचाव करने के लिए महामंत्री को लाखो मुद्राये देते रहे |
महामंत्री ने रात में ही बहुत सारा धन एकत्रित कर लिया और सुबह सारा धन लेकर महल में पहुंच गया |
उधर सभी मंत्री यही सोचकर चिंतित थे कि अब महाराज का स्वास्थ्य कैसा होगा? कुछ श्रण के पश्चात् महाराज सभा में आकर अपने सिंघासन पर विराजमान हो गए |
राजा को पूरा स्वस्थ्य देख, सभी मंत्री अचंभित रह गए और महामंत्री की ओर देखते हुए सोचने लगे कि इसका मतलब महामंत्री ने हमसे झूठ बोला था |
सभा में बहुत सारा धन पड़ा देख महाराज बोले हे महामंत्री! ये इतना सारा धन कहाँ से आया ?
महामंत्री ने उत्तर दिया कि हे महाराज! मैं तो केवल 2 तोला मांस लेने के लिए निकला था, किन्तु सभी मंत्रियो ने अपनी जान बचाने के लिए ये सब मुद्राये मुझे दी |
अब आप ही मुझे बताएं कि मांस सस्ता है या महंगा ?
यह सुन राजा को महामंत्री कि बात समझ आगई और उन्होंने अपनी प्रजा ने निवेदन किया कि वो अपने परिश्रम से खाद्य पदार्थ को उगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा परिश्रम करे |
और महामंत्री के द्वारा एकत्रित किया हुआ धन भी महाराज के आदेशानुसार इसी कार्य में लगाया गया | कुछ समय पश्चात् सभी के परिश्रम से खाद्य पदार्थो का फिर से उत्पादन बढ़ने लगा और राज्य में आया संकट भी टल गया |
भगवान के मुख से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद शिकारी समझ गया कि प्राण सबको अतिप्रिय होते है, चाहे वो मनुष्य के हो या किसी जानवर के |
और वो हाथ जोड़ कर भगवान के चरणों में बैठ गया और प्रण लिया कि आज के बाद वह किसी को भी क्षति नहीं पहुंचाएगा |
स्कन्द पुराण, वराह पुराण और भगवत गीता के अनुसार
गरुड़ पुराण, स्कन्द पुराण और अथर्ववेद में भी तामसिक भोजन का वर्णन मिलता है |
स्कंद पुराण काशी खंड तीसरे अध्याय में वर्णन मिलता है कि जो मनुष्य मांस का सेवन करता है, उसे ना तो इस लोक में ना किसी और लोक में सुख मिलता है |
स्कन्द पुराण के अनुसार यदि कोई मनुष्य भूख से मर भी रहा हो तब भी उसे मांस का सेवन नहीं करना चाहिए, इसके साथ इसी पुराण में यह भी वर्णन मिलता है कि भगवान शिव उन भक्तो से कभी प्रसन्न नहीं होते, जो मांस मदिरा का सेवन करते है |
वराह पुराण के अनुसार पृथ्वी देवी के पूछने पर भगवान नारायण कहते है कि, जो मनुष्य मांस का सेवन करता है ना तो मैं उसकी पूजा स्वीकार करता हूँ, ना ही उसे मैं अपना भक्त मानता हूँ, और तो और मेरी दृष्टि में उससे बड़ा पापी और कोई नहीं है |
भगवत गीता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण कहते है कि जो मनुष्य मांस-मदिरा का सेवन करता है, उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और उसका अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं रहता | वह कई तरह के अपराध का भागीदार बनने लगता है |
अथर्ववेद के अनुसार मनुष्य के लिए सात्विक भोजन सबसे श्रेष्ठ है, जो मनुष्य के मन को शांति प्रदान करने वाला होता है |
हमारे वेदो और पुराणों के अनुसार किसी भी प्राणी की हत्या करना या उसके मांस का सेवन करना निषेद है और उसे महापाप की श्रेणी में रखा गया है |