अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है? : मनुष्य के जीवन में सुख और दुःख, धुप और छाया की तरह होता है, कभी उसके जीवन को दुःख के काले बदल घेरे रखते है तो कभी ख़ुशी रूपी धुप उसके जीवन को खुशहाली से भर देती है |
हम ये तो सुनते और मानते ही है कि मनुष्य को उसके अच्छे व् बुरे कर्मो के अनुसार ही सुख और दुःख प्राप्त होता है, परन्तु वास्तविक जीवन में ऐसा प्रतीत नहीं होता |
वास्तविक जीवन में तो जो मनुष्य जितना ज्यादा दुष्ट और अधर्मी होता है, उतना ही ज्यादा वह सुख और समृद्धि से परिपूर्ण होता है और अच्छे मनुष्यों के मन में सदैव यह प्रश्न उत्पन्न होता रहता है कि ना तो वह किसी का बुरा सोचते, ना किसी से किसी प्रकार का छल करते और भगवान की आराधना करने में भी उनकी पूरी रूचि रहती है, फिर भी उनके जीवन में बहुत दुःख होते है |
आज हम आपको बातएंगे कि भगवान श्री कृष्ण के अनुसार अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है? |
मनुष्य के मन में तरह-तरह के प्रश्न सदैव उत्पन्न होते रहते है, उन सभी प्रश्नो के उत्तर हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ भगवद गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए है |
ऐसा ही एक प्रश्न जो हर एक धर्म के मार्ग पर चलने वाले मनुष्य के मन में उत्पन्न होता रहता है कि जीवन में बुरे लोगो के साथ अच्छा और अच्छे लोगो के साथ बुरा ही क्यों होता है ?
इस प्रश्न का उत्तर भी स्वयं भगवान श्री कृष्ण के द्वारा भगवद गीता में दिया गया है | तो आइए जानते है उस उत्तर के बारे में |
अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है?
भगवद गीता के अनुसार एक बार अर्जुन भगवान श्री कृष्ण के समक्ष गए और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में बैठ गए | भगवान ने देखा कि अर्जुन का मन किसी बात को लेकर बहुत विचलित है, यह देख श्री कृष्ण बोले हे अर्जुन! तुम्हारे मन में जो भी शंका है वह मुझे बताओ मैं उसे अभी दूर कर देता हूँ |
यह सुन अर्जुन बोले हे माधव ! अच्छाई और धर्म के मार्ग पर चलने वाले मनुष्यों के जीवन में इतने दुःख क्यों होते है?, जबकि दुराचारी और अधर्मी सदैव सुख समृद्धि से परिपूर्ण होते है |
अर्जुन का प्रश्न सुन श्री कृष्ण मंद-मंद मुस्कुराने लगे और बोले हे अर्जुन ! तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर मैं तुम्हे एक कथा के द्वारा दूंगा |
भगवान बोले एक बार एक नगर में 2 पुरुष रहते थे | पहला पुरुष व्यापारी था, जो कि मन का साफ़ और धर्म के मार्ग पर चलने वाला था | उसके मन में किसी प्रकार का कोई छल कपट नहीं था और वह भगवान की मन से उपासना करने वाला था इसलिए प्रतिदिन मंदिर जाया करता था |
दूसरी ओर दूसरा पुरुष अधर्मी और तामसिक प्रवृति का था | मांस-मदिरा का सेवन तथा चोरी करने वाला था | वह भी मंदिर तो जाता था लेकिन उसका उद्देश्य केवल वह जाकर चोरी करने का होता था |
एक दिन नगर में बहुत तेज़ बारिश हो रही थी और यह देख कपटी व्यक्ति के मन में विचार आया कि तेज बारिश के कारण मंदिर में केवल पुजारी होगा और इस अवसर का लाभ उठाने के लिए उसने मंदिर में प्रवेश किया | और पुजारी की नज़रो से बचकर मंदिर का सारा धन लेकर वहाँ से चला गया |
कुछ समय पश्चात् वहाँ भला व्यक्ति भगवान की पूजा के उद्देश्य से आ गया, किन्तु पुजारी ने समझा कि इसी ने मंदिर के धन की चोरी की है और पुजारी जोर-जोर से चिलाने लगा जिसे सुन वहाँ पर बहुत सारे लोग आगये और भले व्यक्ति को चोर समझ कर बुरा भला कहने लगे |
उसके बार-बार समझाने पर भी किसी ने उसकी बात का विश्वास नहीं किया | किसी तरह वह मंदिर से बाहर आया और बाहर आते ही एक गाडी ने उसे टक्कर मार दी, जिससे वह गिर गया और उसको बहुत चोट आगई |
उसके पश्चात् जब वह अपने घर जा रहा था, मार्ग में उसे वही दुष्ट व्यक्ति मिला जिसने मंदिर में चोरी की थी |
वह धन से भरी हुई पोटली लेकर बहुत खुश था और ख़ुशी में बोल रहा था आज तो बहुत ही मजा आगया जो मंदिर का सारा धन मेरे हाथ लग गया |
यह सुन भले व्यक्ति का मन बहुत दुखी हो गया, उसका भगवान पर से विश्वास टूट-सा गया था | उसने घर जाकर भगवान की सारी तस्वीरें घर के बाहर फेंक दी और भगवान से नाराज़ होकर ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत करने लगा |
कुछ समय पश्चात् जब उन दोनों मनुष्यों की मृत्यु हुई और वह दोनों यमराज के समक्ष उपस्थित हुए | तभी वो भला व्यक्ति बोला हे प्रभु ! मैंने अपने जीवन में सभी अच्छे कर्म किए, फिर भी मुझे अपमानित होना पड़ा और उसके बाद मुझे पीड़ा मिली जबकि यह दुष्ट और अधर्मी था, फिर भी इसे धन से भरी पोटली मिली |
प्रभु अब आप ही मुझे इसका उत्तर दीजिये कि ऐसा क्यों हुआ ?
यह सुन यमराज बोले जिस दिन तुम्हे चोट आई थी वह तुम्हारे जीवन का अंतिम समय था, किन्तु तुम्हारे अच्छे कर्म के कारण वह एक छोटी-सी चोट के रूप में टल गया और इस दुष्ट के भाग्य में राजयोग था, किन्तु इसके बुरे कर्म के कारण इसका राजयोग एक छोटी सी पोटली में बदल गया |
इस कथा के द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने हमे बताया कि अच्छे और बुरे कर्मो का फल मनुष्य को अवश्य मिलता है, किन्तु कभी कभी मनुष्य कर्मो के फल को लेकर विचलित हो जाता है |
भगवान कहते है कि उस समय भी मनुष्य को अपने अच्छे कर्म ही करते रहना चाहिए क्युकी कर्म का फल सबको जरूर मिलता है, बस हमे अज्ञानता के कारण उसका पता नहीं चलता |