मृत्यु के बाद आत्मा अपने घर वापस क्यों आती है?: मृत्यु एक अटल सत्य है, कलयुग का मनुष्य यह जानते हुए भी अहंकार और मोह के कारण वश इसे झुठलाता रहता है | जैसे उसकी तो कभी मृत्यु हो ही नहीं सकती |
आपने यह तो सुना होगा कि जब किसी मनुष्य की मृत्यु होने के कुछ समय पश्चात् उसकी आत्मा वापस उसी घर में आती है और कुछ दिन वही रहती है |
आइए जानते है कि हमारे पुराणों में इस विषय पर क्या कहा गया है |
मृत्यु के बाद आत्मा अपने घर वापस क्यों आती है?
गरुड़ पुराण के अनुसार जब किसी मनुष्य की मृत्यु होती है, तब बहुत ही भयानक, हाथो में पाश और दंड धारण किए, लाल आँखों और बड़ी बड़ी मूछों वाले 2 यमदूत उसे लेने आते है | जिन्हे देख कर मनुष्य बुरी तरह डर जाता है और वो दोनों भयानक यमदूत उसे पाश से बाँध कर यमलोक ले जाते है |
वहाँ जाकर उसके पाप और पुण्य का हिसाब होता है, उसके पश्चात् यमराज की आज्ञा से उसे वापस उसके घर लाया जाता है |
अपने घर वापस आने के पश्चात वह अपने सगे-सम्बन्धियों को उसके लिए विलाप करता देख बहुत दुखी हो जाता है, जोर-जोर से चिल्लाने लगता है और उनसे बात करने की कोशिश करता है, किन्तु उसकी बात कोई नहीं सुन पता है |
वह अपने मृत शरीर में बार-बार प्रवेश करने की कोशिश करता है, किन्तु यमदुतो के पाश से बंधे होने के कारण वह ऐसा नहीं कर पता और वह बहुत भूख और प्यास से पीड़ित होकर रोता रहता है |
इसी तरह वो अपने घर में 13 दिन तक रहता है और उसी समय में उसके पुत्रों के द्वारा दिए हुए पिंड-दान को प्राप्त करता है |
मृत व्यक्ति का पिंड शरीर कैसे बनता है?
गरुड़ पुराण में पिंड-दान के महत्व को बताते हुए कहा गया है कि पिंड प्रतिदिन चार भागो में बांटा जाता है, जिनमे से पहले 2 भाग तो प्रेत की देह के पंचभूतों की पुष्टि के लिए होता है, तीसरा भाग यमदुतो के लिए होता है और चौथा भाग जीव को आहार के रूप में प्राप्त होता है |
पहले 2 भागो से जीव को पुनः एक हाथ लम्बा शरीर प्राप्त होता है, उसी के द्वारा जीव अपने अच्छे व् बुरे कर्मो का फल भोगता हुआ यमलोक को जाता है |
पहले दिन के पिंड दान से जीव का सिर बनता है, दूसरे दिन के पिंड से गर्दन, तीसरे दिन के पिंड से हृदये, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवे दिन के पिंड से नाभि, छठे और सातवें दिन के पिंड से उसकी कमर बनती है, आठवें दिन के पिंड से जाँघे, नौवें पिंड से घुटने और पैर बनते है और दसवें पिंड से उसकी भूख प्यास जागृत होती है | और इसी पिंड शरीर को प्राप्त कर वह ग्यारहवें और बारहवें 2 दिन भोजन करता है |
तेरहवें दिन यमदूत उसे पाश से बाँध कर यमलोक ले जाते है, गरुड़ पुराण के अनुसार उसकी दुरी 36 हज़ार योजन बताई गयी है |
जिनका पिंड दान नहीं होता वह प्रेतरूप में आकर कल्पपर्यन्त निर्जन वन में बहुत दुखी होकर भ्रमण करते रहते है इसलिए गरुड़ पुराण के अनुसार पुत्र के द्वारा दस दिन तक पिंड दान अवश्य किया जाना चाहिए |
गरुड़ पुराण में यह भी विस्तार से बताया गया है कि जो मनुष्य अधर्मी व् पापी होते है, उन्हें यमलोक के मार्ग में बहुत सारी यातनाएं सहनी पड़ती है और यमदूत उसे पाश में बन्दर की तरह बाँध कर घसीटते हुए लेकर जाते है और वही जो मनुष्य धर्म के मार्ग पर चलने वाला होता है उसे मार्ग में बिना यातनाएं सहे यमलोक ले जाया जाता है |