कैसे बनता था महाभारत युद्ध में लाखों योद्धाओं का खाना?: दुनिया का सबसे बड़ा और भयानक महाभारत युद्ध कुरु साम्राज्य के सिंघासन की प्राप्ति के लिए कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था, यह तो आप जानते ही है |
महाभारत युद्ध में कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी, जबकि पांडवों के पास 7 अक्षौहिणी सेना थी | इसका अर्थ यह हुआ कि इस युद्ध में लगभग 40 लाख योद्धाओं ने भाग लिया था | महाभारत युद्ध 18 दिन तक चला था जिसमें पांडव विजयी हुए थे |
आज हम आपको महाभारत से जुड़े एक ऐसे तथ्य के बारे में बताएँगे, जो शायद ही आपने कभी सोचा होगा ?
क्या आपने इस विषय पर विचार किया है कि कैसे बनता था महाभारत युद्ध में लाखों योद्धाओं का खाना? और प्रतिदिन हज़ारों योद्धा वीरगति को प्राप्त हो जाते थे तो भोजन का हिसाब-किताब कैसे तय किया जाता था ?
कैसे बनता था महाभारत युद्ध में लाखों योद्धाओं का खाना?
महाभारत युद्ध में खाना कौन बनता था?
महाभारत युद्ध निश्चित होने के पश्चात दुनिया भर के राजाओं ने अपने मत के अनुसार कौरवों और पांडवों की ओर से युद्ध लड़ने का निर्णय लिया, परन्तु कुछ राजा ऐसे भी थे जिन्होंने तटस्थ रहना उचित माना और वो महाभारत युद्ध से दूर रहे |
उन्ही राजाओं में से एक उडुपी के राजा थे, जो 2 परिवारों के बीच होने वाले इस भीषण युद्ध को उचित नहीं मानते थे इसलिए उन्होंने किसी का पक्ष ना लेने का निश्चय किया |
वह भगवान श्री कृष्ण के समक्ष गए और भगवान को प्रणाम करके बोले हे प्रभु! मैं इस युद्ध को उचित नहीं मानता इस कारण मैं इस युद्ध में कौरवों तथा पांडवों की ओर से भाग नहीं लेना चाहता हूँ | प्रभु इस युद्ध में लाखों योद्धा भाग लेंगे और इतने सारे लोगों के खाने की व्यवस्था करना भी बहुत बड़ी चिंता का विषय है, क्युकी बिना भोजन किसी का युद्ध में टिके रहना असंभव है |
अगर आप मुझे आज्ञा दे तो मैं इस दायित्व को उठाने के लिए तैयार हूँ |
भगवन श्री कृष्ण राजा की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले हे राजन! तुम्हारे यह निर्णय बहुत हितकारी है और आप जैसे योग्य राजा द्वारा इस ज़िम्मेदारी को लेने से मैं बहुत संतुष्ट महसूस कर रहा हूँ |
भगवान श्री कृष्ण से आज्ञा प्राप्त करके उडुपी के राजा ने अपना दायित्व बहुत अच्छे से निभाते हुए महाभारत युद्ध के 18 दिन तक भोजन की व्यवस्था की थी |
महाभारत युद्ध का खाना कभी व्यर्थ क्यों नहीं होता था?
हर एक दिन वह उतना खाना तैयार करते, जिससे सभी योद्धा भर पेट खाना खाते और खाना बिलकुल भी व्यर्थ नहीं जाता था | यह देख सभी लोग बहुत आश्चर्यचकित हो जाते थे, कि महाभारत युद्ध में प्रतिदिन हज़ारो योद्धा वीरगति को प्राप्त करते है, फिर कैसे उडुपी के राजा इतना सटीक अनुमान लगा कर शाम का भोजन तैयार करते है |
यह किसी चमत्कार से कम नहीं था क्युकी युद्ध में कितने लोग वीरगति को प्राप्त करेंगे ये तो कोई भी नहीं जान सकता था |
महाभारत युद्ध के 18 दिन पूर्व जब पांडव युद्ध जीत कर राज-पाठ सँभालने लगे थे, तब युधिष्ठिर ने उडुपी के राजा को राजमहल में बुलाया और उनका आभार प्रकट करते हुए कहा हे राजन! आपका कार्य बहुत सराहनीये था, किन्तु आप यह बताकर हमारे मन की शंका को दूर करे कि प्रतिदिन के भोजन बनाने में आप इतना सटीक अनुमान कैसे लगाते थे?, कि वह कभी व्यर्थ नहीं जाता था और ना ही कभी कम पड़ता था |
उडुपी के राजा बोले हे राजन जिस प्रकार आप अपनी विजय का श्रेय भगवान श्री कृष्ण को देते है, उसी प्रकार मेरे द्वारा किया गया यह अद्भुत कार्य का श्रेय भी श्री कृष्ण को ही जाता है |
युधिष्ठिर उत्सुकता के साथ बोले कृपया आप मुझे इस वृतांत को विस्तार से बताएं |
यह सुन उडुपी नरेश बोले मैं प्रतिदिन युद्ध समाप्त होने के पश्चात भगवान श्री कृष्ण के समक्ष कुछ मूंगफलिया रखता था और अगले दिन की सुबह भगवान ने कितनी मुंफलिया खाई है उससे गिन लेता था |
श्री कृष्ण जितनी मूंगफलिया खाते थे, ठीक उससे हज़ार गुना ज्यादा योद्धा उस दिन वीरगति तो प्राप्त करते थे और मैं उसी से अनुमान लगा कर शाम का भोजन तैयार करता था |
उडुपी नरेश के मुख से भगवान श्री कृष्ण की ऐसी सुन सभी भगवान को प्रणाम करने लगे |