भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को कैसे प्राप्त करे?: कलयुग में जहाँ चारो ओर अधर्म और पाप फैला हुआ है, और मनुष्य मोह जाल के बंधनों में बंधा है | उस कलयुग में किसी का मोक्ष प्राप्त करना असंभव सा प्रतीत होता है | किन्तु क्या आप यह जानते है कि हमारे धार्मिक ग्रंथो में कलयुग में किस प्रकार मोक्ष प्राप्ति की जाएं उसका वर्णन मिलता है |
भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को कैसे प्राप्त करे?
नारद जी मिले भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से
श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार एक बार नारद मुनि जी पृथ्वी लोक में विचरण करते-करते यमुना नदी के तट पर पहुंचे और वहाँ पहुंच कर उन्होंने देखा कि एक सुन्दर युवा स्त्री यमुना नदी के तट पर बहुत दुखी बैठी है, उसके साथ 2 वृद्ध पुरुष मूर्छित होकर लेटे हुए है और बहुत सारी स्त्रियाँ उनके आस-पास बैठी है |
यह देख नारद जी उस सुन्दर स्त्री के पास जाकर बोले हे देवी! आप क्यों इतना विलाप कर रही हो?
वह स्त्री रोते हुए बोली मैं भक्ति हूँ और ये दोनों मेरे पुत्र है, इनका नाम ज्ञान और वैराग्य है और ये जो बाकि स्त्रियाँ है ये सब गंगा इत्यादि पवित्र नदियाँ है, जो मेरी सेवा के लिए यहाँ पर उपस्थित है |
वह स्त्री अपने बारे में और विस्तार से बताते हुए बोली मेरा जन्म द्रविड़ देश में हुआ, कर्णाटक में बड़ी हुई, युवावस्था में दक्षिण में रही और महाराष्ट्र तथा गुजरात में आते-आते वृद्ध हो गई |
मैं किसी तरह ब्रज की भूमि पर पहुंची, जहाँ आकर मैं दुबारा युवा अवस्था में आगई परन्तु मेरे ये दोनों पुत्र वृद्ध अवस्था में यहाँ पड़े है |
नारद जी बोले हे देवी ये कलयुग का प्रभाव है जिसके कारण पृथ्वी पर चारों अधर्म फ़ैल गया है और जप-तप तथा धर्म-कार्य करने में किसी की कोई रूचि नहीं है |
ये ब्रज की भूमि है और इस भूमि में भगवान श्री कृष्ण सदा विराजमान रहेंगे इसी कारण यहाँ भक्ति कभी समाप्त नहीं हो सकती, इसलिए ही इस भूमि पर आकर तुम्हे पुनः यौवन अवस्था प्राप्त हुई |
राजा परीक्षित ने कलयुग को क्यों नहीं मारा?
नारद जी के वचन सुन भक्ति देवी बोली हे देवर्षि! राजा परीक्षित बहुत शक्तिशाली थे, फिर उन्होंने कलयुग का वध क्यों नहीं किया?
नारद जी बोले जब राजा परीक्षित ने देखा कलयुग पृथ्वी देवी और धर्म को मार रहा है यह देख उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने उसका वध करने हेतु अपनी तलवार निकाली |
यह देख कलयुग डरकर उनकी शरण में आगया और राजा परीक्षित ने यह सोच कर उसका वध नहीं किया कि कलयुग में बहुत बुराइयाँ तो होगी ही परन्तु कलयुग ही ऐसा युग है जिसमे मनुष्य भक्ति से भगवान का नाम लेने से वो फल प्राप्त कर पायेगा जो बाकि युगो में वर्षो की तपस्या से भी प्राप्त नहीं हो सकता |
नारद जी बोले स्मरण करो, जब भगवान ने तुम्हे बनाया था और तुम्हे भक्तो के हृदये में वास करने को कहा था | तुम्हारे स्वीकार करने पर उन्होंने तुम्हे ये तो पुत्र ज्ञान और वैराग्य तथा सेविका के रूप में मुक्ति दी थी |
मुक्ति तो कलयुग से बैकुंठ लोक में चली गई, जो तुम्हारे बुलाने से ही वापस आती है और फिर वही चली जाती है |
कलयुग में अधर्म ज्यादा होने के कारण, भक्ति में मनुष्य की रूचि बहुत काम हो गई है इसलिए तुम्हारे ये दोनों पुत्र वृद्ध अवस्था में यहाँ लेटे है |
भक्ति देवी बोली हे महर्षि! आप मेरे पुत्रो को फिर से युवा अवस्था में लाने की कृपा करे |
नारद जी ने उन्हें उठाने की बहुत कोशिश की, उन्हें वेद भी सुनाये किन्तु वह हिल नहीं पाए | यह देख नारद जी ने भगवान को याद किया, तभी आकाशवाणी हुई हे देवर्षि! तुम्हे संत जन मिलेंगे और वो ही तुम्हे ऐसा मार्ग बताएँगे जिससे ये दोनों पुनः पुष्ट हो जाएंगे |
भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को शक्ति कैसे प्राप्त होती है?
यह सुन नारद जी चारों ओर विचरण करने लगे, किन्तु उनके कोई ऐसा साधु या संत नहीं मिला जो उन्हें इसका कोई मार्ग बता सके |
कुछ समय पश्चात् एक दिन सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार ऋषि सनातन करने के उद्देश्य से बद्रिका आश्रम आए और उन्होंने नारद जी को चिंतित अवस्था में आते हुए देखा |
ऋषि बोले हे महर्षि! आप इतने चिंतित क्यों है कृपया आप हमें अपनी चिंता का कारण बताएं?
नारद जी बोले आप तो बहुत ज्ञानी है और मेरी चिंता के विषय में भी सब जानते है | कृपया आप मुझे कोई ऐसा मार्ग बताएं जिससे भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को फिर से सुख प्राप्त हो |
यह सुन सनत्कुमार बोले हे महर्षि! इसका उपाये है मेरे पास | जो श्रीमद भागवत महापुराण का अमृत रस शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को दिया था, उसी कथा को सुनने मात्र से भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को शक्ति प्राप्त हो सकती है | कलयुग में श्रीमद भागवत ही है जो सारे पापों का नाश करने वाली है |
नारद जी बोले हे ऋषि श्रेष्ट! मैंने ज्ञान और वैराग्य को वेद भी सुनाए फिर भी उनके अंदर कोई शक्ति का संचार नहीं हुआ फिर श्रीमद भागवत में ऐसी क्या विशेषता है ?
तब सनत्कुमार श्रीमद भागवत का महत्व बताते हुए बोले जब व्यास जी मोहित हुए थे तब ब्रह्मा जी ने उन्हें चतुः श्लोकी भागवत सुनाकर उनका मोह दूर किया था और उसके पश्चात् व्यास जी ने वेद वेदांत शास्त्र और गीता आदि के सार से श्रीमद भागवत की रचना की थी |
इन सबका सार होने के कारण श्रीमद भागवत सबसे उत्तम है |
सनत्कुमार बोले हे नारद जी! हरिद्वार के पास आनंद घाट में इस कथा का आयोजन करना श्रेठ होगा, आप वही भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को बुला लीजिए |
श्रीमद भागवत का रसपान प्राप्त करने हेतु सभी ऋषि, मुनि, तीर्थ, नदी, भक्तजन आदि उस स्थान पर एकत्रित हो गए |
सनत्कुमार ने 7 दिनों में श्रीमद भागवत की पूर्ण कथा के 12 स्कन्धों के 18 हज़ार श्लोक सबको सुनाए |
श्रीमद भागवत का श्रवण करने से मनुष्य सभी दुखों और पापों से मुक्ति पा लेता है और उसके हृदय में सदैव भक्ति निवास करती है | और जहाँ भक्ति होती है वहाँ साक्षात् भगवान रहते है |
श्रीमद भागवत सुनने से कौनसे पाप दूर होते है?
नारद जी सनत्कुमार से बोले श्रीमद भागवत का अमृतपान करने से किस-किस के पाप दूर हो सकते है ?
सनत्कुमार बोले पाखंडी, घमंडी, पापी, दुराचारी, क्रोधी आदि सभी प्रकार के पापी इसे सुनकर पवित्र हो जाते है |