माँ दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई?: माता दुर्गा पराशक्ति है और उनका स्थान ब्रह्माण्ड में सबसे ऊपर माना जाता है | माता की अष्टभुजाएँ है, जो कि विभिन्न-विभिन्न अस्त्रों व् शास्त्रों से सुशोभित है |
माता की शक्तियों के बारे में तो हम भली-भांति जानते ही है कि किस तरह माता ने महिषासुर जैसे दैत्यों का वध किया था, किन्तु कभी आपने यह विचार किया है कि माँ दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई? और उसके पश्चात उन्हें अस्त्र-शस्त्र किस प्रकार प्राप्त हुए थे ?
तो आइए जानते है दुर्गा माता की उत्पत्ति की कथा के बारे में |
श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा
माँ दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई?
श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा के अनुसार पूर्वकाल में असुरों तथा देवताओं में 100 वर्ष तक भीषण युद्ध चला जिसमे देवता हार गए और दैत्यराज महिषासुर ने स्वर्ग का राजपाठ देवताओं से छीन लिया | देवता निराश होकर त्रिदेव के पास पहुंचे और सारा वृतांत विस्तार से सुनाया |
देवताओं के मुख से सारा वृतांत सुनने के पश्चात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो असुरों पर बहुत क्रोधित हो गए और उन तीनो से एक तेज़ प्रकट हुआ | उधर समस्त देवताओं के शरीर से भी तेज़ उत्पन्न होकर सब एक हो गया |
सभी शक्तिओ के एक साथ एकत्रित होने से वह एक नारी उत्पन्न हुई | उस नारी का मुख भगवान शंकर के तेज़ से बना था, उनके बालो की रचना यमराज के तेज़ से हुई थी और भगवान विष्णु के तेज़ से उनकी भुजाएं उत्पन्न हुई |
चन्द्रमा और इंद्र के तेज़ से उनका मध्य भाग बना, वरुण के तेज़ से जंघा और पिंडली तथा पृथ्वी के तेज़ से नितंबभाग उत्पन्न हुआ | ब्रह्मा जी के तेज़ से चरण और सूर्य के तेज़ से उनकी उंगलिया | वसुओं के तेज़ से हाथों की उंगलिया और कुबेर के तेज़ से नासिका प्रकट हुई | प्रजापति के तेज़ से दांत और अग्नि के तेज़ से तीनों आँखे प्रकट हुई |
संध्या के तेज़ से भौहें और वसु के तेज़ से कान प्रकट हुए, इसी प्रकार सभी देवताओं के तेज़ के देवी के सभी अंगो की उत्पत्ति हुई |सभी से उत्पन्न तेज़ से प्रकट हुई देवी को देख सभी देवता बहुत प्रसन्न हुए |
माँ दुर्गा को अस्त्र-शस्त्र कैसे प्राप्त हुए?
भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से एक त्रिशूल निकालकर देवी को भेट किया, भगवान विष्णु ने भी अपने सुदर्शन चक्र से एक चक्र निकाल देवी को दिया | वरुण ने शंख, अग्नि ने शक्ति और वायु ने धनुष तथा बाणों से भरे तरकस देवी को अर्पण किए |
देवराज इंद्र ने अपने वज्र से वज्र उत्पन्न कर और ऐरावत हाथी के गले से घंटा उतार कर देवी को भेंट किया |
यमराज ने दंड, वरुण ने पाश, प्रजापति ने स्फटिकाक्ष की माला और ब्रह्मा जी ने कमंडल भेंट किया | सूर्य देव ने देवी के रोम-कूपों में अपनी किरणों के समान तेज़ भर दिया और काल ने चमकती हुई ढाल और तलवार दी |
समुद्र ने देवी को कभी न जीर्ण होने वाले वस्त्र तथा आभूषण दिए, विश्वकर्मा ने देवी को फरसा भेट किया | पर्वतराज हिमालय ने देवी को भिन्न-भिन्न प्रकार के रत्न तथा सवारी के लिए सिंह प्रदान किया |
माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर वध
उसके पश्चात् माँ दुर्गा ने उच्चस्वर में गर्जना की, जिससे सारा ब्रह्माण्ड काँपने लग |, उस कम्पन से सभी दैत्य डर गए और अपने अस्त्र-शस्त्र उठाकर खड़े हो गए |
उस गर्जना से महिषासुर भी बहुत क्रोद्धित हो उठा और बोला यह कैसी गर्जना है ?
जब दानव सेना ने बाहर जाकर देखा तो वहाँ उन्हें सहस्त्र भुजाओं वाली एक देवी दिखाई दी, जिनका तेज़ चारो दिशाओ में फैला हुआ था |
तभी वहाँ माँ दुर्गा का दैत्यों के युद्ध छिड़ गया | दैत्यों का सेना नायक महाबली महिषासुर था |
माँ दुर्गा ने खेल खेल में दैत्यों को अपने शस्त्रों से छिन्न-भिन्न कर दिया, किसी की गर्दन, किसी की बाजु, तो किसी की जाँघे काट कर माता ने युद्धभूमि पर खून की बड़ी-बड़ी नदिया बहा दी और दानवो की बड़ी-बड़ी सेनाओ को कुछ ही क्षणों में ही भस्म कर दिया |
सेना को तहस-नहस होता देख दैत्यों की सेना के सेनापति चिक्षुर क्रोध में भर कर माता से युद्ध करने आगे आया, देवी माँ ने उसे तत्काल उसके सारथि संग उसे मार डाला |
चिक्षुर की मृत्यु के बाद माँ दुर्गा ने एक-एक करके चामर और उदग्र जैसे महापराक्रमी दैत्यों की गर्दन काट उन्हें मार डाला |
इस तरह अपनी सेना का संघार होता देख महिषासुर क्रोध से भर गया और भैसें का रूप ले कर अपने सींघो से माता के ऊपर बड़े बड़े पहाड़ उठा कर फेंकने लगा | माता ने उसे अपने पाश में बाँध लिया |
पाश में बंधने के पश्चात उसने अपना यह रूप छोड़ सिंह का रूप ले लिया, इस प्रकार वह अपने बार-बार रूप बदलता रहा कभी भैसा,कभी सिंह, कभी हाथी, तो कभी पुरुष का |
यह देख माँ दुर्गा बोली महिषासुर तू अभी जितना भी गर्ज ले, किन्तु आज तेरी मृत्यु मेरे हाथो से निश्चित है |
ऐसा कह देवी उछल कर उस दैत्य के ऊपर चढ़ गयी और उसे अपने पैरो से दबा कर उसकी गर्दन में त्रिशूल गाड़ दिया |
महिषासुर अपने दूसरे रूप में आने का प्रयास करने लगा, किन्तु माँ दुर्गा के पैर से दबे होने के कारण वह आधा ही रूप ले सका और माता ने अपनी तलवार से उसका मस्तक काट दिया |
महिषासुर का वध होने के पश्चात दानव सेना डर कर भाग गयी और समस्त देवता गण बहुत प्रसन्न होकर देवी की स्तुति करने लगे |
आशा करते है कि हमारी प्रस्तुति आपको काफी पसंद आई होगी |