क्यों देवी दुर्गा ने काटा अपना ही शीश? (माता छिन्नमस्तिका कथा): हमारे भारतीय सभ्यता में कथाओं के माध्यम से सकारात्मक संस्कार समाज में प्रवाहित करने की रीत आदिकाल से ही चली आ रही है। भारत में प्रचलित जितनी भी कथाएं हैं उन सभी कथाओं के पीछे कोई ना कोई सार समाहित होता है। जो हमें जीवन जीने का श्रेष्ठ और सरल तरीका बतलाता है।
उन कथाओं में से ही एक कथा है जिस कथा में यह वर्णित है कि एक मर्तबा मां दुर्गा ने अपना ही सर काटा था।
आज हम भारतीय संस्कृति को प्रत्यक्ष करने वाले एक ऐसे रहस्यमई कथा को आपके सामने रखने जा रहे हैं जिन रहस्यों से ज्यादातर लोग अनभिज्ञ हैं। आज हम जानेंगे की आखिरकार ऐसा क्या घटित हुआ जिससे माता दुर्गा जी को अपना ही सर काटना पड़ा।
माता छिन्नमस्तिका कथा
माता छिन्नमस्तिका कथा (पहली कथा)
एक पौराणिक कथा के अनुसार माता दुर्गा अपनी दो सहेलियों जया और विजया के साथ, मंदाकिनी नदी में स्नान के लिए गईं। स्नान के पश्चात जया और विजया को तीव्र भूख की अनुभूति होने लगी। उन्होंने माता दुर्गा से कहा कि उन्हें बहुत जोरो की भूख लग रही है।
उस वक्त माता दुर्गा जगत कल्याण अर्थात मनसा सेवा में व्यस्त थी तो उन्होंने जया और विजया को तनिक धीरज रखने को कहा और उनसे कहा अर्थात थोड़ी देर में भोजन का प्रबंध हो जायेगा।
थोड़ी देर के पश्चात भूख और ज्यादा बढ़ने पर जब जया और विजया से रहा नहीं गया तब माता दुर्गा ने अपना ही गला काटकर अपनी सहेलियों को रक्तपान कराकर उनकी भूख शांत की।
जिस स्वरूप की मूर्ति छीन्नमाता के रूप में भारत में बिहार के रजरप्पा में पूजी जाती हैं।
माता छिन्नमस्तिका कथा (दूसरी कथा)
एक और कथा इस पर पौराणिक ग्रंथों में प्रचलित है कि जगत के कल्याण के लिए जब माता दुर्गा अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ असुरों से युद्ध कर रही थी। तब अनेकों असुरों का संहार करके उसका रक्तपान करने के उपरांत भी जब जया और विजया की भूख शांत नहीं हुई तब माता दुर्गा ने अपना ही शीश काटकर अपनी सहेलियों जया और विजया को रक्तपान कराकर उनकी भूख शांत की थी।
इस दौरान जब माता दुर्गा ने अपना शीश खड़ग से काटा था। तब उनके गले से रक्त की तीन धाराएं निकली थी जिसमे से रक्त की एक धारा देवी जया के मुख में गई, रक्त की दूसरी धारा देवी विजया के मुख में गई और तीसरी धारा देवी दुर्गा ने जो अपना शीश काटकर अपने ही हाथों में रखा हुआ था उसमे गई।
देवी दुर्गा के द्वारा अपना ही रक्त पान किए जाने का यह मंजर अत्यंत ही भयानक था। जिस दृश्य को देखकर देवता गण भी सहम गए कि कहीं फिर से देवी दुर्गा ने अगर काली का रूप ले लिया तो सृष्टि का विनाश हो जायेगा।
मां दुर्गा के द्वारा अपने ही गला काटने के इस स्वरूप की मूर्ति यादगार स्वरूप बिहार के रजरप्पा में स्थित है। जिस मूर्ति में यह दर्शाया गया है कि देवी दुर्गा खड़ग से शीश काटकर एक हांथ में खड़ग तो दूसरे हांथ में कटा हुआ शीश रखा हुआ है और माता के गले से रक्त की तीन धाराएं प्रवाहित हो रही हैं। जिसमे से एक धारा देवी जया, दूसरी धारा देवी विजया तो तीसरी धारा देवी दुर्गा के कटे हुवे सर में जा रही हैं।
मां दुर्गा के छिन्नमाता स्वरूप के इस मूर्ति में यह भी दर्शाया गया है की माता दुर्गा अपने इस छिन्नमाता के स्वरूप में एक कमल पुष्प पर खड़ी हैं। कमल पुष्प के ऊपर स्त्री पुरुष का जोड़ा कामुक अवस्था में सोया हुआ है।
माता छिन्नमाता स्वरूप का अर्थ
यह तो हुई पौराणिक कथाओं की बात पर दोस्तों जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हमारे हिंदू धर्म में जितनी भी कथाएं वर्णित हैं। उनके पीछे गुह्य रहस्य छुपे हुवे होते हैं, जो हमें जीवन जीने का श्रेष्ठ तरीका सिखाते हैं। जिससे कि मनुष्य आत्माओं में श्रेष्ठ संस्कार जागृत हो और उनके अवगुणों का विनाश हो।
तो दुर्गा माता का यह छिन्नमाता स्वरूप हमें शिक्षा देता है कि हमें गृहस्थ में रहते ब्रह्मचर्य की पालना कर जीवन में पवित्रता अपनाकर, अपना जीवन कमल पुष्प के समान न्यारा और प्यारा बनाना है।
जिस तरह कमल का पुष्प कीचड़ में रहते कीचड़ के प्रभाव से न्यारा रहता है और कमल पुष्प कीचड़ से अप्रभावित होने की वजह से अपनी खूबसूरती की वजह से सबका प्यारा बना रहता है। उसी तरह हमें भी गृहस्थ व्यवहार में रहते काम विकार इत्यादि नकारात्मक आसुरी संस्कार का त्याग करके, जीवन में ब्रह्मचर्य की पालना करते हुवे, पवित्रता जैसी दिव्य शक्ति को धारण करना चाहिए।
जहां जिसके जीवन में ब्रह्मचर्य की पालना होती है वहां पवित्रता के बल पर अन्य दिव्य गुण और शक्तियां स्वतः ही उसके जीवन का हिस्सा बन जाती हैं।
जब दिव्य गुण जागृत होते हैं तो हमारे सोच, बोल, कर्म में वह दिव्यता नजर आने लगती है। जिससे हमारी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी बुराइयां हमसे स्वतः ही दूर होती चली जाती हैं। गुणों के जागृत होने से अवगुण स्वतः ही सो जाते हैं।
इस बात का संस्कार समाज में प्रवाहित करने के उद्देश्य से मां दुर्गा के छिन्नमाता स्वरूप को प्रतीक के तौर पर कमल पुष्प पर कामुक जोड़े के ऊपर खड़े हुवे दिखलाया जाता है।
वहीं माता दुर्गा को छिन्नमाता के इस स्वरूप में दर्शाया गया है कि उन्होंने अपना गला काटा, इसके पीछे गुह्य आध्यात्मिक रहस्य यह है कि हमें अंतरात्मा के आसुरी संस्कार जैसे कि काम-विकार का गला काटना हैं।
अध्यात्मिक ज्ञान, स्व के गुणों-शक्तियों के ज्ञान, गीता ज्ञान रूपी तलवार या खड़ग के द्वारा हमें अंतरात्मा के आसुरी संस्कारों का गला काटना है। तब ही हमारा जीवन गृहस्थ में रहते कमल पुष्प समान पवित्र न्यारा और प्यारा होगा।
दोस्तों हम आशा करते हैं की हमारे द्वारा उपलब्ध करवाई गई यह रहस्यमई जानकारी आप सभी को पसंद आई होगी। धन्यवाद।