रामायण और महाभारत की इन औरतों ने क्यों की अपने ही देवर और जेठ से शादी?: हमारे समाज में देवर और भाभी का रिश्ता मां-बेटे के रिश्ते के समान माना जाता है, परंतु क्या आप जानते हैं कि महाभारत और रामायण में कई ऐसी कथाएं हैं जिसमें पति की मृत्यु के बाद देवर और भाभी या भाभी और जेठ के विवाह की बात सामने आती है।
आज आप जानेंगे कि आखिर कौन थी वह स्त्रियां और कैसी थी वे मजबूरियों, जिनके चलते उन्हें अपने ही पति के भाई से विवाह करने का बड़ा कदम उठाना पड़ा था।
रामायण और महाभारत की इन औरतों ने क्यों की अपने ही देवर और जेठ से शादी?तारा और सुग्रीव का विवाह
तारा एक अप्सरा थी जो बहुत विद्वान थी और राजनीति की अच्छी समझ रखती थी। उनका विवाह बलशाली और पराक्रमी बाली के साथ हुआ था।
जब बाली भगवान श्री राम के बाण से घायल हो गया था तो मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए है उसने अपनी पत्नी तारा को पास बुलाकर कहा कि मेरे जाने के बाद भी तुम्हारे ऐश्वर्य में कोई कमी नहीं आनी चाहिए, इसीलिए अच्छा यही होगा कि तुम मेरे अनुज सुग्रीव से विवाह कर लो।
अपनी आखिरी सांसें गिनते हुए बाली ने अपने छोटे भाई सुग्रीव के हाथ में पत्नी तारा का हाथ दे दिया। पति की अंतिम इच्छा का मान रखते हुए तारा ने अग्नि को साक्षी मानकर अपने देवर सुग्रीव से विवाह कर लिया।
मंदोदरी का विभीषण से विवाहरावण की पत्नी मंदोदरी अप्सरा रंभा की पुत्री थी और अत्यंत प्रभावशाली महिला थी। रावण की मृत्यु के बाद मंदोदरी को भी अपने देवर विभीषण से विवाह करना पड़ा था। हालांकि पहले मंदोदरी ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया था और अपने आप को रावण के राज्य से भी अलग कर लिया था।
परंतु रावण ने अपने आखिरी क्षणों में मंदोदरी को बताया कि उसे पहले से ज्ञात था कि उसकी मुक्ति श्री राम के हाथों ही लिखी है। मृत्यु के समय रावण ने ऐसी इच्छा जताई थी कि उसकी मृत्यु के पश्चात मंदोदरी का विवाह विभीषण से हो क्योंकि उसके कुल का कोई भी पुरुष शेष नहीं बचा था और कुल की मर्यादा की रक्षा के लिए यह आवश्यक था कि मंदोदरी और विभीषण का विवाह हो।
रावण ने मृत्यु के समय यह भी कहा था कि विभीषण धर्म के मार्ग पर है और राज्य चलाने के लिए उसे मंदोदरी की सलाह की आवश्यकता होगी इसलिए उनका विवाह राज्य के हित में भी था। इसी कारण वश मंदोदरी विभीषण से विवाह करने के लिए तैयार हो गई थीं।
अर्जुन और भानुमति का विवाह
कंबोज की राजकुमारी एवं राजा चंद्रवर्मा की पुत्री भानुमति स्वर्ग की अप्सराओं से भी खूबसूरत थी। राजा ने अपनी बेटी भानुमति के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया जहां दुर्योधन और कर्ण भी आए।
भानुमति को देख दुर्योधन ने मन ही मन उससे विवाह करने की ठान ली, परंतु जैसे ही भानुमति हाथ में वरमाला लिए दुर्योधन को देखकर आगे बढ़ गई वैसे ही दुर्योधन को क्रोध आ गया और उसने जबरन भानुमति से वरमाला अपने गले में डलवा ली। स्वयंवर में उपस्थित बाकी राजाओं ने जब इस बात का विरोध किया तो दुर्योधन ने सभी को युद्ध की चुनौती दे दी।
दुर्योधन ने सभी को कर्ण से युद्ध करने को कहा और कर्ण ने सब को पराजित कर दिया। दुर्योधन ने अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करते हुए भानुमति से जबरन विवाह कर लिया था लेकिन भानुमति तो कर्ण की वीरता से प्रभावित थी और उन्हें मन ही मन पसंद भी करती थी, लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था |
जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो दुर्योधन और कर्ण मारे गए थे। साथ ही अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने भानुमति के पुत्र लक्ष्मण का भी वध कर दिया था। युद्ध समाप्त होने के पश्चात जब युधिष्ठिर राजा बने तो पारिवारिक संबंधों की नई गाथा लिखने का एक प्रयास किया गया और भानुमति ने अर्जुन को अपना पति स्वीकार कर लिया।
इस तरह महाभारत युद्ध के बाद एक नए रिश्ते की कहानी लिखी गई।
अंबिका और अंबालिका का वेदव्यास जी के साथ मिलन
चित्रांगद शांतनु और सत्यवती के पुत्र थे, परंतु युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई थी। उसी के परिणाम स्वरूप विचित्रवीर्य राजा बन गए।
विचित्रवीर्य की दो पत्नियां थी अंबिका और अंबालिका, जो की काशी की राजकुमारियां थी। परंतु विचित्रवीर्य को अपनी दोनों पत्नियों में से किसी के साथ भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई और वह भी चल बसे। विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद कुरु वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं था। ऐसे में नियोग प्रथा का उपयोग ही एक मात्र सहारा उपाय था।
पुत्र मोह के चलते और वंश को आगे बढ़ाने के लिए सत्यवती ने अपने पहले बेटे वेदव्यास का ध्यान किया। सत्यवती ने वेदव्यास जी से अंबिका और अंबालिका की संतान प्राप्ति की इच्छा जाहिर की। एक-एक करके दोनो रानियां वेदव्यास जी के समक्ष गईं और आखिर में बड़ी रानी अंबिका की एक दासी भी वेदव्यास जी के समक्ष संतान प्राप्ति हेतु गई।
जिसके चलते अंबिका से धृतराष्ट्र, अंबालिका से पांडू और दासी से विदुर का जन्म हुआ। यह तीनों ही ऋषि वेदव्यास जी के पुत्र थे।
आज के लिए इतना ही, आशा करता हूँ आपको हमारी आज की यह प्रस्तुति पसंद आई होगी | नमस्कार।