तुलसी माता ने क्यों दिया था भगवान विष्णु को श्राप?

आज हम आपको बताएंगे कि तुलसी माता ने क्यों दिया था भगवान विष्णु को श्राप और कैसे मां तुलसी वृंदा से तुलसी बनी?

तुलसी माता ने क्यों दिया था भगवान विष्णु को श्राप

तुलसी माता ने क्यों दिया था भगवान विष्णु को श्राप?


माता तुलसी कथा

कौन थी वृंदा?

मां तुलसी का नाम वृंदा था और उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी और हमेशा पूरे मन से उनकी पूजा-अर्चना किया करती थी। वृंदा जब विवाह लायक हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल के दानवराज जालंधर से हुआ।

वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप क्यों दिया?

ऐसा माना जाता है कि जालंधर ने समुद्र से जन्म लिया था। विवाह के बाद वृंदा सच्चे मन से पति की सेवा किया करती थी। एक बार की बात है जब देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया और युद्ध पर जाते हुए वृंदा ने अपने पति जालंधर से कहा कि आप तो युद्ध पर जा रहे हैं परंतु जब तक आप विजई हो कर वापस नहीं आएंगे तब तक मैं आपके लिए पूजा अनुष्ठान करती रहूंगी।

जालंधर युद्ध पर चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। वृंदा का तप बल और सत्व इतना था कि जालंधर और शक्तिशाली हो रहा था। वृंदा के व्रत के प्रभाव के चलते देवता जालंधर से जीतने में असफल हो रहे थे। जब देवता हारने लगे तो वे विष्णु जी के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना करने लगे कि किसी तरह से युद्ध जीतने में उनकी मदद की जाए।

भगवान विष्णु सोच में पड़ गए क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनकी परम भक्त वृंदा को कैसे रोका जाए?

सोच विचार करने के बाद भगवान विष्णु ने वृंदा की पूजा में विघ्न डालने के लिए वृंदा के पति जालंधर का वेश धारण कर लिया। भगवान विष्णु जालंधर के रूप में वृंदा के महल में गए। वृंदा ने जैसे ही अपने पति जालंधर को देखा तो उनके चरण स्पर्श करने के उद्देश्य से वह अपनी पूजा से उठ गई जिससे वृंदा का संकल्प टूट गया। इधर वृंदा का संकल्प टूटा और उधर देवताओं ने जालंधर का सिर धड़ से अलग कर दिया ।

जब भगवान विष्णु के छल के बारे में वृंदा को पता चला तो पहले तो वह जालंधर का कटा हुआ सर लेकर बहुत रोई, परंतु सती होने से पहले वृंदा ने विष्णु जी को शीला यानी पाषाण बनने का श्राप दे दिया। वृंदा के श्राप देने पर विष्णु जी शीला बन गए।

लेकिन इस बात से सभी देवी-देवता परेशान हो गए और उन्होंने मिलकर वृंदा को बहुत समझाया कि वह विष्णु जी को श्राप से मुक्त कर दे। आखिरकार वृंदा मान गई और भगवान विष्णु पुनः अपने वास्तविक रूप में आ गए। जिसके बाद वृंदा अपने पति को लेकर सती हो गई।

वृंदा कैसे बनी माता तुलसी?

भगवान विष्णु ने देखा कि जिस स्थान पर वृंदा सती हुई थी वहां अब एक छोटा पौधा उग गया था। वृंदा से किए गए छल का प्रायश्चित करते हुए भगवान विष्णु जी ने खिले हुए पौधे को तुलसी का नाम दिया और उन्होंने यह भी कहा कि मेरा एक स्वरूप शीला के रूप में उनके साथ रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा।

भगवान विष्णु वृंदा से कहते हैं कि तुम्हारा सतीत्व धन्य है, आज से मैं शालिग्राम के रूप में तुम्हे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करता हूं और मेरे इस रूप पर केवल तुलसी का ही अधिकार होगा, अन्य किसी का नही। विष्णु जी ने यह भी कहा कि देवी तुलसी की पूजा के बिना मैं कोई भी भोग स्वीकार नहीं करूंगा और तब से भगवान विष्णु को जो भी भोग अर्पण किया जाता है उसमे तुलसी दल का होना आवश्यक माना जाता है।

तब से तुलसी जी के साथ शीला रूप में भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप को पूजा जाता है। कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है तथा एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के पर्व में मनाया जाता है।

आज के लिए इतना ही, आशा करता हूँ आपको हमारी आज की यह प्रस्तुति पसंद आई होगी | नमस्कार।

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