श्री कृष्ण ने बर्बरीक से शीश दान में क्यों माँगा था? (खाटू श्याम कथा): हिंदू महाकाव्य महाभारत में वर्णित कौरवों और पांडवों के बीच हुआ महाभारत का युद्ध सबसे भीषण युद्ध माना जाता है, जिसमें कौरवों और पांडवों की ओर से अर्जुन, गुरु द्रोण, भीम, भीष्म पितामह, अश्वत्थामा और कर्ण जैसे बहुत से वीर योद्धाओं ने भाग लिया था। महाभारत युद्ध के दौरान कौरवों और पांडवों दोनों के लाखों योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए थे। उस युद्ध में पांडवों की विजय हुई थी।
उनकी विजय में बर्बरीक जिन्हें आप और हम बाबा खाटू श्याम के नाम से जानते हैं, उन्होंने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बर्बरीक एक महान धनुर्धर थे, जो आज बाबा खाटू श्याम के नाम से पूजे जाते हैं।
आज की इस पोस्ट में हम आपको बताने वाले हैं आख़िर बर्बरीक कौन थे और उनके बाबा खाटू श्याम बनने के पीछे की कथा क्या है?
मित्रों यह तो आप सभी जानते ही हैं कि महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण धर्म यानि कि पांडवों के साथ थे और उन्होंने ही पांडवों की जीत सुनिश्चित की थी। जिसके लिए उन्होंने कौरवों की ओर से लड़ रहे कर्ण, भीष्म पितामह और गुरु द्रोण जैसे वीर योद्धाओं को युद्ध के दौरान युद्ध कला और अपने अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करने से रोक दिया था।
क्योंकी श्री कृष्ण जानते थे कि इन वीर योद्धाओं का पराक्रम इतना है कि वो एक ही क्षण में पांडवो की सेना का संघार करके और महाभारत का युद्ध समाप्त करके कौरवों को विजय दिला सकते हैं। श्री कृष्ण यह नहीं चाहते थे कि इस धर्म युद्ध में अधर्म की जीत हो।
खाटू श्याम कथा
महाभारत युद्ध के दौरान एक ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने युद्ध ना लड़कर पांडवों की जीत सुनिश्चित की थी। वह भीम के पौत्र और उनके पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे, जिन्हें हारे का सहारा भी कहा जाता था।
बर्बरीक बहुत बड़े धनुर्धर और शिव जी के भक्त थे, उन्हें शिवजी से वरदान स्वरूप तीन अमोघ बाण मिले थे जो उन्हें तीनों लोको का विजेता बनाने की क्षमता रखते थे।
बर्बरीक को जब महाभारत के युद्ध के बारे में ज्ञात हुआ, तो वो युद्ध देखने आ गए। श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम और उनकी शक्तियों के बारे में जानते थे, उन्हें इस बात की चिंता सताने लगी कि यदि बर्बरीक युद्ध में शामिल हुए तो वो अवश्य ही कौरवों की ओर से युद्ध करेंगे क्योंकि युद्ध में कौरवों की सेना पांडवो से पराजित हो रही थी और वो सदा हारने वाले का साथ देते थे।
इसलिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को युद्ध से दूर रखने की एक युक्ति निकाली और अपना वेश बदलकर अर्जुन के साथ बर्बरीक से मिलने पहुंच गए। बर्बरीक युद्ध देखने के लिए निकलने ही वाले थे, तभी श्री कृष्ण की मुलाकात उन से हो गई। ब्राह्मण रूप में वह श्री कृष्ण को पहचान नहीं पाए।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक की तरकस में तीन तीर देखकर उनका उपहास उड़ाते हुए उन्हें चुनौती दी कि अगर तुम श्रेष्ठ धनुर्धर हो तो इस पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक ही तीर में काट कर दिखाओ, लेकिन उससे पहले उन्होंने एक पीपल का एक पत्ता अपने पैरों के नीचे दबा लिया।
बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार कर ली और तीर चला दिया, उस तीर ने कुछ ही क्षणों में पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को काट दिया, जिसके बाद वह भगवान श्री कृष्ण के चक्कर लगाने लगा। बर्बरीक तुरंत समझ गए कि एक पत्ता उनके पैरों के नीचे दबा है अतः उन्होंने पत्ते के ऊपर से पैर हटाने का अनुरोध किया और जैसे ही पत्ते के ऊपर से पैर हटा तीर ने अपना काम पूरा कर लिया।
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श्री कृष्ण ने बर्बरीक से शीश दान में क्यों माँगा था?
श्री कृष्ण बर्बरीक का यह पराक्रम देखकर समझ गए कि वह जिस ओर से भी युद्ध करेंगे उसकी जीत निश्चित है। अतः उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि तुम किस ओर से युद्ध करोगे, तो बर्बरीक ने जवाब दिया कि अपनी मां को दिए वचन के अनुसार वह उसी ओर से लड़ेंगे जिसकी हार निश्चित है।
जिसके बाद श्री कृष्ण दोबारा ब्राह्मण के वेश में बर्बरीक के पास पहुंच गए और उनसे दान में उनका शीश मांग लिया। बर्बरीक पहचान गए कि यह ब्राह्मण कोई और नहीं, बल्कि भगवान श्री कृष्ण हैं। बर्बरीक महान योद्धा होने के साथ-साथ अपने वचन के पक्के भी थे। अतः उन्होंने खुशी-खुशी अपना शीष दान देने की बात स्वीकार कर ली, परंतु उन्होंने शीश काटने से पहले एक बार श्री कृष्ण से अपने वास्तविक स्वरूप में दर्शन देने की विनती की। जिसे श्री कृष्ण ने स्वीकार कर लिया और बर्बरीक से एक और इच्छा बतलाने को कहा। तब बर्बरीक बोले कि वो अपने कटे सिर से ही महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहते हैं।
श्रीकृष्ण ने उनकी इस इच्छा को पूरा किया और बर्बरीक का कटा हुआ सिर समीप ही खाटू नाम की पहाड़ी के ऊपर रख दिया, जहां से बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा। युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक को एक और वरदान दिया कि कलयुग में वह श्री कृष्ण अवतार के रूप में पूजे जाएंगे और आज बर्बरीक को हारे का सहारा और खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। उनके दर्शन करने मात्र से ही उनके भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
आज के लिए इतना ही, आशा करते है आपको हमारी आज की यह पोस्ट पसंद आई होगी | नमस्कार |