भगवान विष्णु के 24 अवतार की कथा

भगवान विष्णु के 24 अवतार


श्रीमद भागवत महापुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार शौनकादि अठ्ठासी हज़ार ऋषियों के साथ भगवान को प्राप्त करने की इच्छा से नैमिष क्षेत्र में सहस्त्र वर्ष का यज्ञ कर रहे थे |

तभी सूत जी वहाँ पधारे, उन्हें वहाँ आया देख समस्त ऋषिगण उनके सम्मान में खड़े होकर उन्हें प्रणाम करने लगे और बोले आप तो समस्त पुराणों और शास्त्रों के ज्ञाता है, कृपया करके हमें भगवान के अवतारों के बारे में बताएं |

यह सुन सूत जी बोले परब्रह्म भगवान ने जब सृष्टि रचना हेतु इच्छा की तो, महतत्व यानि पंच महाभूत और ग्यारह इन्द्रियों वाला पुरुष रूप धारण किया | जब प्रलय में चारों ओर जल ही जल हो जाता है तब भगवान अपनी शेष शैय्या पर योगनिद्रा में सो जाते है और उनकी नाभि से प्रकट हुए कमल के फूल से ब्रह्मा जी प्रकट हो जाते है |

ब्रह्मा जी से मरीचि आदि ऋषि, देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि उतपन्न होते है |

भगवान विष्णु के 24 अवतार की कथा


भगवान के मुख्य रूप से 24 अवतार माने गए है |

भगवान विष्णु का पहला अवतार: पहला अवतार सनकादि ऋषियों यानि सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार इन चारों ब्राह्मणों के रूप में लिया, जिन्होंने केवल 5 वर्ष की आयु में अत्यंत कठिन अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया |

भगवान विष्णु का दूसरा अवतार: भगवान ने दूसरा अवतार वराह रूप में लिया, इसी रूप में भगवान पृथ्वी को पाताल से निकाल कर लाए थे |

भगवान विष्णु का तीसरा अवतार: तीसरा अवतार नारद जी के रूप में लिया और सात्वत तंत्र यानि नारद पांचरात्र का उपदेश किया, उसमे कर्मो के द्वारा किस प्रकार कर्मबन्धन से मुक्ति मिलती है उसका वर्णन किया |

भगवान विष्णु का चौथा अवतार: चौथा अवतार नर-नारायण के रूप में लिया और ऋषि बनकर मन और इन्द्रियों को संयम में कर कठिन तपस्या की |

भगवान विष्णु का पांचवा अवतार: पांचवे अवतार में उन्होंने कपिल मुनि के रूप धारण कर सांख्य शास्त्र के द्वारा आसुरि नामक ब्राह्मण को ज्ञान दिया |

भगवान विष्णु का छठा अवतार: अनसूया के वर मांगने पर भगवान ने छठा अवतार दत्तात्रेय के रूप में लिया और प्रह्लाद को आत्मविद्या का ज्ञान दिया |

भगवान विष्णु का सातवां अवतार: सातवां अवतार यज्ञ रूप में लिया और अपने पुत्र याम आदि देवताओं के साथ स्वायंभुव मन्वन्तरि की रक्षा की |

भगवान विष्णु का आठवां अवतार: आठवें अवतार में ऋषभ देव के रूप में आकर परमहंसों को ज्ञान का मार्ग दिखाया |

भगवान विष्णु का नौवां अवतार: नौवें अवतार में भगवान ने राजा पृथु बन, पृथ्वी से सभी औषधियों का दोहन किया |

भगवान विष्णु का दसवां अवतार: चाक्षुष मन्वन्तर के अंत में सारी त्रिलोकी जब डूब रही थी, तब उन्होंने दसवें अवतार में मतस्य रूप धारण कर वैवस्वत मुनि की रक्षा की |

भगवान विष्णु का ग्यारहवां अवतार: समुद्र मंथन के समय भगवान ने अपना ग्यारहवां अवतार कच्छप रूप में लेकर मंदराचल पर्वत का भार अपनी पीठ पर उठा लिया था |

भगवान विष्णु का बारहवां अवतार: बारहवां अवतार धन्वंतरि का धारण कर अमृत कलश लेकर सिंधु में प्रकट हुए |

भगवान विष्णु का तेरहवां अवतार: तेरहवें अवतार में मोहिनी रूप में प्रकट होकर, देवताओं को अमृत-पान कराकर दैत्यों से उनकी रक्षा की |

भगवान विष्णु का चौदहवां अवतार: चौदहवां अवतार उन्होंने नरसिंह के रूप में लिया और हिरणाकुश का वध कर धर्म की रक्षा की |

भगवान विष्णु का पन्द्रहवां अवतार: पन्द्रहवां अवतार उन्होंने वामन रूप में लिया और राजा बलि का अहंकार तोडा |

भगवान विष्णु का सोलहवां अवतार: सोलहवां अवतार उन्होंने परशुराम रूप में लिया और ब्राह्मणो की क्षत्रियों से रक्षा के लिए धरती से 21 बार क्षत्रियों का नाश किया |

भगवान विष्णु का सत्रहवां अवतार: सत्रहवां अवतार में प्रेशर मुनि के रूप में जन्म लिया और उस समय लोगो की समझ और धारणाशक्ति को कम होता देख उन्होंने वेदरूप वृक्ष की कई शाखाएं बना दी |

भगवान विष्णु का अठारवां अवतार: अठारहवें अवतार में उन्होंने मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम रूप में जन्म लिया और बहुत वीरतापूर्ण लीलाएँ की |

भगवान विष्णु का उन्नीसवां और बीसवां अवतार: उन्नीसवें तथा बीसवें अवतार में उन्होंने श्री कृष्ण और बलराम रूप में जन्म लेकर पृथ्वी का भार उतार दिया |

भगवान विष्णु का इक्कीसवां अवतार: इक्कीसवें अवतार में उन्होंने देवताओं के शत्रु दैत्यों को मोहित करने के लिए बुद्धावतार लिया |

भगवान विष्णु का बाइसवां और तेइसवां अवतार: बाइसवे अवतार में भगवान ने हयग्रीव रूप में तथा तेइसवां अवतार हंस रूप में लिया |

भगवान विष्णु का चौबीसवां अवतार: चौबीसवां अवतार कलियुग में कल्कि रूप में होगा |

जब लोग दैत्यों के अत्याचार से व्याकुल हो उठते है तब भगवान अनेक रूप धारण कर उनकी रक्षा करते है |
भगवान के दिव्य जन्मो की कथा अत्यंत गोपनीय तथा रहस्मयी है, जो मनुष्य भगवान विष्णु के 24 अवतार की कथा को एकाग्रचित से और नियमपूर्वक प्रातः काल और सांयकाल पड़ता है उसके सारे दुःख दूर हो जाते है |

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