भीष्म पितामह को मिली बाणों की शैय्या: महाभारत हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथो में से एक ग्रन्थ है| उसी महाभारत के बहुत से ऐसे पात्र है जिनसे जुडी कथाये बहुत ही विचित्र है| उन्ही महत्वपूर्ण पात्रो में से एक पात्र है भीष्म पितामह, जिनका मूल नाम देवव्रत था| आज हम आपको बताएँगे कि कैसे देवव्रत का नाम भीष्म पड़ा और उन्होंने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसके कारण उन्हें बहुत ही दुखदायी बाणो की शैय्या पर 58 दिन तक कष्ट भोगने पड़े थे|
देवव्रत का नाम भीष्म कैसे पड़ा?
देवव्रत भगवान परशुराम के बहुत शक्तिशाली और विद्वान शिष्य थे| देवव्रत ब्रह्मचारी थे और सभी शस्त्रों के ज्ञानी भी थे, जिनको हरा पाना असंभव था|
एक ऐसे पुत्र थे जिन्होंने अपने पिता के लिए अपनी समस्त इच्छाओं और सुखो का त्याग कर दिया था |
अब हम आपको बताएँगे कि देवव्रत का नाम भीष्म कैसे पड़ा और उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान कैसे मिला?
देवव्रत राजा शांतनु और माता गंगा के पुत्र थे| माता गंगा के स्वर्ग लोक लौट जाने के बाद, एक बार महाराज शांतनु शिकार करने के लिए गए और उनकी दृष्टि एक नाव चलाने वाली कन्या पर पड़ी, जिसका नाम सत्यवती था|
सत्यवती बहुत सुन्दर थी, और उसकी सुंदरता पर महाराज शांतनु मोहित हो गए| सत्यवती से विवाह के उद्देश्य से महाराज शांतनु उनके पिता से उनका हाथ मांगने के लिए गए, किन्तु सत्यवती के पिता दासराज ने विवाह के लिए एक शर्त रख दी, जिसके अनुसार सत्यवती का पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा|
शांतनु के लिए यह धर्म संकट था कि कैसे वह अपने ज्येष्ठ पुत्र देवव्रत का अधिकार सत्यवती से होने वाली संतान को देते|
तब महाराज सत्यवती के वियोग में उदास रहने लगे, देवव्रत के बार बार पूछने पर भी शांतनु ने उन्हें कुछ नहीं बताया| महाराज के सारथि ने देवव्रत को सारा वृतांत सुनाया, जिसे सुनने के बाद देवव्रत तुरंत सत्यवती के पिता दासराज से मिलने गए और उनके आगे प्रतिज्ञा ली कि मैं आजन्म ब्रम्चारी रहूँगा और सत्यवती की जो भी संतान होगी वही हस्तिनापुर के सिंघासन पर विराजमान होगी|
सत्यवती को प्राप्त करके महाराज शांतनु बहुत प्रसन्न हुए और देवव्रत की इस पितृभक्ति को देखकर बोले कि हे पुत्र मैं तुम्हारी इस पितृभक्ति को देख बहुत प्रसन हूँ इसलिए मैं तुम्हे इच्छा मृत्यु का वरदान देता हूँ| और तुम्हारी इस भीष्म प्रतिज्ञा के कारण तुम विश्व में भीष्म नाम से विख्यात होंगे|
क्यों भीष्म पितामह को बाणो की शैय्या पर लेटना पड़ा था ?
अब हम आपको बताएँगे कि भीष्म पितामह ने ऐसा कौनसा पाप किया था जिसके कारण उन्हें बाणो की शैय्या पर लेटना पड़ा था ?
महाभारत युद्ध के दसवें दिन तक भीष्म पितामह भीषण युद्ध करते रहे और स्वयं उनके द्वारा अपनी मृत्यु का उपाए बताने के बाद अर्जुन ने उसी दिन उनपर बाणो की वर्षा कर दी| और वह घायल होकर बाणो की शैय्या पर लेट गए|
58 दिन तक वो उस कष्ट भरी शैय्या पर जीवित रहे | इच्छा मृत्यु का वरदान के होते हुए भी वो इतने दिन तक ये कष्ट इसलिए भोगते रहे क्योकि वह जानते थे कि सूर्य उत्तरायण के दिन मृत्यु को प्राप्त होने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है| इसलिए उन्होंने अपनी इच्छा से सूर्य उत्तरायण के दिन प्राण त्यागे|
बाणों की शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह के विचलित मन को शांत किया भगवान श्री कृष्ण ने
किन्तु जब वह बाणो कि शैय्या पर लेटे थे उनके मन में एक प्रश्न निरंतर उठ रहा था जिससे वह बहुत विचलित हो रहे थे|
तब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से कहा हे प्रभु मैं ये तो जानता हूँ कि मनुष्य द्वारा किए गए अच्छे व् बुरे कर्मो का फल उसे अवश्य ही भोगना पड़ता है, परन्तु मैंने अपने पिछले 100 वर्षो का स्मरण किया जिसमे मैंने कोई भी पाप नहीं किया था| प्रभु कृपया आप मेरी इस मशा को दूर करे कि कैसे मुझे बिना पाप किए ये दुःख भोगना पड़ रहा है|
भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले कि हे भीष्म आप तो केवल अपने पिछले 100 जन्मो को स्मरण कर पा रहे है किन्तु मैं तो आपके भूत, भविष्य और वर्तमान तीनो को पूर्ण रूप से देख सकता हूँ|
आप अपने 101वे जन्म में एक राजकुमार थे और एक दिन शिकार के लिए जा रहे थे, किन्तु आपके मार्ग में एक सर्प आ गया जिसे देख आप अपने रथ से नीचे उतरे और उसे उठा कर किनारे कर दिया|
दुर्भाग्यपूर्ण वहाँ पर कटीली झाड़ियाँ थी, जिसमे वह सर्प बुरी तरह से फंस गया और जितनी अधिक चेष्टा वह निकलने की करता उतना और फसता जाता|
18 दिन तक वह यूही तड़पता रहा और वही मर गया|
भीष्म, जब वह तड़प रहा था तब वह यही प्राथना कर रहा था कि हे प्रभु जैसे मैं इस पीड़ा को भोग रहा हूँ वही पीड़ा ये राजकुमार भी भोगे|
यह सुन भीष्म बोले कि हे माधव मैंने माना कि मैंने वो पाप किया तो मुझे ये दुःख भोगना पड़ा कित्नु यह कष्ट मुझे 100 वर्ष पूर्व ही क्यों भोगने पड़े|
भगवान बोले कि हे भीष्म पिछले 100 वर्ष में तुमने कोई भी पाप नहीं किया, किन्तु इस जन्म में तुमसे पाप हुए|
कौरव अधर्मी थे यह जानते हुए भी तुमने उनका पक्ष लिया और जब द्रुपदी का चिर हरण हो रहा था तब भी तुमने ना कुछ बोल कर अधर्म का ही साथ दिया| इसी कारण तुम्हे इस जन्म में उस पाप का फल भोगना पड़ा|
यह सुन भीष्म पितामह की सभी मंशाएं दूर हुई और उनको बहुत संतोष प्राप्त हुआ|