ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कौन सबसे शक्तिशाली है ?

हमारे मन में यह जानने की जिज्ञासा सदैव उत्पन होती रहती है कि त्रिदेव में से कौन सबसे शक्तिशाली है ?

ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कौन सबसे शक्तिशाली है?

हमारे पुराणों में कुछ कथाएँ मिलती है जिनके अनुसार हम जान सकते है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से कौन सबसे बड़ा है |

शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश में कौन सबसे बड़ा है?


शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी के मन में स्वयं की उत्पति को लेकर प्रश्न आया, उसी प्रश्न के उत्तर को प्राप्त करने के लिए उन्होंने घोर तपस्या की|

जिससे उन्हें ज्ञात हुआ कि भगवान विष्णु की नाभि से प्रकट हुए कमल के पुष्प से उनका जन्म हुआ है |

वो जानते थे कि वो सृष्टि के रचयता है, उसी अहंकार में वो भगवान विष्णु के समक्ष गए और कहने लगे कि हे विष्णु मैं तुमसे ज्यादा श्रेष्ट हूँ| उधर भगवान विष्णु बोले कि तुम्हारी उत्पति मेरे द्वारा हुई है इसलिए तुमसे ज्यादा मैं श्रेष्ट हूँ |

अहंकार में दोनों का विवाद इस हद तक बढ़ गया था कि युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने लगी थी | भगवान शंकर दूर से बैठे यह सब देख रहे थे |

यह देख उनके विवाद को शांत करने हेतु उनके समक्ष अग्निलिंग के रूप में प्रकट हो गए, जिसका ना तो कोई आदि था और ना कोई अंत |

उसे देख भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने यह सहमति बनाई कि जो भी इस अग्निलिंग का आदि या अंत ढूंढ लेगा वही दोनों में श्रेष्ट माना जाएगा|

ब्रह्मा जी अग्निलिंग के ऊपर की ओर चले गए और विष्णु जी अग्निलिंग के नीचे की ओर चले गए |

दोनों को बहुत दूर जाने के बाद भी उस लिंग का अंत नहीं मिला और वो थक कर वापस आगए| वापस आने के पश्चात भगवान विष्णु ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली, किन्तु ब्रह्मा जी ने झूठ बोला कि उन्होंने इस लिंग का अंत ढूंढ लिया है |

ब्रह्मा जी के मुख से झूठ सुन भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए और उनके क्रोध से भैरव अवतार ने जन्म लिया |

उसी भैरव अवतार ने ब्रह्मा जी का पांचवा मुख अपनी छोटी ऊँगली के नाखून से काट दिया था, जिस मुख से उन्होंने झूठ बोला था |

भगवान शंकर ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि संसार में उनकी पूजा नहीं होगी और विष्णु जी को स्वयं के समान पूजे जाने का आशीर्वाद दिया |

शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर ही त्रिदेव में सबसे बड़े है |

श्रीमद भागवत के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश में कौन सबसे बड़ा है?


श्रीमद भागवत के अनुसार एक बार सप्त ऋषि गण आपस में एक विषय पर बात कर रहे थे कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से कौन सबसे श्रेष्ठ है | तब सप्त ऋषियों में से महृषि भृगु के मन में विचार आया कि क्यों न त्रिदेव की परीक्षा ली जाये, जिससे पता चल जायेगा कि कौन सबसे श्रेष्ठ है?

सर्वप्रथम भृगु ऋषि ब्रह्मा जी के पास गए | और उनके पास जाकर ना ही उनकी स्तुति की और ना ही उन्हें प्रणाम किया| यह देख ब्रह्मा जी को बहुत क्रोध आया |

ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि है, यही सोच कर उन्होंने अपना क्रोध शांत कर लिया |

उसके पश्चात भृगु ऋषि महादेव के पास कैलाश पर्वत पर पहुंचे | भृगु ऋषि को आया देख भगवान शंकर मुस्कुराते हुए अपने आसन से उठे और भृगु ऋषि को गले लगाने के लिए आगे बढे| किन्तु भृगु ऋषि की मंशा तो भगवान की परीक्षा लेने की थी, इसलिए उन्होंने भगवान से गले मिलने से मना कर दिया और कहने लगे कि आपके द्वारा बिना सोचे समझे पापियों और अधर्मियों को दिए गए वरदान की वजह से सृष्टि पर बार बार संकट आता है |  ऐसे में मैं आपका आलिंगन भला क्यों स्वीकार करूं?

यह सुन महादेव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपना त्रिशूल उठा लिया | माता पार्वती ने उन्हें किसी तरह शांत किया |

फिर भृगु ऋषि बैकुंठ धाम पहुंचे जहाँ भगवान नारायण माता लक्ष्मी के साथ क्षीरसागर में विश्राम कर रहे थे | भृगु ऋषि ने वहाँ जाकर उनके वक्ष स्थल पर लात मारी | भगवान नारायण तभी अपने आसन से खड़े हुए और भृगु ऋषि के चरणों में हाथ जोड़ कर बैठा गए और बोले हे महृषि मेरा वक्ष स्थल बहुत कठोर है, आपके पैर में कही चोट तो नहीं आयी ना?

मुझे क्षमा कीजिये क्युकी मुझे ज्ञात नहीं था कि आप यहाँ आने वाले है और इसी कारण मैं आपका स्वागत नहीं कर सका, कृप्या आसन ग्रहण करे |

भगवान का करुणा भाव देख भृगु ऋषि के आँखों में आंसू आने लगे |

उसके पश्चात् भृगु ऋषि ने अपने सभी अनुभव सप्तऋषिओ को सुनाये, जिसके बाद सभी ऋषियों ने भगवान नारायण को सबसे श्रेष्ठ बताया |

सप्तऋषिओ की कथा के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश में कौन सबसे बड़ा है?


सप्तऋषिओ की कथा के अनुसार एक बार त्रिदेव साथ बैठे होते है, तभी भगवान शंकर के मन में एक विचार आता है कि मैं सृष्टि का विनाशक हूँ| क्या मेरे पास इतनी शक्ति है कि मैं सामने बैठे ब्रह्मा जी और विष्णु जी का भी विनाश कर सकता हूँ |

भगवान शंकर के मन में ऐसे विचार आया देख ब्रह्मा जी और विष्णु जी दोनों मुस्कुराने लगे और ब्रह्मा जी महादेव से बोले हे महादेव आप अपनी शक्ति का प्रयोग मुझपर कीजिये |

यह सुन भगवान शंकर ने जैसे ही अपनी शक्ति का प्रयोग ब्रह्मा जी पर किया, ब्रह्मा जी जलने लगे और राख का ढेर बन गए |

यह देख भोलेनाथ चिंता करने लगे कि अब इस सृष्टि का निर्माण कौन करेगा ? तभी उस राख के ढेर से आवाज़ आयी हे महादेव मुझे कुछ नहीं हुआ, मेरे जलने से इस राख का निर्माण हुआ है और जहाँ निर्माण है वहाँ मैं हूँ और ब्रह्मा जी पुन प्रकट हो गए |

फिर भगवान नारायण बोले हे महादेव अब आप अपनी शक्तियों का प्रयोग मुझपर कीजिये |

यह सुन महादेव ने भगवान नारायण पर अपनी शक्ति का प्रयोग किया, वो भी जलने लगे और राख का ढेर बन गए | राख के ढेर में से फिर आवाज़ आयी हे महादेव मुझपर अपनी और शक्तियों का प्रयोग करते रहे |

बार बार सभी शक्तियों का प्रयोग करने के बाद राख गायब हो गयी, कित्नु राख का एक कण अभी भी बचा रह गया | उसी कण में से विष्णु जी फिर से प्रकट हो गए |

उसके बाद भगवान शिव के मन में विचार आया कि अगर वो खुद का ही विनाश कर ले तो क्या ब्रह्मा जी और विष्णु जी का भी विनाश हो जायेगा क्युकी जहाँ विनाशक ही नहीं होगा वहाँ किसी और का होना कैसे संभव है?

जैसे ही भगवान शिव ने अपने ऊपर शक्तियों का प्रयोग किया वो जल कर राख का ढेर हो गए और उनके साथ साथ भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी भी राख का ढेर हो गए |

तीनो के राख के ढेर होने के पश्चात् चारो ओर अँधेरा छा गया |

तभी उस राख में से ब्रह्मा जी प्रकट हुए क्युकी जहाँ निर्माण वहाँ ब्रह्मा जी, उसके पश्चात् विष्णु जी प्रकट हुए क्युकी जहाँ निर्माण वहाँ संरक्षक और अंत में भगवान शंकर उसी राख में से प्रकट हुए क्युकी जहाँ निर्माण और संरक्षक वही विनाश |

भगवान भोलेनाथ ने उस राख की महत्वता को जानते हुए उस भस्म को अपने शरीर पर लगा लिया |

इससे ये ज्ञात हुआ कि त्रिदेव में कोई भी बड़ा नहीं है और हमारे सभी वेदो और पुराणों में भी यही व्याख्या मिलती है कि त्रिदेव समान और श्रेष्ठ है  और उनकी तुलना करना भी व्यर्थ है |

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