द्रौपदी के 5 रहस्य: द्रौपदी के बारे में भविष्य पुराण में ऐसा बताया गया है कि वह पिछले जन्म में एक गरीब ब्राह्मणी थी जो कि वन में रहकर अपना गुजारा किया करती थी, परंतु अपने पुण्य कर्मों के कारण वह अगले जन्म में पांडवों की महारानी बन गई।
आज हम जानेंगे द्रौपदी के बारे में कुछ ऐसी बातें जो आप शायद नहीं जानते होंगे।
द्रौपदी के 5 रहस्य
द्रौपदी के एक मात्र मित्र
भगवान श्री कृष्ण द्रौपदी के अकेले दोस्त थे। द्रौपदी हमेशा भगवान श्री कृष्ण को ही अपना सखा मानती थीं और श्री कृष्ण भी उन्हें सखी कह कर बुलाते थे। भगवान श्री कृष्ण ही द्रौपदी के एक मात्र सखा थे जो कि द्रौपदी के बुलाने पर हमेशा उनकी मदद करते थे और मुश्किल परिस्थितियों में उनका साथ देते थे।
द्रौपदी के कई नाम
द्रौपदी के कई नाम थे द्रौपदी को ‘द्रौपदी’ इसलिए कहा जाता था क्यूंकि वह राजा द्रुपद की पुत्री थीं। वह पंचाल राज्य से थी इसलिए उन्हें पांचाली कहा गया, इसके अलावा यज्ञनासेनी ( यज्ञ से पैदा होने वाली), महाभारती (भारत के 5 पुत्रों की पत्नी), सैरंधरी – यह नाम द्रौपदी ने तब अपनाया था जब अपने दूसरे वनवास के समय वह रानी सुदेशना की दासी थी)।
द्रौपदी के 5 पति की जगह 14 पति हो सकते थे
ऐसा माना जाता है कि द्रौपदी ने अपने पिछले जन्म में भगवान शिव को प्रसन्न करके एक ऐसा पति मांगा था जिसमें 14 विशेषताएं हों। पर 14 के 14 गुण एक व्यक्ति में होना संभव नहीं था तो भगवान शिव जी ने द्रोपदी को यह वरदान दिया था कि अगले जन्म में उसके पांच पति होंगे जिनमें वे सभी गुण होंगे।
फिर द्रौपदी ने भगवान भोलेनाथ से यह आशीर्वाद मांगा कि उसे ऐसा पति मिले जो धार्मिक हो, बलशाली हो, धनुष विद्या में निपुण हो, अच्छा दिखता हो और धैर्यवान हो और इस तरह द्रौपदी के पांच पति हुए।
द्रौपदी के बर्तन
द्रौपदी की रसोई के बर्तनों के पीछे भी एक कथा है। ऐसा माना गया है कि द्रौपदी की रसोई का बर्तन सामान्य नही था, बल्कि वह माता लक्ष्मी के अक्षय पात्र के समान था। द्रौपदी का बर्तन कभी खाली नहीं होता था और हमेशा अच्छे-अच्छे पकवानों के भरा रहता था। इसी कारण से कभी-कभी द्रौपदी को अन्नपूर्णा भी कहा जाता था ।
द्रौपदी का श्राप
एक बार युधिष्ठर द्रौपदी के साथ उनके कक्ष में थे और कक्ष के बहार उनके जूते रखे थे । दुर्भागय से उनका जूता एक कुत्ता उठाकर ले गया । उसी समय अर्जुन गलती से द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश कर लेता है और इस अपराध के कारण अर्जुन को 1 वर्ष के लिए जंगल जाना पड़ा था ।
द्रोपदी को जब यह पता चला कि यह सब एक कुत्ते के कारण हुआ था तो द्रोपदी ने कुत्ते को श्राप दिया कि तम्हारा मिलन जब भी होगा तो दुनिया तुमको निर्लज्जता पूर्वक देखेगी ।
द्रौपदी को दुर्वासा ऋषि से मिला था वरदान
ऐसा माना जाता है कि द्रोपदी को चीर हरण के समय ऋषि दुर्वासा ने बचाया था। दरअसल शिव पुराण में इस बात का जिक्र किया गया है कि एक बार दुर्वासा ऋषि का अंग वस्त्र गंगा में बह गया था और तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ कर दुर्वासा ऋषि को दिया था।
वरदान स्वरुप ऋषि दुर्वासा ने द्रौपदी के चीर हरण के समय ऐसा वरदान दिया था जिसके चलते जब दुःशाशन ने द्रौपदी से दुर्वेहवार करने की कोशिश की तो द्रौपदी की साड़ी ख़त्म नही हुई।
द्रौपदी और अर्जुन का प्रेम
वनवास के समय एक बार द्रौपदी ने एक पेड़ से जामुन का गुच्छा तोड़ लिया था। तभी भगवान श्री कृष्ण उनके समक्ष आए और उन्होंने द्रौपदी को बताया कि एक साधु महाराज इसी फल से अपना उपवास तोड़ने वाले थे। पर चुकीं द्रौपदी ने वह फल तोड़ लिया था तो उनको और उसके पांचों पतियों को अगर उन साधु महाराज के कोप का शिकार नहीं होना है तो उन्हें एक उपाय करना होगा।
इस उपाय को करने के लिए पांचों पांडवों को और द्रौपदी को एक-एक करके उस पेड़ के नीचे बैठकर सिर्फ सत्य वचन बोलने होंगे और अपने-अपने राज़ भी खोलने होंगे। ऐसा करने से वह फल अपने आप वापस पेड़ पर लटक जाएगा।
जब द्रौपदी की बारी आई तो उन्होंने अपने पांचों पतियों के तरफ देखा और कहा कि मैं आप पांचों से प्रेम करती हूँ लेकिन सबसे ज्यादा प्रेम मैं अर्जुन से करती हूँ।
यह सुन कर सभी पांडव हैरान रह गए।”
दोस्तों ये थे द्रौपदी के जीवन से जुड़े कुछ राज़, आशा करते हैं हमारी यह प्रस्तुति आपको पसंद आई होगी। नमस्कार |