दुर्गा भक्ति की कहानी: जो लोग मां दुर्गा की भक्ति में लीन रहते हैं उन्हें दुनियादारी से कोई मतलब नहीं होता। उन्हे बस अपनी माता का साथ चाहिए होता है और मां दुर्गा उन्हे हर संकट से अपने आप बचाती हैं।
आज हम एक कहानी के माध्यम से जानेंगे कि गरीब की दुर्गा भक्ति में कितनी ताकत होती है।
गरीब बच्चे की दुर्गा भक्ति की कहानी
एक छोटे से गांव में मोहन अपनी दादी के साथ रहता था। बचपन में मोहन के माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गए थे और तब से वह अपनी दादी के साथ ही रहता था।
मोहन की दादी उससे बहुत स्नेह करती थी और बचपन से उन्होंने ही उसका लालन-पालन किया था। मोहन दुर्गा माता का बहुत बड़ा भक्त था और दिन-रात उन्हीं की भक्ति में लीन रहता था। वह हर रोज़ जल्दी उठ कर घर का सारा काम कर लेता था,जिससे की उसकी बूढ़ी दादी को परेशानी ना हो।
मोहन घर का काम करने के बाद नहा-धोकर हर रोज दुर्गा माता के मंदिर जाता था, वह अक्सर मंदिर के पुजारी जी से भी पहले आ जाता था और मंदिर की साफ सफाई करने के बाद बड़े ही चाव से माता का शृंगार करता था और एक-एक फूल स्वयं उनके चरणों में अर्पित करता था।
पुजारी जी के आने पर मोहन उन्हें प्रणाम करता और फिर दोनों मिलकर मंदिर में हवन करते थे। माता के मंदिर से आने के बाद मोहन अपनी छोटी-सी दुकान पर चाय और पकोड़े बेचता था। गांव के सभी लोग मोहन से प्रभावित थे और उसकी बहुत प्रशंसा करते थे।
लोगों का कहना था कि पूरे गांव में किसी के भी हाथ में वह स्वाद नहीं था जो मोहन के बनाए पकोड़ों और चाय में आता था, इसीलिए सभी गांव वाले मोहन की दुकान से ही चाय और पकोड़े लेते थे। मोहन की दुकान के ठीक सामने एक और चाय की दुकान थी जिससे राजू चलाता था।
राजू मोहन से बहुत ईर्षा करता था क्योंकि सभी गांव वाले मोहन की दुकान पर ही जाते थे। एक सुबह मोहन मंदिर की ओर जा रहा था, तभी राजू सोचने लगा कि मोहन को सबक सिखाना आवश्यक है। उस दिन नवरात्रि का पहला दिन था। जैसी ही शाम हुई तो मोहन की दुकान के पास एक घायल कुत्ता बीच रास्ते में कराह रहा था। कुत्ते को देखकर मोहन का मन विचलित हो गया और वह उसकी सहायता करने के लिए दौड़ा।
मोहन ने देखा कि कुत्ते के पैर में चोट लगी है और उसने तुरंत जाकर कुत्ते के घाव पर मरहम पट्टी कर दी। थोड़े ही दिन में कुत्ता ठीक होने लगा। देखते ही देखते अष्टमी का दिन आ गया और तब तक राजू ने मोहन को सबक सिखाने का एक उपाय सोच लिया था।
उस दिन हर रोज की तरह जब मोहन मंदिर गया तो वहां दुर्गा माता की मूर्ति ही नहीं थी। यह देख कर मोहन हैरान रह गया और सोचने लगा कि आखिर मंदिर से माता की मूर्ति कौन ले जा सकता है? थोड़ी ही देर में वहां मंदिर के पुजारी जी और गांव के बाकी लोग भी आ गए। दुर्गा माता की मूर्ति को मंदिर में न पा कर सब ने सोचा कि यह बात ठाकुर साहब को बता देना चाहिए क्योंकि यह मंदिर उन्होंने ही बनवाया था।
राजू समेत सभी गांव वाले ठाकुर साहब के घर पहुंच गए, जहां वह अपनी 5 वर्ष की पोती को एक कहानी सुना रहे थे। ठाकुर साहब की पोती जन्म से ही नेत्रहीन थी।
सभी गांव वालों ने ठाकुर साहब को बताया कि दुर्गा मां की मूर्ति मंदिर से गायब है। यह सुनकर ठाकुर साहब और ठकुराइन अपनी पोती को लेकर माता के मंदिर पहुंच गए। वहां राजू ठाकुर साहब से कहता है कि सबसे पहले मोहन ही मंदिर आता है और वह जानता था कि माता की मूर्ति सोने की है इसीलिए जरूर उसी ने मूर्ति को कही छिपा दिया होगा।
यह सुनकर मोहन कहता है कि भला वह अपनी माता की मूर्ति कैसे चुरा सकता है? परंतु बाकी सब भी अब मोहन को शक की निघा से देखने लगते हैं। तभी मंदिर के बाहर वही कुत्ता जोर-जोर से भोकने लगता है जिसे चोट लगी थी। जब ठाकुर साहब मंदिर के बाहर आते हैं तो वह उनकी धोती पकड़कर उन्हें एक पेड़ के पास ले आता है।
ठाकुर साहब समझ जाते हैं कि जरूर वह उन्हें कोई इशारा दे रहा है। जब दो लोग पेड़ के पास की जमीन को खोदते हैं तो उसमें से वही माता की मूर्ति निकलती है जो मंदिर में स्थापित थी। माता की मूर्ति को जमीन में गड़ा देख सब हैरान रह जाते हैं और तभी वह कुत्ता राजू की तरफ मुंह करके जोर-जोर से भौंकने लगता है।
कुत्ते का इशारा सभी गांव वाले समझ जाते हैं और उन्हें पता चल जाता है कि यह राजू का ही काम था। सब लोग मोहन से क्षमा मांगते हैं और पुनः माता की मूर्ति को मंदिर में विधि-विधान से स्थापित कर देते हैं। मोहन की भक्ति देखकर ठकुराइन बहुत प्रभावित होती है और उससे कहती है कि उसकी छोटी सी पोती नेत्रहीन है तो क्या वह अपनी भक्ति से छोटी-सी बच्ची की आंखों की ज्योति वापस ला सकता है?
मोहन छोटी-सी बच्ची की तरफ देखता है और माता दुर्गा से प्रार्थना करता है कि अगर उसने हमेशा सच्चे मन से उनकी भक्ति की है तो वे उस छोटी-सी बच्ची के नेत्र वापस ले आए।
दुर्गा मां मोहन की प्रार्थना सुन लेती हैं और थोड़ी ही देर में ठाकुर साहब की पोती की नेत्र ज्योति वापस आ जाती है। सभी गांव वाले मां दुर्गा को प्रणाम करते हैं और मिल कर माता का जागरण करते हैं।
आज के लिए इतना ही, आशा करता हूँ आपको हमारी आज की यह प्रस्तुति पसंद आई होगी | नमस्कार।