गणेश चतुर्थी कथा: भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश चतुर्थी का त्यौहार प्रारम्भ होता है और 10 दिन तक चलता है |
इसी दिन लोग अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करके, आस्था के साथ उनकी आराधना करते है और त्यौहार के अंतिम दिन पुरे विधि विधान के साथ उनका विसर्जन करते है |
मान्यता यह है कि ऐसा करने से गणेश जी उनके सभी कष्ट हर कर उन्हें सुख समृद्धि से भरे जीवन का आशीर्वाद देते है |
क्या आप जानते है कि इस दिन किए जाने वाले व्रत का महत्व इतना क्यों है और इस दिन चन्द्रमा के दर्शन करने से आपको जीवन में कोई ना कोई कलंक क्यों लगता है ?
भगवान शंकर कहते है भाद्र शुक्ल चतुर्थी को जो भी मनुष्य व्रत करता है और इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनता है गणेश जी सदैवउसको शुभ-फल प्रदान करते है |
वह जल्दी ही अपने सभी कष्टों से मुक्ति पा लेता है और उसके सारे बिगड़े हुए कार्य बनने लगते है |आइए अब जानते है उस कथा के बारे में |
गणेश चतुर्थी कथा
सनत्कुमार जी ने भगवान शिव से प्रश्न किया कि हे महादेव! मृत्युलोक में इस व्रत की शुरुवात कैसे हुई? और पूर्वकाल में इस व्रत को सबसे पहले किसने किया था ?
सनत्कुमार का प्रश्न सुन महादेव बोले श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम इस व्रत को किया था | उनपर लग रहे झूठे दोषों के निवारण हेतु उन्होंने यह व्रत किया था |
यह सुन सनत्कुमार अचम्भित रह गए और सोचने लगे भगवान श्री कृष्ण तो जगत एक पालनहार है, तो उनपर कैसे झूठे दोष
लगे ?
अपने मन की मंशा को दूर करने के लिए उन्होंने भगवान शिव से कहा हे भोलेनाथ! आप मुझे इस कथा के बारे में विस्तार से बताकर मेरे मन की मंशा को दूर करे |
सत्राजित को भगवान सूर्य से स्यमन्तक मणि प्राप्त होना
भगवान बोले पृथ्वी को भार मुक्त करने हेतु भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण रूप में वासुदेव के यहाँ अवतार लिया |
बाद में जरासंध के द्वारा बार बार किए जाने वाले आक्रमण के कारण भगवान श्री कृष्ण ने समुद्र के किनारे द्वारकापुरी बनाई और वही रहने लगे, ताकि उनकी प्रजा शांति से रह सके |
उसी पूरी में उग्र नामक यादव थे, जिनके 2 पुत्र हुए जिनके नाम थे सत्राजित और प्रसेनजित |
सत्राजित भगवान सूर्य के परम भक्त थे और उन्होंने भगवान सूर्य को प्रसन्न करने हेतु समुद्र किनारे कठोर तपस्या की | उस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें दर्शन दिए और अपने गले से मणि उतार कर सत्राजित को दे दी | उस मणि की चमक सूर्यदेव की चमक के समान थी |
सूर्य भगवान ने सत्राजित को कहा ये मणि देवों को भी प्राप्त नहीं है, तुम इसे अपने गले में धारण कर लो, लेकिन समरण रहे कि इसे धारण करने के समय पवित्र रहना आवश्यक है यदि ऐसा ना हुआ तो यह उसकी मृत्यु का कारण बन सकती है और यह मणि प्रतिदिन 24 मन सोना प्रदान करती है | यह कह सूर्य देव अंतर्ध्यान हो गए |
उसके पश्चात् सत्राजित ने वो मणि पहन कर द्वारिका नगरी में प्रवेश किया, उस मणि की चमक देख सब लोग हैरान हो गए | उस चमक से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो साक्षात् सूर्य देव आगए है |
भगवान श्री कृष्ण ने भी उस मणि को देखा और उनका मन उस मणि के लिए ललचा गया, किन्तु उन्होंने सत्राजित से वो मणि नहीं मांगी |
किन्तु सत्राजित में मन में संदेह पैदा हो गया था कि कही श्री कृष्ण मुझसे ये मणि ना छिन ले और इस कारण उन्होंने वो मणि अपने भाई प्रसेनजित को दे दी और उसे पवित्र रहकर पहनने को कहा |
कुछ समय पश्चात् एक दिन श्री कृष्ण संग प्रसेनजित उस मणि को धारण करके शिकार के लिए गए और अपवित्र होने के कारण-वश एक शेर ने प्रसेनजित को मार दिया |
अब वह मणि शेर के पास चली गई | शेर को मणि ले जाते हुए देख जामवंत ने शेर को मार दिया और मणि लेकर अपनी गुफा में चला गया |
उधर श्री कृष्ण भी शिकारियों संग वापस द्वारका आगए | शिकारियों के बीच प्रसेनजित को ना पा कर, प्रजा श्री कृष्ण के बारे में तरह तरह की बाते करने लगी | कोई कहने लगा श्री कृष्ण ने मणि के लालच में प्रसेनजित को मार डाला, तो कोई कहने लगा ये तो पापी और कपटी है इसने तो अपनी प्रजा को भी नहीं छोड़ा |
अपने ऊपर झूठे दोष लगते देख श्री कृष्ण बहुत दुखी हो गए और कुछ लोगो के साथ प्रसेनजित की खोज करने जंगल की ओर चले गए |
वन में उन्होंने देखा कि प्रसेनजित शेर के द्वारा मारा गया है और कुछ ही दुरी पर उन्हें शेर भी मरा हुआ मिला |
शेर के मृत शरीर के पास पड़ी खून की बूंदो के सहारे श्री कृष्ण जामवंत की गुफा तक पहुंच गए |
गुफा में प्रवेश करने के पश्चात् उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बालक उस मणि से खेल रहा है और उसके साथ एक सुन्दर कन्या बैठी है |
उस सुन्दर कन्या की दृष्टि जब श्री कृष्ण पर पड़ी, तब वह भगवान पर मोहित हो गई |
उधर जामवंत ने श्री कृष्ण को अपनी गुफा में देखा और क्रोधित होकर युद्ध एक लिए ललकारा |
उनका भीषण युद्ध प्रारम्भ हो गया और उन्हें युद्ध करते करते सात दिन हो गए | गुफा के बाहर खड़े श्री कृष्ण के साथ आए प्रजाजन सोचने लगे कि लगता है जामवंत ने श्री कृष्ण का वध कर दिया है और ऐसा विचार कर वह सब दुखी होकर द्वारका नगरी लौट आए |
जामवंत और श्री कृष्ण का युद्ध लगातार 21 दिन तक चला |
21 दिन पश्चात् जब जामवंत थकने लगा तो उसने त्रेता युग की बातों का स्मरण कर विचार किया कि मुझे देव, दानव, नाग, गन्धर्व इत्यादि कोई नहीं जीत सकता था, किन्तु इस योद्धा ने मुझे पराजित कर दिया | अवश्य ही यह देवों के स्वामी भगवान विष्णु के अवतार है | यह जान वह भगवान के चरणों में बैठ कर प्रणाम करने लगा |
भगवान श्री बोले हे जामवंत! इस मणि के कारण मुझपर झूठा दोष लगा है इस कारण मैं ये मणि लेने तुम्हारी गुफा में लेने आया था | यह सुन जामवंत ने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्री कृष्ण से करवाया और दहेज़ रूप में मणि भी उन्हें सौप दी |
कन्या और मणि को साथ ले श्री कृष्ण द्वारका नगरी पहुंचे, भगवान को मणि के साथ वापस आया देख समस्त प्रजा प्रसन्न हो गई |
श्री कृष्ण ने सत्राजित को सारा वृतांत सुना, उन्हें मणि सौप दी | जिससे श्री कृष्ण उस झूठे दोष से मुक्त हो गए |
सत्राजित सारा वृतांत सुन और मणि को फिर से पाकर बहुत लज्जित महसूस करने लगे और उस कारण उन्होंने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण से करवा दिया |
उसका पश्चात् शतधन्वा, अक्रूर आदि यादव सत्राजित से मणि लेने हेतु शत्रुता करने लगे |
एक दिन श्री कृष्ण द्वारका नगरी से बाहर गए थे और उसी अवसर का लाभ उठा शतधन्वा ने सत्राजित को मार कर मणि ले ली |
श्री कृष्ण को सत्यभामा ने सारी बात बताई और उधर प्रजा फिर से श्री कृष्ण पर मणि को लेकर संदेह करने लगी |
श्री कृष्ण को यह बात पता चल गई है, यह जान शतधन्वा वो मणि अक्रूर को देकर घोड़े पर बैठ कर भाग गया |
उधर श्री कृष्ण और बलराम भी उसका पीछा करने लगे | बहुत दूर जाने के बाद श्री कृष्ण ने उसका वध कर दिया और उसके पास मणि ना पाकर अपने भाई बलराम से बोले हे भ्राता! इसके पास तो कोई मणि नहीं है |
यह सुन बलराम बहुत क्रोधित हो गए और बोले कृष्ण तुम कपटी और लोभी हो, तुमने लोभवश अपने सगे सम्बन्धियों का भी वध कर दिया |
श्री कृष्ण ने बलराम को बहुत समझाने की कोशिश की किन्तु बलराम ने उनकी बात नहीं मानी और क्रोध में विदर्भ देश की ओर चले गए |
उधर श्री कृष्ण द्वारका नगरी वापस आगए |
श्री कृष्ण को अकेला आया देख प्रजा फिर बात करने लगी कि एक मणि के लोभ में अपने भाई को घर से बाहर निकलना और अपने सगे सम्बन्धियों का वध करना कहा उचित है | यह तो बहुत कपटी और लोभी है |
अपने ऊपर बार बार झूठे दोष लगते देख श्री कृष्ण बहुत उदास हो गए | भगवान को दुखी देख वहाँ नारद मुनि प्रकट हुए और बोले हे प्रभु! आप इतने दुखी क्यों है ?
श्री कृष्ण बोले हे देवर्षि मुझपर बार बार झूठे दोष लग रहे है और उसी कारण मैं बहुत दुखी हूँ |
नारद जी बोले हे प्रभु आपने भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा के दर्शन कर लिए थे, इसी कारण आप पर बार बार कलंक लग रहे है |
भगवान कृष्ण बोले हे देवर्षि! चौथ के चाँद को देखने से कैसा दोष लगता है, आप मुझे विस्तार से बताइए |
गणेश जी के द्वारा चाँद को श्राप देना
नारद जी बोले गणेश जी ने अपने रूप पे घमंड करने वाले चाँद को स्वयं ये श्राप दिया था |
भगवान बोले कि गणेश जी ने चन्द्रमा को श्राप क्यों दिया था?, कृपया मुझे बताएं |
नारद जी बोले हे भगवन! ब्रह्मा जी ने गणेश जी की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया और प्रसन्न होकर उन्होंने ब्रह्मा जी को वरदान मांगने को कहा |
ब्रह्मा जी बोले हे एक दन्त! मुझे तो बस यही वरदान चाहिए कि सृष्टि की रचना करने में मुझे कोई बाधा ना आए |
गणेश जी उन्हें यही वरदान दे दिया, वरदान पाकर ब्रह्मा जी अपने लोक चले गए और गणेश जी आकाश मार्ग होते हुए चंद्र लोक चले गए |
चन्द्रमा ने गणेश जी के लम्बी सूंड, बड़े कान, लम्बे दांत, मोटा पेट और चूहे की सवारी वाले रूप को देखा और अपनी सुंदरता के घमंड में हसने लगा |
यह देख गणेश जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने चन्द्रमा को श्राप दे दिया कि आज के दिन कोई भी तुम्हारा पापी चेहरा नहीं देखेगा और अगर इस दिन किसी ने भी तुम्हारा चेहरा देखा तो उसे कलंक अवश्य लगेगा | इस श्राप को मिलने के पश्चात् चन्द्रमा का मुख मैला हो गया और वो जल में समा गया |
तब सभी देवता और ऋषिगण इस श्राप के निवारण हेतु ब्रह्मा जी के पास गए | ब्रह्मा जी ने बताया कृष्ण चतुर्थी को गणेश जी की आराधना और व्रत करने से गणेश जी प्रसन्न हो सकते है |
ब्रह्मा जी के वचन अनुसार चन्द्रमा ने गणेश जी की पूजा अर्चना और व्रत किया, जिससे गणेश जी ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए |
चन्द्रमा गणेश जी से क्षमा मांगने लगे | गणेश जी ने चन्द्रमा से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा|
चन्द्रमा बोले लोग मेरे पहले की तरह दर्शन कर सके, बस यही वरदान दे दीजिये | गणेश जी बोले इस वरदान को छोड़ कर कुछ भी मांगो | यह सुन सभी देवतागण गणेश जी से चन्द्रमा को पाप मुक्त करने के लिए निवेदन करने लगे |
तब गणेश जी बोले भादो की चतुर्थी को चंद्र दर्शन करने पर झूठा कलंक एक वर्ष के अंदर तो अवश्य लगेगा, किन्तु हर माह शुकल द्वितीय को जो तुम्हारे दर्शन करेगा, उसे ये दोष नहीं लगेगा |
चन्द्रमा ने गणेश जी से फिर प्रश्न किया, यदि किसी के द्वारा इस दिन गलती से मेरे दर्शन हो जाये तो उसे क्या करना चाहिए ?
गणेश जी ने कहा कृष्ण पक्ष की हर चतुर्थी को जो मेरी धातु की या मिटटी की मूर्ति स्थापित कर मेरी आराधना करेगा तथा मुझे लड्डू का भोग लगाएगा और इस दिन व्रत करेगा उसे मैं विजय, कार्य में सफलता और पुत्र प्राप्ति इत्यादि के वरदान देता रहूँगा | यह कह गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए |
नारद जी बोले हे माधव! अब आप भी विधि पूर्वक गणेश जी की पूजा और व्रत कीजिये तभी आप इस कलंक से मुक्त हो पाएंगे |
नारद जी की वाणी सुन श्री कृष्ण ने गणेश जी का पूजन और व्रत कर इस कलंक से मुक्ति प्राप्त की |
नारद जी कहते है जो मनुष्य इस संपूर्ण गणेश चतुर्थी कथा को सुनता है उसे भाद्र शुक्ल चतुर्थी में चन्द्रमा देखने पर दोष नहीं
लगता |
इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना और व्रत करने से समस्त मनोकामना पूर्ण होती है |