कैसे हुई कलयुग की शुरुआत? : श्रीमद भागवत महापुराण, महाभारत, विष्णु समृति, मनु समृति और सूर्य सिद्धांत जैसे ग्रंथो में सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग इन चारो युगो में कलयुग को स्पष्ट रूप से सबसे श्रापित युग माना गया है|
कलयुग में अधर्म और पाप अपनी चरम सीमा पर होगा | मनुष्य लालच और कपट में इतना अंधा हो जायेगा कि वह बिना किसी भय के निरंतर अपराध करता रहेगा|
आपको यह जान कर बहुत आश्चर्य होगा कि हिन्दू शास्त्रों और पुराणों के अनुसार कलयुग का प्रारम्भ एक राजा की भूल से हुआ था |
महाभारत युद्ध समाप्ति के पश्चात पांडवो का हिमालय की ओर जाना
पौराणिक कथाओ के अनुसार धर्म युद्ध महाभारत की समाप्ति के पश्चात् भगवान श्री कृष्ण जब अपने परम धाम को प्रस्थान कर गए थे और पांडव अपने भाइयो का वध करने के बाद आत्मगलानी से भर गए थे, तब वह मोक्ष प्राप्ति की इच्छा से द्रोपती संग हिमालय की ओर चले गए |
पांडवो द्वारा राजा परीक्षित को राजपाठ सौंपना
जब पांडव हिमालय जाने वाले थे उससे पहले ही वह अपना राजपाठ परीक्षित को सौप गए थे, जो उत्तरा और अभिमन्यु के पुत्र थे |
राजा परीक्षित भगवान श्री कृष्ण, पांडवो तथा विदुर जी जैसे विद्वानों की अनुपस्थिति में अपने सामर्थ से बढ़कर राजपाठ संभाल रहे थे|
कलयुग के शुरुआत की कथा
पृथ्वी देवी और धर्म का संवाद
श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार एक दिन पृथ्वी देवी गाय माता के रूप में तथा धर्म बैल के रूप में सरस्वती नदी के किनारे बैठे वार्तालाप कर रहे थे |
गाय रूपी पृथ्वी देवी को रोते हुए देख बैल रूपी धर्म बोला, देवी क्या तुम इस कारण तो व्याकुल नहीं हो कि सतयुग में मेरे सत्य, तप, पवित्रता और दान जो चार चरण थे, त्रेतायुग में सत्य चला गया और मेरे तीन चरण तप, पवित्रता और दान ही शेष रहे | उसके पश्चात् द्वापरयुग में सत्य और तप चले गए और केवल दो चरण पवित्रता और दान ही शेष रह गए और कलयुग में केवल एक चरण दान ही शेष रह गया है।
पृथ्वी देवी बोली कि धर्म तुम सब जानते हो कि जब भगवान श्री कृष्ण स्वयं अपने चरण मुझपर रखते थे, तब मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझती थी परन्तु जबसे भगवान अपने धाम को प्रस्थान कर गए है तबसे कलयुग धीरे धीरे अपना प्रभाव मुझपे डालने लगा है |
कलयुग का प्रकट होना
तभी दैत्य रूप में कलयुग वह प्रकट हो जाता है और गाय रुपी पृथ्वी देवी और बैल रुपी धर्म को मारने लगता है|
तभी राजा परीक्षित वहाँ से जा रहे होते है और उनकी दृष्टि दुष्ट कलयुग पड़ती है, जो कि निर्दोष गाय और बैल को मार रहा होता है| बेबस और लाचारों पर अत्याचार होते देख राजा परीक्षित को कलयुग पर बहुत क्रोध आता है और वो उसके समीप जाकर बोलते है कि हे दुष्ट पापी कौन है तू जो मेरे राज्य में इन बेसहारा गाय और बैल के ऊपर अत्याचार कर रहा है |
तेरा ये अपराध शमा योग्य नहीं है, अब तेरी मृत्यु मेरे हाथो से निश्चित है |
यह कहकर राजा परीक्षित ने अपनी तलवार निकल ली |
कैसे हुई कलयुग की शुरुआत?
राजा को बहुत क्रोधित देख कलयुग भयभीत हो गया, अपने दैत्य रूप को छोड़ राजा के चरणों में गिर गया और राजा परीक्षित से दया की भीख मांगने लगा|
कलयुग को अपनी शरण में आया देख राजा परीक्षित ने उसका वध करना उचित नहीं समझा क्युकि धर्म के अनुसार शरण में आए मनुष्य का वध करना धर्म के विरुद्ध माना जाता है|
राजा परीक्षित कलयुग को चेतावनी देते हुए बोले कि मैं तुझे जीवनदान तो दे रहा हूँ किन्तु तू अभी की अभी मेरे साम्राज्य से दूर चला जा और कभी वापस मत आना|
यह सुन कलयुग बड़ी चालाकी से बोला हे राजन इस पूरी पृथ्वी पर आपका राज है ऐसे में मैं कहा जा सकता हूँ| मुझपर कृपा कीजिये और मुझे भी रहने के लिए कोई स्थान प्रदान कीजिये|
कलयुग का निवेदन सुन राजा परीक्षित बोले असत्य, मद, काम और क्रोध तुम्हारे चार निवास स्थान होंगे|
कलयुग बोला हे प्रभु मेरे रहने के लिए ये स्थान प्रयाप्त नहीं है कृपया मुझे कुछ और स्थान प्रदान करे|
तब राजा ने उसे स्वर्ण पाँचवे स्थान के रूप में प्रदान किया|
पांचवा स्थान मिलने के बाद कलयुग वहाँ से प्रत्यक्ष रूप से तो चला गया किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा कलयुग यही से प्रारम्भ हो गया |
महर्षि वेद व्यास जी ने कलयुग को बताया सबसे श्रेष्ठ युग
जहाँ कलयुग में चारो ओर पाप और अधर्म का बोल बाला होगा, उसी कलयुग को महर्षि वेद व्यास जी ने श्रेष्ठ युग बताया है|
आप भी यह सुनकर आश्चर्यचकित रह गये ना कि कैसे महर्षि वेद व्यास जी के अनुसार कलयुग सबसे उत्तम युग है|
विष्णु पुराण के अनुसार एक बार महर्षि वेद व्यास जी ऋषियों और मुनियो के साथ युगो के बारे में चर्चा करते हुए बताते है कि हे मुनिजनों कलयुग सभी युगो में श्रेष्ठ युग है क्युकी सतयुग में जितना पुण्य 10 साल तप करने के पश्चात प्राप्त होता है, वही पुण्य त्रेतायुग में 1 साल में प्राप्त किया जा सकता है, उसी प्रकार द्वापर युग में वही पुण्य 1 महीने के तप से प्राप्त हो सकता है और कलयुग में उतना ही पुण्य केवल एक दिन के तप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है|
व्रत और तप के फल की प्राप्ति के लिए कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ समय है।