मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?: इस दुनिया की 2 सबसे बड़ी सच्चाई है जन्म और मृत्यु। जन्म के पश्चात तो हर मनुष्य जानता है कि उसे जीवन में तरह-तरह के कार्य करते जाना है, लेकिन मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है ? इस प्रश्न का उत्तर तो आपको भगवत गीता में ही मिल सकता है।
जिसमें ज्ञान स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने दिया है और उसी भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? तो आइये जानते है क्या कहा भगवान ने इस विषय के बारे में |
महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था, लेकिन अर्जुन का मन काफी विचलित था। वह महाभारत में शस्त्र उठाने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि कौन उनका अपना है और कौन पराया?
अपनों के खिलाफ शस्त्र उठाते हुए वह काफी विचलित थ, तो अर्जुन की इस व्यथा को समाप्त करने के लिए महाभारत में श्री कृष्ण जी ने उन्हें भगवत गीता जैसा अनमोल ज्ञान दिया।
मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?
श्री कृष्ण के अनुसार मृत्यलोक और स्वर्ग या नर्क का चक्र
गीता के ज्ञान के दौरान जब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से पूछा हे प्रभु! जब किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है, तो उसके बाद उसकी आत्मा के साथ क्या होता है।
श्री कृष्ण जी ने बताया कि जब मृत्यु लोक पर किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके पश्चात जो मनुष्य ने इस लोक में कर्म किए होते हैं, चाहे सुकर्म हो या कुकर्म उसके फल को भोगने के लिए उन्हें स्वर्ग अथवा नर्क में जाना होता है।
जब प्राणी स्वर्ग में अपने सुख और नर्क में अपने दुखों को भोग लेता है उसके पश्चात उसे इस मृत्युलोक में दोबारा आना पड़ता है और इस मृत्युलोक को ही कर्म लोक भी कहा जाता है। यही एक ऐसा लोक है जिसमें प्राणियों को कर्म करने का अधिकार होता है।
क्यों आत्मा को सुख-दुख भोगने के लिए स्वर्ग या नर्क में जाना पड़ता है?
फिर अर्जुन श्री ने कृष्ण जी से प्रश्न किया कि हे प्रभु! सभी कर्म तो मनुष्य ने किए होते हैं तो उसकी मृत्यु के पश्चात आत्मा को क्यों सुख-दुख भोगने के लिए स्वर्ग या नर्क में जाना पड़ता है?
श्री कृष्ण कहते हैं कि आत्मा को कहीं भी और किसी भी स्थान में सुख या फिर दुख छू ही नहीं सकता, क्योंकि आत्मा तो मुझ परमेश्वर का ही एक प्रकाश रूप है। सुख-दुख तो सिर्फ इस मृत्युलोक में शरीर को ही भोगना पड़ता है।
स्वर्ग अथवा नर्क का सुख-दुख भोगने के लिए कौन जाता है?
अर्जुन ने पूछा हे प्रभु! अगर सुख-दुख सिर्फ शरीर को ही भोगना पड़ता है तो मनुष्य का शरीर तो इस मृत्युलोक में ही खत्म हो जाता है, फिर जब किसी इंसान की मृत्यु हो जाती है तो स्वर्ग अथवा नर्क का सुख-दुख भोगने के लिए कौन जाता है?
श्री कृष्ण जी कहते हैं हे पार्थ! जब किसी प्राणी की मृत्यु हो जाती है तो उसका बाहरी शरीर मरता है। लेकिन उसके अंदर एक सूक्ष्म शरीर भी होता है जो आत्मा के प्रकाश को अपने साथ लेकर कर्म-लोक से निकलकर दूसरे लोको में चला जाता है और उस सूक्ष्म शरीर को जीवात्मा कहते हैं।
श्री कृष्ण कहते हैं हे पार्थ! जब मनुष्य की जीवात्मा मानव शरीर को त्याग देती है तो उसके इस मृत्युलोक पर किए हुए कर्मों के आधार पर ही अपने पुण्य अथवा पाप को भोगने के लिए स्वर्ग अथवा नर्क में जाती है। लेकिन कई मनुष्य अपने सुकर्म और कुकर्म को इसी मृत्यु लोक पर भोग लेते हैं।
मनुष्य कर्म लोक में कैसे सुख अथवा दुःख भोगता है?
अर्जुन पूछते हैं हे प्रभु! कर्म लोक में कैसे?
श्री कृष्ण कहते हैं कि तुम इसे ऐसे समझ सकते हो एक राजा जो कि बहुत बलवान है। जिसने आज तक कोई भी युद्ध नहीं हारा और धनवान भी है। उसके पास उसके एक इशारे पर काम करने के लिए दास-दासिया भी है और वह काफी सुख से अपनी जिंदगी बिता रहा है।
अचानक युद्ध में उसे कोई राजा हरा देता है और उसे कारागार में डाल देता है। एक तरफ तो वह किसी समय राजाओं की तरह स्वर्ग का सुख प्राप्त कर रहा होता था और जब वह कारागार में गया तो उसे नरक से भी ज्यादा पीड़ा हुई।
ऐसे ही राजा को स्वर्ग जैसा सुख भी इसी लोक में मिला और नर्क जैसी पीड़ा भी इसी लोक में मिली।
ऐसा स्थान जहाँ जाने से जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है?
अर्जुन पूछते हैं हे प्रभु! कोई ऐसा स्थान नहीं है। जहां पर जाकर इस जन्म मरण के चक्कर से ही मुक्ति मिल जाए।
श्री कृष्ण कहते हैं हे पार्थ! ऐसा स्थान मेरा धाम है अर्थात जिसे परमधाम भी कहते हैं। जहां पर आने के बाद किसी भी प्राणी को दोबारा इस मृत्युलोक में नहीं लौटना पड़ता और उसे ही मोक्ष भी कहते हैं।