परिवार में मृत्यु होने पर मुंडन क्यों होता है?

इसी तरह का एक कर्म-काण्ड है मृतक के परिजनों का बाल मुंडवाना। ऐसा करवाने के पीछे कई कारण हैं, जिनके बारे में आज हम जानेंगे।

परिवार में मृत्यु होने पर मुंडन क्यों होता है?

परिवार में मृत्यु होने पर मुंडन क्यों होता है?


मनुष्य का मुंडन कब-कब होता है?

बचपन में मुंडन

एक व्यक्ति के जीवन में ऐसे कई पड़ाव आते हैं जब वह अपने सारे बाल मुंडवा देता है। हिंदू धर्म के अनुसार पहला मुंडन बचपन में होता है, जो कि बच्चे के पैदा होने के 1 से 3 साल के बीच कराया जाता है।

यह माना जाता है कि बच्चे का मुंडन करवाने पर वह अपने पिछले जन्मों के सभी बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। उसके साथ-साथ बच्चे के सर में फोड़े फुंसी जैसी समस्याएं ना हो और स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए भी बच्चे का मुंडन कराया जाता है।

शिक्षा के समय

दूसरा मुंडन होता है गुरुकुल जाने के समय या फिर गायत्री मंत्र की शिक्षा लेते वक्त। आपने अक्सर देखा होगा कि गुरुकुल में पढ़ रहे बच्चे और बौद्ध धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति भी अपने बाल मुंडवा लेते हैं। यह ईश्वर के प्रति और शिक्षा के प्रति उनका समर्पण दिखाता है।

प्रियजन की मृत्यु के समय

और तीसरा मुंडन तब होता है जब रिश्तेदारी में या किसी व्यक्ति के परिवार में कोई भगवान को प्यारा हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि सर के बाल मुंडवाने से मृत व्यक्ति को कम से कम तब तक याद किया जाए जब तक सर पर बाल नहीं आ जाते।

इसके साथ-साथ बाल मुंडवाने से समाज में यह संकेत भी जाता है कि उस व्यक्ति के परिवार में अभी-अभी किसी की मृत्यु हुई है, तो ऐसे में उसके आसपास वाले लोग उसके पास शोक प्रकट करने भी जाते हैं।

परिवार में मृत्यु होने पर मुंडन क्यों होता है?

मृत परिजन की आत्मा का मोह तोड़ने के लिए

जैसा की आप जानते ही होंगे कि गरुड़ पुराण एक ऐसा पुराण है जिसमे व्यक्ति के जीवन और मृत्यु से जुड़े बहुत से प्रश्नों के उत्तर छिपे हैं।

पुराण के अनुसार मरने वाले व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के बाद भी अपना शरीर छोड़ने के लिए तैयार नहीं होती। आत्मा यमराज से याचना करने के बाद यमलोक से वापस धरती पर आती है और अपने परिजनों से संपर्क करने की कोशिश करती है। अपना शरीर न होने के कारण वह आत्मा अपने सगे-संबंधियों के बालों के सहारे पुनः संपर्क स्थापित करने की कोशिश करती है।

उस जीव आत्मा की मुक्ति के लिए यह आवश्यक है कि उस आत्मा को ऐसा करने से रोका जाए और इसका सबसे सही तरीका है अपने सिर के बाल मुंडवा देना। ऐसा करने पर सभी भौतिक संपर्क टूट जाते हैं।

मृतक के प्रति सम्मान और प्रेम जताने का एक तरीका

दूसरा कारण है उस आत्मा के प्रति अपना सम्मान प्रकट करना। अपने सर के बाल मुंडवा देना मृतक के प्रति सम्मान और प्रेम जताने का एक तरीका होता है।

मरने वाला व्यक्ति अपने पूरे जीवन में अपने परिवार और प्रियजनों के लिए बहुत कुछ करता है। उनके साथ मुश्किल वक्त में खड़ा रहता है, अपने प्रियजनों के प्रति आदर, सम्मान और स्नेह की भावना रखता है। उसी को ध्यान में रखते हुए और मृतक के प्रति कृतज्ञता दर्शाने के लिए लोग अपने बाल मुंडवा देते हैं।

ऐसा भी माना जाता है कि इंसान की बाहरी सुंदरता बालों के बिना अधूरी होती है, ऐसे में जो व्यक्ति अब हमारे बीच नहीं रहा उसे हम यह संकेत देते हैं कि उसके लिए हमारे मन में जो प्रेम है, वह हमारे बालों के प्रेम से कई अधिक है। बालों को अहंकार का चिन्ह भी माना जाता है और अपना सिर मुंडवा कर हम अहंकार को त्याग देते हैं और अपने आप को भगवान को समर्पित कर देते हैं।

स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए

तीसरा कारण यह है कि बाल मुंडवाना स्वच्छता को ध्यान में रखकर भी किया जाता है। मृत्यु के बाद इंसान का शरीर सड़ने लगता है और उसमे बहुत से खराब जीवाणु अपना घर बना लेते हैं।

जब उस शव को श्मशान में जलाने के लिए ले जाया जाता है तो कई लोग उस शव को बहुत बार छूते हैं। इस कारण से शव के जीवाणु बाकी लोगों  के शरीर पर भी आ जाते हैं, इसीलिए किसी के अंतिम संस्कार के बाद स्नान करने और मुंडन करवाने जैसी प्रक्रियाओं को किया जाता है जिससे सभी लोगों का शरीर पुनः स्वच्छ बन जाए।

पातक के असर को कम करने के लिए

मुंडन करवाने का अगला कारण है, पातक के असर को कम करना। परिवार में किसी की मृत्यु हो जाए तो उस घर में पातक लग जाते हैं।

ऐसी मान्यता है कि एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद कुछ समय तक उसके परिजनों में एक प्रकार की अपवित्रता आ जाती है और मुंडन करवाने से वह अपवित्रता दूर हो जाती है, इसीलिए हिंदू धर्म के अनुसार 13 दिन तक गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है और इन 13 दिनो में सफेद रंग के वस्त्र पहनने का प्रावधान है।

ऐसे में एक बात का विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए कि जिसने अर्थी में अग्नि दान दिया है, वह व्यक्ति इन 13 दिनो में अपना घर छोड़कर कहीं दूसरी जगह नही जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सभी मान्यताएं केवल पुरुषों के लिए ही होती हैं क्योंकि आम तौर पर महिलाएं दाह संस्कार में नही जाती हैं।

तो मित्रों आशा करते हैं आपको हमारी आज की यह प्रस्तुति पसंद आई होगी। नमस्कार।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top