श्री कृष्ण ने क्यों किया पौंड्रक का वध?: द्वापर युग में भगवान विष्णु ने वासुदेव और देवकी के घर श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। श्री कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र और कौस्तुभ मणि के साथ-साथ कई दिव्य शक्तियां भी थीं । महाभारत और श्रीमद भागवत पुराण में राजा पौंड्रक के बारे में एक कथा बताई गई है।
आज हम यह जानेंगे कि श्री कृष्ण ने काशी के राजा पौंड्रिक का अंत क्यों किया था?
श्री कृष्ण ने क्यों किया पौंड्रक का वध?
पौंड्रक का अपने आपको भगवान विष्णु का अवतार श्री कृष्ण मानना
असल में, काशी नरेश पौंड्रक किसी अन्य के द्वारा भ्रमित हो गया और अपने आप को द्वारिकाधीश श्री कृष्ण मानने लगा, इसलिए वह भगवान श्री कृष्ण का वेश धारण करके स्वयं को द्वारिकाधीश श्री कृष्ण घोषित करने में लगा था। उसके अनुसार वह भगवान विष्णु का असली अवतार था, उसने अपना स्वरूप बिल्कुल श्री कृष्ण जैसा बना लिया था।
कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि पौंड्रक काशी का राजा था। पौंड्रक को मायावी विद्याओं का ज्ञान था। मायावी विद्याओं की मदद से पौंड्रक ने नकली सुदर्शन चक्र बना लिया था और उसके पास भी कौस्तुभ मणि के जैसी एक मणि थी। वह ठीक श्री कृष्ण की तरह सिर पर मोरपंख लगाता था और हाथ में बांसुरी रखता था। उसने अपने आप को श्रीकृष्ण की तरह बना लिया था और असली श्री कृष्ण को नकली घोषित करने के प्रयास करता रहता था।
श्री कृष्ण का पौंड्रक से युद्ध के लिए काशी जाना
श्री कृष्ण भी राजा पौंड्रक के बारे में जानते थे लेकिन पहले उन्होंने पौंड्रक की गलतियों को क्षमा कर दिया था, परंतु एक बार राजा पौंड्रक ने एक दूत के द्वारा भगवान श्री कृष्ण को समाचार भिजवाया जिसमे लिखा था कि तुमने महाराज पौंड्रक का झूठा भेष बनाया हुआ है, समय रहते या तो अपना यह वेष बदल दो या फिर महाराज पौंड्रक से युद्ध करना स्वीकार करो।
यह संदेश सुन भगवान श्री कृष्ण हंसते हुए दूत से बोले- जाकर अपने स्वामी से कहो कि मैं अपना यह वेष तो बदल नहीं सकता लेकिन वह युद्ध हेतु अपना सुदर्शन तैयार रखे।
उसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण पौंड्रक से युद्ध करने काशी जाते हैं और उधर पौंड्रक भी विशाल सेना लेकर नगर से बाहर श्री कृष्ण से युद्ध करने आ जाता है।
श्री कृष्ण के द्वारा पौंड्रक का वध
युद्ध के मैदान में श्री कृष्ण ने राजा पौंड्रक को देखा तो वे हैरान रह गए, क्योंकि पौंड्रक के पास भी वे सारी वस्तुएं एवं अस्त्र थे जो श्री कृष्ण के पास थे और उसका स्वरूप हू ब हू श्री कृष्ण जैसा था।
परंतु पौंड्रक भगवान कृष्ण को देखकर कहने लगा कि उन्होंने ऐसा वेष बनाकर लोगों को मूर्ख बनाया है और इस बात के लिए वह उन्हें अवश्य दण्ड देगा। ऐसा कहकर पौंड्रक ने भगवान श्री कृष्ण की ओर बाण छोड़ दिया ।
तब भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र का आह्वान किया, पौंड्रक से युद्ध लड़ा और देखते-ही-देखते सुदर्शन चक्र से पौंड्रक का सिर धड़ से अलग कर दिया। इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने पौंड्रक को युद्ध में पराजित कर दिया, परंतु यह किस्सा यहां ख़त्म नही हुआ।
श्री कृष्ण ने किया पौंड्रक के पुत्र द्वारा भेजी राक्षसी का वध
इसके बाद जब पौंड्रक के पुत्र को उसके पिता के मृत्यु से बारे में पता चला तो वह भयभीत हो गया और भगवान श्री कृष्ण से बदला लेने के लिए आतुर होने लगा।
इसी के चलते उसने भगवान शंकर की उपासना की। जब महादेव प्रसन्न हो गए तब पौंड्रक पुत्र ने उनसे यह वरदान मांगा कि उसे श्री कृष्ण का वध करने वाली कोई शक्ति प्रदान करें। तब भगवान शंकर ने कहा कि तुम उल्टे वेद मंत्रों से हवन करो जिसके पश्चात एक राक्षसी उत्पन्न होगी। वह राक्षसी तुम्हारी शत्रु को कष्ट पहुंचाने में सक्षम होगी।
बिना किसी देरी के पौंड्रक पुत्र ने वेद मंत्रों के उल्टे उच्चारण से हवन करना शुरु कर देता है। कुछ समय पश्चात एक राक्षसी उत्पन्न होती है जो भयंकर अग्नि की ज्वाला का रूप धारण करके, रास्ते में सब कुछ जलाती हुई भगवान श्री कृष्ण के पीछे-पीछे द्वारका तक पहुंच जाती है।
जब भगवान श्री कृष्ण को पता चलता है कि यह काम पौंड्रक पुत्र का है तब श्री कृष्ण ने अपने दिव्य शस्त्रों की सहायता से उस राक्षसी का वध कर दिया। राक्षसी के नष्ट होते ही द्वारका की तरफ बढ़ने वाली अग्नि भी समाप्त हो जाती है।
इस तरह भगवान श्री कृष्ण काशी नरेश पौंड्रक का उद्धार करते हैं।
इस कथा से हमे यह सीख मिलती है कि हमें किसी भी इंसान की नकल नहीं करनी चाहिए, किसी की नकल करने के चक्कर में हम खुद का ही नुकसान करते हैं। ऐसी गलती हमे कभी नहीं करनी चाहिए |
आज के लिए इतना ही, आशा करता हूं आपको हमारी आज की यह प्रस्तुति पसंद आई होगी | नमस्कार।