अंतिम संस्कार में नहीं जला था भगवान श्री कृष्ण का ये अंग

क्या आप जानते है कि भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी?, किसने भगवान का अंतिम संस्कार किया था ? और अंतिम संस्कार में भगवान का ऐसा कोनसा अंग था जो कि जला नहीं था और वह आज भी धरती पर है ?

श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी?

भगवान श्री कृष्ण जिन्होंने बिना हथियार उठाये महाभारत युद्ध के परिणाम को पांडवो के पाले में कर दिया था|

जिन्होंने कुरुक्षेत्र भूमि में अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया, कलयुग में जिसे पढ़ने मात्र से मनुष्य का उद्धार संभव है|

गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को श्राप


महाभारत युद्ध में राजा धृतराष्ट्र और गांधारी के दुर्योधन समेत 100  पुत्र लड़ते लड़ते मर गए थे, और कौरव वंश का नाश हो गया था |

युद्ध की समाप्ति के बाद गांधारी अपने सौ पुत्रो के शवों को देख कर विलाप करने लगी थी, तभी भगवान श्री कृष्ण उस दुःख के समय में गांधारी के समक्ष आये|

गांधारी श्री कृष्ण को देख बहुत क्रोधित हो उठी और बोली मेरे पुत्रो की मृत्यु का कारण तुम ही हो |

अगर तुम चाहते तो यह युद्ध टल सकता था, किन्तु तुमने ऐसे नहीं किया|

तुम्हारे इस कर्म को मैं कभी माफ़ नहीं करुँगी और गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दिया कि अगर मैंने भगवान विष्णु की मन से आराधना की है और अपना पत्नी धर्म पूर्ण रूप से निभाया है तो जैसे मेरे वंश का आपस में लड़कर नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे वंश का नाश आपस में लड़ते लड़ते होगा और द्वारका नगरी तुम्हारे सामने समुद्र में डूब जाएगी|

भगवान श्री कृष्ण जानते थी कि उनका अपने परम धाम जाने का समय बहुत नजदीक है और वह गांधारी को प्रणाम कर द्वारका आगए|

गांधारी भगवान नारायण की भक्त थी तो अपने भक्त के मुख से निकले हुए श्राप को पूर्ण करने के भगवान श्री कृष्ण ने यदुवंशियो की मति ख़राब कर दी |

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ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम्भ को यदुवंशी कुल के नाश का श्राप


महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद विश्वामित्र,असित, दुर्वासा, भृगु, नारद इत्यादि बड़े-बड़े ऋषि द्वारिका के पास पिण्डारक क्षेत्र में निवास करने लगे थे| एक दिन कुछ उद्दंड यदुवंशी कुमार खेल खेल में उनके पास गए| साम्ब को गर्भवती स्त्री रूप में सजाकर ले गए और कहने लगे हे ऋषिगण आप सभी का ज्ञान अमोघ-अबाध है|

इसे पुत्र प्राप्ति की बहुत लालसा है, कृपया आप बताने का कष्ट करे कि इसकी गर्भ में पुत्र है या कन्या ?

ऋषिगण महाज्ञानी थे और उन बालको की मंशा जान क्रोधित होकर बोले हे मूर्खो तुम्हारे द्वारा किया गया ये कर्म माफ़ करने योग्य नहीं है|

साम्भ को जो तुम बनावटी गर्भवती स्त्री बना कर लाये हो, अब इसकी गर्भ से ऐसा मुसल पैदा होगा जो तुम्हारे संपूर्ण कुल का नाश करेगा|

मुनियो का श्राप सुन यदुवंशी कुमार डर गए और जैसे ही उन्होंने साम्भ का पेट खोल के देखा उसमे सच में लोहे की मुसल थी|

यह देख सभी कुमार पछताने लगे और मुसल ले जाकर राजा उग्रसेन के समक्ष रख दिया और सारा वृतांत सुनाया|

उनके चेहरे फीके पढ़ गए थे और सभा में बैठे सभी जन भी यह सुन डर गए थे क्योंकी वे जानते थे कि ब्राह्मणो के द्वारा दिया गया श्राप कभी खाली नहीं जाता|

राजा उग्रसेन ने उस मुसल को चुरा चुरा करवाया और उस चुरे को तथा बचे हुए टुकड़े को समुद्र में फेकवा दिया|

लोहे के टुकड़े को एक मछली खा गयी और चुरा लहरों के साथ बह कर समुद्र किनारे आगया और उससे बिना गाँठ की घास उग गयी|

मछली पकड़ने वाले ने उस मछली को पकड़ लिया जिसके पेट में लोहे का टुकड़ा था| जरा नमक व्याध को जब वो लोहे का टुकड़ा मिला, उसने उसे अपने तीर के आगे लगा दिया |

भगवान श्री कृष्ण ने यदुवंशियो के नाश करने हेतु उनकी बुद्धि हर ली और उन्होंने मैरेयक नामक मदिरा का सेवन कर लिया जिससे उन्ही बुद्धि भ्रष्ट हो गयी|

और ये सब आपस में ही लड़ने लगे, लड़ाई ने कब युद्ध का रूप ले लिया पता ही नहीं चला| यदुवंशी एक दूसरे को मारने लगे और जब बाण समाप्त हो गए, धनुष और सभी अस्त्र-शस्त्र टूट गए तो उन्होंने ऐरका नामक घास को उखाड़ना शुरू कर दिया|

यह वही घास थी जो ऋषियों के श्राप से उत्पन्न हुए मुसल के चूर्ण से पैदा हुई थी |

यदुवशियों के हाथ में आते ही वो वज्र के सामान कठोर मुदगरो के रूप में आगया |

यदुवंशियो ने उसी घास से एक दूसरे का संघार कर दिया |

बलराम जी ने भी समुद्रतट पर परमात्मचिन्तन करते हुए अपने मनुष्य शरीर का परित्याग कर दिया|

श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी?


युदुवंशिओ का विनाश और बलराम जी के पदमपद में लीन होने के पश्चात भगवान श्री कृष्ण चतुर्भुज रूप में पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए|

उस समय भगवान अपनी दाहिनी झांग पर बाया पैर रखे थे | प्रभु के पैर का तलवा कमल के सामान चमक रहा था |

जरा नामक बहेलिये ने उस चमक को हिरन की आँख समझ कर अपना बाण निकाला|

यह वही बाण था जिसके आगे मुसल का बचा हुआ टुकड़ा लगा था | जरा ने बाण चला दिया और वो भगवान श्री कृष्ण के पैर में जा लगा|

जब जरा ने देखा कि उसका तीर तो चतुर्भुजी भगवान श्री कृष्ण के पैर में लगा है तो वो विलाप करने लगा और भगवान को बोला हे प्रभु मैं बहुत बड़ा पापी हूँ, मैं निरपराध हिरणो को मारने वाला दुष्ट हूँ कृपया आप मुझे अभी अपने हाथो से मार डालिये ताकि मैं कभी किसी की जान न ले पाऊ| यह कह वो बहुत रोने लगा |

भगवान श्री कृष्ण जरा से बोले हे जरा तुम तनिक भी वियोग मत करो इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है ये तो नियति थी|

त्रेता युग में तुम बाली थे और मैं राम अवतार लिए हुआ था, मैंने तुम्हे धोखे से बाण मारा था इसलिए इस जन्म में तुम्हारा बाण मुझे धोखे से लगा|

प्रभु ये कह कर अपने लोक को प्रस्थान कर गए और श्री कृष्ण के प्रस्थान करते ही समुद्र ने द्वारिका को पूर्णतः डूबा दिया |

श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार किसने किया?


कुछ कथाएँ ऐसी भी है जिनके अनुसार श्री कृष्ण का अंतिम संसार पांडवो के द्वारा किया गया, हालांकि भागवत महापुराण के अनुसार ऐसी कोई कथा नहीं है|

उन लौकिक कथाओ के अनुसार जब पांडवो के द्वारा श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार हुआ था, तब उनका सारा शरीर जल गया था, पर उनका हृदये नहीं जला था| तब पांडवो ने उनका हृदये को जल में प्रवाहित कर दिया था |

बाद में भगवान् का हृदये राजा इन्द्रियम को मिला| राजा इन्द्रियम भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे इसलिए उन्होंने वो हृदये भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में स्थापित कर दिया|

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