श्री कृष्ण ने दुर्योधन की मृत्यु के समय उसे कौनसा रहस्य बताया था?: आज हम जानेंगे दुर्योधन के जीवन से जुड़ा एक ऐसा रहस्य जो स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने उसे उसकी मृत्यु के समय पर बताया था। पर उसे जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि आखिर दुर्योधन कौन था? उसका जीवन कैसा था ? और कौन थे वे व्यक्ति जो कि उसके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे?
दुर्योधन कौन था?
कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों की लड़ाई में दुर्योधन कौरवों का सबसे बड़ा भाई था। दुर्योधन के बारे में कहा जाता है कि वह जिद्दी और अधर्मी होने के साथ-साथ मूर्ख भी था। वह गांधारी और धृतराष्ट्र का पुत्र था और कर्ण को अपना सबसे अच्छा मित्र मानता था।
परंतु वह सलाह मशवरा अपने शकुनि मामा से ही लेता था और अधिकतर उन्हीं की बातें माना करता था। दुर्योधन को महाभारत का खलनायक भी कहा जाता है क्योंकि यह युद्ध उसी के अहंकार और लालच का नतीजा था ।
दुर्योधन के जन्म लेते ही वह रोने के जगह गधे की तरह रोंगने लगा और तुरंत बोलने भी लग गया। इसके अलावा दुर्योधन ने जैसे ही जन्म लिया तो बहुत से अपशगुन होने लगे, जैसे सियार जोर-जोर से रोने लगे, उल्लू शोर मचाने लगे, आसमान में अचानक काले बादल छा गए।
इन घटनाओं को देखते हुए विदुर ने कहा कि यह बालक हस्तिनापुर के विनाश का कारण बनेगा इसीलिए इस बालक को अपनाना नहीं चाहिए, परंतु धृतराष्ट्र और गांधारी ने पुत्र मोह में आकर ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया।
दुर्योधन का जीवन कैसा था ?
परंतु आगे चलकर एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई जब गंधारी भी अपने पुत्र दुर्योधन के विरुद्ध खड़ी हो गई। जब दुर्योधन ने भरी सभा में द्रौपदी का अपमान किया था, तब गांधारी ने उसके इस दुष्कर्म का विरोध किया था। परंतु फिर भी दुर्योधन नहीं माना था। उसका यह आचरण पूरी तरह से धर्म-विरुद्ध था।
दुर्योधन क्रूर और कुटिल तो था ही लेकिन उसके साथ-साथ वह गदा चलाने में भी परंगत हो गया था। उसने अपने मामा शकुनि की चाल के तहत बलराम जी, जो की श्री कृष्ण के बड़े भाई थे उनसे गदा युद्ध की शिक्षा ली थी।
एक बार महर्षि मैत्रेय हस्तिनापुर आए थे और तब उन्होंने कौरवों, विशेषकर दुर्योधन पर यह है आरोप लगाया था कि उसने धोखे से पांडवों को जुए में हराया और वन भेज दिया था । ऐसा कह कर महर्षि ने दुर्योधन को बताया कि पांडवों को कोई हरा नहीं सकता क्योंकि वे बेहद शक्तिशाली हैं।
यह बात सुनकर दुर्योधन क्रोधित हो गया और ऋषिवर के साथ उद्दंड व्यवहार करने लगा। इसी के चलते ऋषिवर ने दुर्योधन को श्राप दे दिया। उसी श्राप के फलस्वरूप महाभारत के 18 दिन तक चले युद्ध के अंत में दुर्योधन और भीम के बीच कुरुक्षेत्र में गदा युद्ध हुआ। इस युद्ध में दुर्योधन की पराजय हुई, जो कि आगे चल कर उसकी मृत्यु का कारण बनी।
इसके अलावा युद्ध की दृष्टि से दुर्योधन की पहली बड़ी गलती यह थी की उसने अश्वथामा के होते हुए भी कर्ण को सेनापति बना दिया था।
अश्वथामा कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे बल्कि स्वयं भगवान शिव के रुद्र अवतार थे और उन्हें अपराजित होने का वरदान प्राप्त था|अश्वत्थामा की ताकत का अंदाजा होते हुए भी दुर्योधन ने अपने प्रिय मित्र को सेनापति बनाया, जो आगे चलकर कौरवों की हार का कारण बना।
श्री कृष्ण ने दुर्योधन की मृत्यु के समय उसे कौनसा रहस्य बताया था?
दुर्योधन की मृत्यु सबसे अंत में हुई थी। यहां ध्यान देने वाली बात यह कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ, तो कुरुक्षेत्र में दुर्योधन मरने की अवस्था में पढ़ा था और अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था।
इसी दौरान भगवान श्री कृष्ण दुर्योधन से मिलने गए। श्री कृष्ण को देखकर दुर्योधन ने अपनी आदत के चलते उन्हें ताने मारने के अंदाज में कुछ बातें कहीं। पहले तो श्री कृष्ण ने बिना कुछ बोले दुर्योधन की पूरी बात सुनी और इसके पश्चात श्री कृष्ण ने दुर्योधन को वह सारी गलतियां याद दिलाई जिनकी वजह से आज उसकी यह हालत थी।
श्री कृष्ण ने उसे कहा कि यदि वह ये गलतियां न करता तो आज युद्ध का परिणाम उसके पक्ष में होता। श्री कृष्ण ने कहा, “दुर्योधन तुमने पाप का रास्ते चुना था और उसी के कारण तुम अपने सभी प्रियजनों समेत मारे गए हो। तुम्हारे कुकर्मों की वजह से ही भीष्म और द्रोणाचार्य भी मारे गए।
कर्ण तुम्हारे स्वभाव का ही अनुसरण करने वाला था इसीलिए युद्ध में वह भी मारा गया। तुमने शकुनी की बातों में आ कर और अपने लालच के चलते पांडवो को उनकी पैतृक संपत्ति और उनका अपना राज्य देने से भी मना कर दिया।
जब भरी सभा में तुम द्रौपदी को घसीटते हुए लाए और उसके साथ दुर्व्यवहार किया, तुम उसी क्षण मृत्य दंड के योग्य हो गए थे।
तो दोस्तों यह थे दुर्योधन के जीवन से जुड़े कुछ रहस्य।
महाभारत से हमें यह समझ आता है कि हमें जीवन में क्या नहीं करना चाहिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
आशा करते हैं हमारी आज की यह प्रस्तुति आपको पसंद आई होगी। नमस्कार ।