श्री कृष्ण ने तोडा सुदर्शन चक्र, सत्यभामा और गरुड़ का घमंड: हिन्दू वेदो तथा पुराणों के अनुसार अहंकार मनुष्य का एक ऐसा शत्रु है, जैसे दीमक एक लकड़ी को अंदर ही अंदर खा जाती है उसी प्रकार अहंकार मानव के धर्म और कर्म का नाश कर देता है|
झूठे समाज में अपने अस्तित्व को बनाने के लिए हम अपने अहंकार को इतना बड़ा लेते है कि वह हमे ही खाने लगता है|
इतना ही नहीं अहम् में कारण हम कितने अपनों को दुखी करते है, जिसका प्रभाव हमारे सामाजिक रिश्तो पर भी पड़ता है|
आज हम आपको बताएँगे कि कैसे भगवान श्री कृष्ण ने सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र का अहंकार तोडा?
लीलाधर श्री कृष्ण की अद्भुद लीलाओ के बारे में तो हम जानते ही है, उन्ही लीलाओ में से एक लीला है कि जब उन्होंने अपनी लीला से भक्तो के घमंड को चकनाचूर कर दिया था|
सुदर्शन चक्र, सत्यभामा और गरुड़, तीनो के मन में अहंकार उत्पन्न होना
एक बार श्री कृष्ण द्वारका में अपनी रानी सत्यभामा के साथ बैठे थे, गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी भगवान की सेवा में लगे हुए थे |
सत्यभामा भगवान केशव की आठ रानियों में से एक रानी थी और सबसे सुन्दर भी थी, इसी कारण उन्हें अपनी सुंदरता पर बहुत घमंड था|
उसी घमंड में सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण से बोली हे नाथ आपने त्रेता युग में श्री राम के रूप में अवतार लिया था और सीता आपकी पत्नी थी|
अब आप मुझे बताये कि क्या सीता मुझसे भी ज्यादा सुन्दर थी ?
तभी गरुड़ जी के मन में यह विचार आया कि भगवान जहाँ भी जाते है वह मुझे संग लेकर जाते है क्यूकि मुझसे तेज़ इस संसार में कोई नहीं उड़ सकता और उन्होंने भगवान से प्रश्न किया कि हे प्रभु इस संसार में मुझसे तेज़ कोई उड़ सकता है क्या?
फिर सुदर्शन चक्र भी यह सोचने लगे कि मैंने इंद्र के वज्र को विफल कर दिया और भगवान के पास जब कोई अस्त्र नहीं बचता तब वह मेरा ही प्रयोग करते है|
और इसी अभिमान में वह भगवान से बोले कि हे प्रभु क्या संसार में मुझसे भी कोई शक्तिशाली है ?
भगवान श्री कृष्ण का सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र का घमंड तोडना
भगवान जानते थे कि इन तीनो के मन में अहंकार उत्पन्न हो गया है और भगवान कभी नहीं चाहते कि उनके भक्तो के मन में अहंकार की उत्पति हो, इसलिए उन्होंने एक ऐसी लीला रची जिससे उन तीनो का अहंकार टूट जाये|
भगवान मुस्कुराते हुए गरुड़ जी से बोले हे गरुड़ तुम हनुमान जी के पास तुरंत जाओ और उन्हें कहना कि श्री राम और माता सीता उनकी द्वारिका में प्रतीक्षा कर रहे है| गरुड़ जी उसी क्षण हनुमान जी को सन्देश देने हेतु उड़कर चले गए|
फिर भगवान सुदर्शन चक्र को बोले कि तुम प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि जबतक मैं तुम्हे आज्ञा ना दू तब तक कोई भी प्रवेश ना कर सके| प्रभु की आज्ञा सुन सुदर्शन प्रवेश द्वार की ओर चले गए|
उसके पश्चात भगवान सत्यभामा से बोले कि हे देवी तुम अब सीता रूप में तैयार हो जाओ और भगवान श्री कृष्ण भी श्रीराम के रूप में सत्यभामा के साथ सिंघासन पर विराजमान हो गए|
गरुड़ जी की हनुमान जी से भेंट
उधर गरुड़ जी हनुमान जी के पास जाकर कहते है कि हे पवन पुत्र, भगवान राम माता सीता संग आपसे मिलने की प्रतीक्षा कर रहे है| आइये आप मेरी पीठ पर बैठ जाइये, मैं शीघ्र अतिशीघ्र आपकी भेंट उनसे करवा दूंगा| हनुमान जी गरुड़ जी की बात सुनने के पश्चात बोले कि हे गरुड़ जी आप चलिए मैं अभी आता हूँ|
गरुड़ जी ने मन में विचार किया कि पता नहीं ये बूढ़ा वानर कब द्वारिका पहुंचेगा, किन्तु मुझे क्या? मैंने तो भगवान का सन्देश पंहुचा ही दिया है|
श्री कृष्ण ने हनुमान जी के द्वारा तोडा सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र का घमंड
ऐसा विचार करके गरुड़ जी उड़कर द्वारिका में श्री कृष्ण के समक्ष पहुंचे किन्तु उन्होंने जो वह देखा वह उन्हें लिए आश्चर्यजनक था|
उन्होंने देखा कि हनुमान जी भगवान श्री कृष्ण के चरणों में उनसे पहले आकर बैठे है|
गरुड़ जी का अहंकार उसी क्षण पूर्ण रूप से टूट गया और वो लज्जा से सर झुका कर खड़े हो गए|
तभी भगवान ने हनुमान जी से प्रश्न कि हे पवनपुत्र तुमने महल के अंदर प्रवेश कैसे किया? क्या तुम्हे अंदर आने से किसी ने रोका नहीं?
यह सुन हनुमान जी ने अपने मुख से सुदर्शन चक्र को बाहर निकला और कहने लगे कि प्रभु ये चक्र मुझे आपसे मिलने से रोक रहा था इसलिए मैंने इसे अपने मुख के रख लिया और आपके दर्शन करने आ गया| इससे सुदर्शन चक्र का सबसे शक्तिशाली होने का घमंड भी पूरी तरह से चकनाचूर हो गया था|
उसके पश्चात हनुमान जी हाथ जोड़ कर भगवान से बोले कि हे प्रभु मैं आपको तो पहचान गया कि आपने तो इस युग में श्री कृष्ण रूप में अवतार लिया है किन्तु मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि आज आपने किस दासी को माता सीता जितना सम्मान दे दिया है कि वह आपके साथ सिंघासन पर माता सीता के स्थान पर विराजमान है |
यह सुन सत्यभामा का अहंकार पूर्ण रूप से नष्ट हो गया|
अहंकार टूटने के बाद सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र तीनो रोते हुए प्रभु के चरणों में गिर गए और भगवान से क्षमा मांगने लगे|
तो इस प्रकार भगवान ने लीला करके अपने भक्तो के अहंकार पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया|