आखिर श्रीमद भागवत कथा में बांस को स्थापित क्यों किया जाता है? 

श्रीमद भागवत कथा में बांस को स्थापित क्यों किया जाता है?

श्रीमद भागवत कथा में बांस को स्थापित क्यों किया जाता है?


कलयुग श्रीमद भागवत में वर्णित गौकर्ण कथा

श्रीमद भागवत पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार तुंगभद्रा नदी के तट पर एक नगर में आत्मदेव नाम का ब्राह्मण रहता था, जो धर्म के मार्ग पर चलने वाला और बहुत शांत स्वभाव का था |

उसकी एक धुंधली नाम की पत्नी थी जो दुष्ट स्वभाव और कलह कलेश करने वाली थी |

आत्मदेव धन से परिपूर्ण था किन्तु उसकी कोई संतान नहीं थी | इसी कारण वह बहुत दुखी रहता था | एक दिन वह इसी दुःख में घर को त्याग कर वन की ओर चला गया और वहाँ एक तालाब के पास बैठ कर विलाप करने लगा |

तभी वहाँ पर एक साधु आगए, जिन्हे देख आत्मदेव उन्हें चरणों में गिर गया और रोने लगा | उसे रोता देख साधु बोले बच्चा तुम क्यों इतना विलाप कर रहे हो ?

आत्मदेव बोला हे महाराज आप तो सिद्ध पुरुष है और मेरी चिंता का कारण भी जानते है |

उसकी बात सुनाने के पश्चात् साधु ने ध्यान लगाकर देखा और बोले आत्मदेव तुम संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हो और इसी कारण विलाप कर रहे हो किन्तु तुम्हारे भाग्य में संतान प्राप्ति का योग नहीं है |

साधु की बात सुन आत्मदेव हठ करने लगा और बोला हे महात्मा! यदि आपने इस समस्या का हल नहीं निकला तो मैं यही अपने प्राण त्याग दूंगा क्युकी बिना संतान का जीवन मेरे किस काम का ?

साधु ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की किन्तु उसने उनकी एक ना मानी और हठ पर अड़ा रहा |

उसकी ऐसी हालत देख साधु को उसपर बहुत दया आगई और उन्होंने उसे एक फल देकर बोले ये फल तुम अपनी पत्नी को खिला देना, इससे तुम्हे संतान प्राप्त हो जाएगी |

आत्मदेव साधु से फल प्राप्त कर बहुत प्रसन्न हो गया और ख़ुशी ख़ुशी अपने घर आगया | और अपनी पत्नी को फल देकर बोला यह फल एक साधु के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ है जिसे खाने से हमे संतान प्राप्त हो जाएगी | ह कह कर वो घर से बाहर चला गया |

धुन्धुली बहुत दुराचारी थी उसने फल तो ले लिया किन्तु उसे खाया नहीं और अपनी सहेली को कहने लगी मैं गर्भ धारण करके इतनी परेशानियों को नहीं सहन कर पाऊँगी और उससे मैं कितनी कमजोर भी हो जाउंगी, जिससे मैं घर का काम भी नहीं कर पाऊँगी | इससे अच्छा तो यह है कि मैं सारे जीवन बाँझ ही रहू | यह सोच कर उसने फल नहीं खाया और वो फल गाय को खिला दिया |

आत्मदेव के पूछने पर उसने झूठ बोल दिया कि उसने फल खा लिया |

कुछ समय पश्चात् धुन्धुली कि बहन उससे मिलने आई और धुन्धुली को विचलित देख उसका कारण पूछने लगी |

धुन्धुली ने अपनी बहन को सारा वृतांत सुनाया, जिसे सुन उसकी बहन ने एक युक्ति निकली और बोली बहन मैं गर्भ से हूँ और मैं तुम्हे अपनी संतान दे दूंगी जिसके बदले में तुम पति को कुछ धन दे देना | मैं उस बालक का पोषण भी कर जाया करुँगी, बस अब तुम्हे कुछ समय के लिए गर्भवती होने का नाटक करना होगा |

बहन की बात सुन धुन्धुली ने ऐसा ही किया |

कुछ समय पश्चात् उसकी बहन के यहाँ पुत्र पैदा हुआ, जिसे उसने धुन्धुली को दे दिया | पुत्र प्राप्त होने के बाद धुन्धुली ने आत्मदेव को यह समाचार दिया जिसे सुन वह बहुत खुश हो गया |

फिर धुंधली अपने पति से बोली मेरे दूध में कमी है और मेरी बहन की संतान उसकी गर्भ में मर गई है तो क्या मैं अपनी संतान के पोषण के लिए उसे बुला लू ?

आत्मदेव से आज्ञा प्राप्त कर उसने अपनी बहन को बुला लिया और वो उस संतान का पोषण करने लगी | उस पुत्र का नाम धुंधकारी रखा गया |

उधर वह गाय जिसको धुंधली ने वो फल खिलाया था, उसकी गर्भ से भी एक मनुष्य रूप वाला पुत्र पैदा हुआ उससे एक तेज़ उत्पन्न हो रहा था | जिसका आत्मदेव ने गौकर्ण नाम रखा |

गौकर्ण बहुत धार्मिक था और बचपन से ही मोह से परे था जबकि धुंधकारी बहुत अधर्मी और पापी था | चोरी करना, लोगो को बुरा भला कहना और वेश्यागामी भी था | पिता का सारा धन उसने वेश्याओं को दे दिया था | यह देख आत्मदेव बहुत दुखी हुआ और दुखी होकर आत्महत्या करने का विचार करने लगा |

पिता को दुखी देख गौकर्ण ने आत्मदेव को समझाया कि उन्हें मोह त्याग कर भगवान का भजन और श्रीमद भागवत के 10वे स्कंध का पाठ करने का ज्ञान दिया |

गौकर्ण की बात सुन आत्मदेव वन में चला गया और भक्ति से श्रीमद भागवत का पाठ करने लगा, जिससे उसे मोक्ष प्राप्त हुआ |

पिता की मृत्यु के पश्चात धुंधकारी अपनी माता पर और ज्यादा अत्याचार करने लगा | अपनी माता से धन लेने के लिए उसे मरता पीटता | उसके अत्याचारो से तंग आकर उसकी माता ने भी कुँए में कूदकर अपनी जान दे दी |

माता पिता की मृत्यु के बाद धुंधकारी 5 वेश्याओं के साथ घर में रहने लगा | धुंधकारी के पास सारा धन ख़त्म होने के बाद वो वेश्याएं उससे और धन की मांग करने लगी |

उन्हें संतुष्ट करने के लिए धुंधकारी ने चोरी कर बहुत धन इक्कठा कर लिया | इतना सारा धन देख कर वेश्याओं ने सलाह बनाई कि राजा एक ना एक दिन तो इसे चोरी के अपराध में पकड़वा कर मृत्यु दंड दे ही देगा, तो क्यों नहीं हम इसे आज ही मार दे |

उन्होंने धुंधकारी को रस्सिओं से बाँध कर उसे फांसी लगा दी और उसके चेहरे पर जलते हुए अंगारे डाल कर उसे मार दिया | और उसी घर में गड्ढा खोद कर दबा दिया |

इस तरह की मृत्यु पाकर वह प्रेत बन गया और वायु भक्षण कर इधर-उधर भटकने लगा |

उधर गौकर्ण को जब भाई की मृत्यु का पता चला तो उसने भाई की मुक्ति के लिए गया जी में जाकर उसके लिए श्राद्ध किया |

कुछ समय पश्चात गौकर्ण अपने नगर वापस आया और रात को अपने घर के आँगन में सो गया | तभी एक विशाल प्रेत उसके आस पास घूमने लगा, जिसे देख गौकर्ण ने पूछा तुम कौन हो ?

प्रेत की आवाज़ निकल नहीं पा रही थी तभी गौकर्ण ने मंत्र पढ़ उसके ऊपर पानी के छींटे मारे | जिसके पश्चात वह बोला मैं तुम्हारा भाई धुंधकारी हूँ और प्रेत योनि में आगया हूँ |

भाई कृपया मुझे इस योनि से मुक्त कराइए |

गौकर्ण ने किया श्रीमद भागवत सप्ताह यज्ञ

धुंधकारी की बात सुन गौकर्ण मन में विचार करने लगा कि यदि गया जी में श्राद करने के बाद भी यह प्रेत योनि में ही है, तो अब इसे कैसे मुक्ति प्राप्त होगी ?

अगली सुबह गौकर्ण ने सूर्यदेव की प्राथना की, जिससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें दर्शन दिए और बोले श्रीमद भागवत का सप्ताह यज्ञ करने से ही ये प्रेत योनि से मुक्त हो सकता है |

सूर्यदेव के वचन सुन गौकर्ण ने भागवत सप्ताह यज्ञ आरम्भ किया | जिसे सुनने के लिए नगरवासी आ गए | धुंधकारी भी बैठने के लिए स्थान देखने लगा लेकिन उसको कही स्थान नहीं दिखा |

तभी उसकी दृष्टि एक 7 गांठो वाले बांस पर पड़ी और वो उसमे जाकर बैठ गया |

पहले दिन का पाठ सम्पूर्ण होने के पश्चात बांस की पहली गाँठ फट गई, इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरी, तीसरे दिन तीसरी और ऐसे करते करते 7वे दिन सातो गांठे फट गई और उसमे से धुंधकारी श्वेत वस्त्र पहने बाहर आया |

बाहर आकर उसने गौकर्ण को प्रणाम किया और बोला भाई तुम्हारे कारण ही मैं प्रेत योनि से मुक्त हो सका हूँ |

तभी भगवान के पार्षद वहाँ विमान लेकर आए और धुंधकारी को उसमे बैठा लिया |

यह देख गौकर्ण बोले हे पार्षदों! तुम केवल धुंधकारी को ही क्यों लेकर जा रहे हो?, धुंधकारी के समान ही इन नगरवासियो ने भी इस कथा का श्रवण किया है तो तुम इन्हे क्यों नहीं लेकर जा रहे ?

यह सुन पार्षद बोले सभी श्रोतागण में से केवल धुंधकारी ही था, जिसने भक्तिपूर्वक ध्यान लगाकर इस कथा का श्रवण किया, इसलिए इसे भगवान प्राप्त हुए |

गौकर्ण ने जब दूसरी बार सावन में श्रीमद भागवत यज्ञ किया, तब सभी नगरवासियो ने ध्यानपूर्वक कथा का श्रवण किया जिससे उन सबको भी भगवान प्राप्त हुए |

श्रीमद भागवत कथा में इसी कारण 7 गांठो वाले बांस को स्थापित किया जाता है |

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