यक्षिणी कौन हैं और कैसे हुई उनकी उत्पत्ति?

हिंदू धर्म के ज्यादातर धर्म ग्रंथों और पुराणों में, यहां तक की रामायण और महाभारत में भी यक्षिणियों का माननीय उल्लेख मिलता है।

यक्षणियां कौन हैं, वे कितनी शक्तिशाली होती हैं, तंत्र साधना में इनका महत्व क्यों है और उनकी साधना करते समय सावधानियां क्यों बरतनी चाहिए? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आज हम आपको बताएँगे।

यक्षिणी कौन हैं और कैसे हुई उनकी उत्पत्ति?

यक्षिणी कौन हैं और कैसे हुई उनकी उत्पत्ति?


यक्षिणी कौन हैं?

यक्षणियां ब्रह्मांड के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करती हैं और उप देव की श्रेणी में आती हैं। अगर इनके स्वामी की बात की जाए तो यह कुबेर जी को अपना स्वामी मानती है और उनकी द्वार पालिकाओं के रूप में चित्रित हैं। चूँकि कलयुग के प्रभाव और मन्त्र किलन से ज्यादातर मंत्र सुप्त हो चुके है और शक्तिया हम तक पहुँच नहीं पा रही है ऐसे में यक्षिणी साधना करना साधक को बेहतर परिणाम दे सकता है ।

तंत्र साधना की विभिन्न ग्रंथों में  36 यक्षणियों का उल्लेख आता है। इनमें से चार यक्षणिया गोपनीय है जिनके बारे में कोई नहीं जानता। बाकी 32 यक्षणियो में से हर एक यक्षिणी का एक विशेष मंत्र होता है जिन्हे सिद्ध करने से सुख, सौभाग्य, ऐश्वर्या, सफलता, वैभव, पराक्रम, संतान का सुख, मनचाही उपलब्धियां मिलती हैं।

इसके अलावा यक्षणियां रत्न आदि का सुख प्रदान करने वाली तथा शत्रु का भय दूर करने वाली होती है। अगर इनके मंत्रों का विधि विधान से उच्चारण किया जाए तो मानव जीवन की समस्त परेशानियां हल हो सकती हैं। लेकिन बिना किसी गुरु या अनुभव के किसी भी मनुष्य का इन्हें सिद्ध करना उचित नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ यक्षिणीया उग्र स्वभाव की होती है, वे आपके मन मस्तिष्क पर हावी भी हो सकती है इसीलिए इनकी सिद्धि से पूर्व अपने इष्ट देव की सिद्धि होना अति आवश्यक है।

जब कोई साधक इनकी साधना कर रहा होता है उसी दौरान यक्षिणीया उस साधक की परीक्षा भी लेती है। इस दौरान अगर कोई गलती हो जाए तो उसी साधक को कष्ट भी झेलना पड़ सकता है इसीलिए इनकी साधना से पूर्व सारी सावधानियां बरतना महत्वपूर्ण है।

यक्षणीयो का वर्णन हिंदू धर्म के अतिरिक्त जैन तथा बौद्ध धर्म में भी बड़े विस्तार से किया गया है।

रामायण में ताड़का एक बहुत ही शक्तिशाली यक्षिणि थी जिसका वध केवल भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के हाथों ही संभव था।

यक्षणियों की उत्पत्ति कैसे हुई?

लेकिन आखिर यक्षणियों की उत्पत्ति कैसे हुई? यक्षणीयों का पहला वर्णन रामायण के उत्तर कांड में मिलता है। आइए इसे एक कथा के माध्यम से समझते हैं।

असल में सृष्टि के निर्माण के समय ब्रह्मा जी ने जल की रक्षा के लिए बहुत से जीव जंतुओं को बनाया और उनसे कहा कि तुम यत्न पूर्वक मनुष्यों की रक्षा करो। ब्रह्मा जी की यह बात सुनकर उनमें से कुछ प्राणियों ने कहा रक्षाम, यह प्राणी आगे चल कर राक्षस बने और जिन्होंने कहा यक्षाम, वे यक्ष बन गए।

यक्षणियां सभी लोकों से जुड़ी होती हैं यानी कि वे पृथ्वी, पाताल, स्वर्ग आदि में भटकती रहती है।

यक्षणियों की साधना क्यों की जाती है?

पर दोस्तों आप भी सोच रहे होंगे कि यक्षणियों की साधना क्यों की जाती है? तो आपको बता दें कि यक्षणियाँ बहुत शक्तिशाली होती हैं। उनके पास अलौकिक शक्तियां होती है और वे हर काम को संपन्न करने की क्षमता रखती है, इसीलिए उन्हें प्रसन्न करना बहुत ही कठिन होता है।

यक्षिणी साधना का महत्व एक साधक के जीवन में बिलकुल वैसे ही है जैसे एक गृहस्थ के जीवन में नारी का। दोस्तों हर किसी की लालसा जीवन में ऐश्वर्य और भोग विलास की होती है लेकिन उसके लिए साधनाओ का गलत मार्ग चुनना आपके लिए नुकसानदायी हो सकता है।

यक्षिणी साधना करने से पहले हमे इनके अलग अलग नामों और विशेषताओं के बारे में भी पता होना चाहिए।

काल कर्णिका यक्षिणी – ऐश्वर्य प्रदान करने वाली होती है, शोभना यक्षिणी- भोग और कामना पूर्ति करने वाली, वटवासिनी यक्षिणी – वस्त्र, अलंकार और दिव्यंजन साधक को प्रदान करती है, हंसी यक्षिणी – पृथ्वी में गड़ा धन दिखाने वाले, अंजन की पूर्ति करने वाली होती है, नटी यक्षिणी – अंजन और दिव्य भोग प्रदान करने वाली, रतिप्रिया यक्षिणी – धन धान्य से भरपूर करने वाली यक्षिणी है, रक्तकम्बला यक्षिणी मृत में प्राण डालने वाली और मूर्तियों को चालयमान करने वाली, विचित्रा यक्षिणी – मनवांछित फल प्रदान करने वाली, और विधुज्जिव्हा यक्षिणी – भूत वर्तमान और भविष्य का ज्ञान बताने वाली होती है ।

आशा करते है यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी| नमस्कार।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top