भगवती योगमाया कौन है: कलयुग एक ऐसा युग है जिसमे मनुष्य मोह माया के जाल में फंसकर अंधा हो जाता है | यह मोह माया ही है, जिसके अधीन होकर मनुष्य धन-दौलत, परिवार इत्यादि के बारे में ही सोचता रहता है और उसकी रूचि धर्म-कर्म में नहीं रहती |
क्या आपने कभी सोचा है कि यह योगमाया कौन है ? और सर्वप्रथम कब प्रकट हुई थी ? आइए जानते है भगवती योगमाया के बारे में विस्तार से |
योगमाया कौन है?
श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा
श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा के अनुसार पूर्वकाल में एक सुरथ नाम के राजा हुआ करते थे, जो कि चैत्रवंश में उत्पन्न हुए थे| समस्त पृथ्वी पर उनका राज हुआ करता था, उसी समय कोलाविध्वंसी नाम के क्षत्रिय से उनकी शत्रुता हो गई |
एक बार उनका युद्ध उनसे हुआ, जिसमे राजा सुरथ की हार हुई और समस्त पृथ्वी से उनका अधिकार समाप्त हो गया | और वह केवल अपने देश के राजा रह गए |
कुछ समय पश्चात शत्रुओं ने उनके देश पर आक्रमण कर दिया | राजा सुरथ का बल क्षीण हो गया था, इसलिए वह चुपचाप वन की ओर चले गए |
वन में उन्हें मेधा मुनि का आश्रम दिखा और वह वही पर रहने लगे | किन्तु अभी भी राजा सुरथ का मोह अपने राज्य से नहीं छूट पा रहा था, वह निरंतर यही सोचते रहते थे कि मेरे राज्य की प्रजा पता नहीं किस हाल में होगी? मेरा राज धन का क्या हुआ होगा ? ऐसा विचार उनके मन में सदैव चलता रहता था |
कुछ समय पश्चात उन्होंने आश्रम में एक वैश्य को देखा और बोले तुम कौन हो ? और यहाँ क्यों आए हो ?
वह वैश्य बोला मैं धनियो के कुल का एक वैश्य हूँ और मेरी स्त्री और पुत्रो ने लोभवश मुझे घर से बाहर निकाल दिया, परन्तु अभी भी मेरा मोह उनमे ही पड़ा है कि क्या मेरे पुत्र और स्त्री कुशल तो होंगे ?
मोह का कारण
दोनों मोह के अधीन होने के कारण मेधा मुनि के समक्ष गए और बोले हे मुनिश्रेष्ठ! मैं अपना सारा राजपाठ हार चूका हूँ फिर भी मेरा मोह उसी राज्य में पड़ा है और इस वैश्य को इसके स्त्री व् पुत्रो ने लोभवश घर से निकाल दिया, इसके बाद यह भी मोह के वशीभूत होकर उनकी चिंता कर रहा है |
हे मुनि श्रेष्ठ!, हममें जो यह मोह पैदा हुआ है यह क्या है?
मुनि बोले भगवती महामाया के प्रभाव से मनुष्य मोह के गहरे गढे में पड़ा रहता है, तुम्हारे मोह का यही कारण है | यही महामाया सम्पूर्ण जगत की सृष्टि करती है और प्रसन्न होने पर मनुष्य को मुक्ति का वरदान भी देती है |
योगमाया कौन है और कैसे हुई उनकी उत्पत्ति?
राजा ने पूछा हे मुनिश्रेष्ठ! जिन्हे आप मोहमाया कह रहे है, वह कौन है ? सबसे पहले वह कब प्रकट हुई थी ? कृप्या हमे विस्तार से बताएं |
मुनि बोले हे राजन! जब सम्पूर्ण जगत जलमग्न था और भगवन विष्णु शेषशैय्या पर योगनिद्रा में सो रहे थे, तब उनके कान की मैल से दो भयंकर मधु और कैटभ नाम के दानव उत्पन्न हुए | वह दोनों बहुत बलवान थे और अपनी उसी शक्ति के अहंकार में किसी से युद्ध करने की लालसा के कारण इधर-उधर देखने लगे |
तभी उनकी दृष्टि भगवान विष्णु की नाभि से प्रकट हुए कमल पर बैठे ब्रह्मा जी पर पड़ी और वह दोनों उनसे युद्ध करने के उद्देश्य से उनकी ओर बढे |
दोनों महाबली दानवों को अपनी ओर आता देख, ब्रह्मा जी ने भगवान की ओर देखा तो वह योगनिद्रा में सो रहे थे |
तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के नेत्रों में निवास करने वाली भगवती योगनिद्रा की स्तुति करनी आरम्भ की और बोले हे भगवती योगनिद्रा!, आप तो महाशक्ति है | जिन्होंने भगवान को निद्रा के अधीन कर दिया |
कृप्या आप मेरी स्तुति से प्रसन्न होकर इन दोनों दानवों मधु और कैटभ को मोह में डाल दे और भगवान विष्णु को शीघ्र जगा दे तथा इन दोनों दानवों को मरने की बुद्धि उनके अंदर उत्पन्न कर दे |
मुनि बोले हे राजन! ब्रह्मा जी की ऐसी स्तुति सुन भगवती योगमाया प्रकट हो गई और योगनिद्रा से मुक्त होकर भगवान विष्णु भी जाग गए | तब भगवान नारायण ने देखा वह दोनों दानव क्रोध से भरे हुए, ब्रह्मा जी को खाने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहे थे | यह देख भगवान ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा |
भगवान और दोनों दानवों का बाहुयुद्ध 5000 वर्षो तक चला |
वह दोनों बहुत बलशाली थे, यह देख भगवती योगमाया ने उन्हें मोह में डाल दिया, जिसके कारण वह भगवान से बोले हम तुम्हारी वीरता से बहुत प्रसन्न है मांगो क्या मांगते हो ?
भगवान बोले यदि तुम मुझसे प्रसन्न हो तो मुझे यह बताओ कि तुम्हारा वध कैसे संभव है ?
वह दोनों मोहमाया के अधीन होने के कारण चारो ओर जल ही जल देखकर बोले जहां सूखा स्थान हो वही हमारा वध होगा | यह सुन भगवान विष्णु ने उन दोनों के मस्तक को अपनी जांघ पर रखकर सुदर्शन चक्र से उनकी गर्दन काट दी |
इस प्रकार ब्रह्मा जी के द्वारा स्तुति करने से भगवती योगमाया सबसे पहले प्रकट हुई |