युधिष्ठिर को स्वर्ग क्यों प्राप्त हुआ?: महाभारत युद्ध में अपने भाइयों का वध करने के पश्चात् पांडव आत्मगलानी से भर गए थे और सब कुछ त्याग कर सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा से उत्तर दिशा की ओर चल पड़े थे |
क्या आप सब जानते है कि केवल युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग में प्रवेश कर पाए थे ?
तो बाकी पांडव और द्रौपदी के साथ मार्ग में ऐसा क्या हुआ था, जिसके कारण वो सशरीर स्वर्ग तक नहीं पहुंच पाए थे?
पांडवो का स्वर्ग की ओर प्रस्थान करना
18 दिनों तक चले भीषण महाभारत युद्ध के समाप्त होने के पश्चात् पांडवो ने 36 वर्षो तक राज पाठ संभाला| कौरव उनके भाई थे और कौरवो का वध करने से उनका मन आत्मग्लानि से भरा हुआ था और उन्हें ये भी आभास होने लगा था कि पृथ्वी पर अब उनका कार्य पूर्ण हो गया है इसलिए भगवान श्री कृष्ण के अपने धाम में लौट जाने के बाद, महर्षि वेद व्यास जी के कहने पर उन्होंने अपना सारा राजपाठ अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को सौप दिया था और साधु वेश में द्रौपदी संग स्वर्ग की ओर चल पड़े थे |
उनके साथ एक कुत्ता भी उनके पीछे पीछे चलने लगा था, पांडव उसको हटाने लगे किन्तु युधिष्ठिर ने उन्हें ये कह कर रोक दिया कि ये मेरा भक्त है इसलिए जहाँ तक ये आना चाहे इसे आने दो|
पांडवो को हुए अग्निदेव के दर्शन
तब पांडव उत्तर दिशा की ओर आगे बढ़ने लगे और कई नदियों, पहाड़ो और समुद्रो से होते हुए, लाल सागर पहुंचे| वहाँ अग्निदेव ने पांडवो को दर्शन दिए और अर्जुन से उनके गांडीव का त्याग करने को कहने लगे|
गांडीव अर्जुन को अतिप्रिय था, किन्तु अग्निदेव के कहने पर अर्जुन ने वहाँ अपने गांडीव और तरकश का त्याग कर दिया|
उसके पश्चात् सभी पांडव, द्रौपदी और कुत्ते के साथ आगे बढ़े|
भगवान शिव ने दिए पांडवो को दर्शन
आगे चलने पर उन्हें केदारनाथ धाम में भगवान शंकर के दर्शन हुए, भगवान भोलेनाथ ने पांडवो को स्वर्ग के रास्ते के बारे में बताया और पांडव भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त कर उस मार्ग में आगे बढ़ने लगे |
आगे उन्होंने बालू से भरे समुद्र को पार किया और उसके पश्चात् वह सुमेरु पर्वत पर पहुंचे|
फिर पांडवो ने बद्रीनाथ धाम के पास सरस्वती नदी को पार किया, किन्तु द्रौपदी के लिए उस नदी को पार करना बहुत कठिन था|
इसलिए भीम ने एक विशाल शिला को उठा कर उस नदी के बीच में रख दिया जिससे द्रौपदी आराम से चलते हुए नदी को पार कर गई|
कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम के पास माण गांव में आज भी वो शिला सरस्वती नदी के बीचो बीच रखी हुई है, जो वर्तमान में भीम पुल के नाम से प्रसिद्ध है |
युधिष्ठिर को ही स्वर्ग क्यों प्राप्त हुआ?
द्रौपदी की स्वर्ग यात्रा पूर्ण न होना
आगे कुछ दुरी तय करने के पश्चात् द्रौपदी लड़खड़ाते हुए पर्वत से नीचे गिर गई, यह देख भीम ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया कि हे भ्राता द्रौपदी ने अपने संपूर्ण जीवन में कभी कोई पाप नहीं किया, फिर उसके साथ ऐसा क्यों हुआ ?
युधिष्ठिर बोले हे भीम द्रौपदी हम पांचो भाइयो में से सबसे ज्यादा प्रेम अर्जुन से करती थी, इसलिए वो स्वर्ग मार्ग में लड़खड़ाते हुए गिर पढ़ी और ऐसा कह युधिष्ठिर बिना द्रौपदी की ओर देखे आगे बढ़ने लगे |
सहदेव की भी स्वर्ग यात्रा पूर्ण न होना
थोड़ा और चलने के बाद सहदेव भी लड़खड़ा कर गिर पड़े, फिर भीम ने युधिष्ठिर से सहदेव के द्वारा किए गए पाप के बारे में पूछा| तब युधिष्ठिर बोले हे भीम सहदेव अपने आपको बहुत विद्वान् समझता था और उसे इस बात का अहंकार भी था कि उसके समान बुद्धिमान और कोई इस पृथ्वी पर नहीं है| उस अहंकार के कारण सहदेव के साथ ऐसा हुआ|
नकुल का स्वर्ग यात्रा में बिछड़ जाना
फिर नकुल मार्ग में गिर पड़े और भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया नकुल को अपने रूप पर बहुत घमंड था, इसलिए वो यह यात्रा पूर्ण नहीं कर पाया |
अर्जुन की स्वर्ग यात्रा पूर्ण न होना
नकुल के गिर जाने के पश्चात् अर्जुन भी गिर पड़े, युधिष्ठिर ने भीम को बताया अर्जुन अपने आपको बहुत बड़ा योद्धा और धनुर्धारी समझाता था और उसे बहुत अभिमान था कि वो एक ही दिन में सभी शत्रुओ का नाश कर देगा, किन्तु ऐसा हुआ नहीं था| यही अभिमान उसकी इस गति का मूल कारण है|
अब युधिष्ठिर भीम और वो कुत्ता आगे की ओर बढ़ने लगे |
भीम का स्वर्ग यात्रा में बिछड़ जाना
कुछ ही दूर चलने के बाद भीम भी लड़खड़ाते हुए गिर पड़े और गिरते हुए बोले भ्राता कृपया मुझे भी बताये कि मैंने ऐसा कोनसा पाप किया था जिससे मेरी ये दशा हुई |
युधिष्ठिर बोले हे भीम तुम बहुत खाते थे और व्यर्थ में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते थे | तुम्हे भी अपने शक्तिशाली होने का बहुत अभिमान था इसलिए तुम्हारी ये दशा हुई |
इंद्रदेव का युधिष्ठिर के समक्ष प्रकट होना
यह कह कर युधिष्ठिर और कुत्ता आगे मार्ग पर बढे| कुछ आगे बढ़ने पर देवराज इन्द्र वहाँ अपने रथ के साथ प्रकट हुए| देवराज इन्द्र युधिष्ठिर को स्वर्ग ले जाने की मंशा से आये थे |
युधिष्ठिर देवराज इन्द्र से निवेदन कर बोले कि हे देवराज मेरे चारो भ्राता और द्रौपदी बीच यात्रा में गिर गए थे, कृपया आप उन्हें भी मेरे साथ स्वर्ग ले चले|
इन्द्र बोले कि वह तो पहले ही अपनी देह त्याग कर स्वर्ग पहुंच चुके है कृपया अब आप मेरे साथ रथ में बैठ कर चले|
फिर युधिष्ठिर इन्द्र देव से बोले कि ये कुत्ता मेरा परम भक्त है, इसने मेरे साथ इस यात्रा को पूर्ण किया है कृपया आप इसे भी स्वर्ग ले चले | किन्तु इन्द्र ने उस कुत्ते को स्वर्ग ले जाने से साफ़ मना कर दिया|
यमराज का अपने असली रूप में प्रकट होना
बार बार इंद्रदेव के समझाने के बाद भी युधिष्ठिर नहीं माने और यह देख वह कुत्ता अपने असली रूप में आगया|
वह कुत्ता और कोई नहीं बल्कि स्वयं यमराज थे|
युधिष्ठिर की शालीनता को देख यमराज बहुत प्रसन हुए और युधिष्ठिर को आर्शीवाद देकर वहाँ से प्रस्थान कर गए |
उसके पश्चात् युधिष्ठिर इंद्रदेव संग उनके रथ पर बैठ कर स्वर्ग आगये|
युधिष्ठिर का स्वर्ग पहुंचना
स्वर्ग पहुंचने के पश्चात यधिष्ठिर ने देखा कि वहाँ देवताओ के साथ दुर्योधन भी विराजमान है| ऐसा देख युधिष्ठिर ने इंद्रदेव से प्रश्न किया कि हे इन्द्रदेव मैं ये समझ नहीं पा रहा हूँ कि दुर्योधन अधर्मी होने के बाद भी स्वर्ग में कैसे विराजमान है |
इन्द्रदेव बोले हे युधिष्ठिर दुर्योधन के सामने उसकी हार थी फिर भी उसने बहादुरी से अपने अंतिम समय तक युद्ध किया, उसी पराक्रम के कारण दुर्योधन को स्वर्ग प्राप्त हुआ |
स्वर्ग में द्रौपदी और अन्य पांडवो का उपस्थित ना होना
स्वर्ग में अपने भाइयो और द्रौपदी को ना पाकर युधिष्ठिर फिर इंद्रदेव से बोले कि हे इंद्रदेव मेरे सभी भ्राता और द्रौपदी कहाँ पर है, कृपया मुझे भी वहाँ ले चले क्योकि मुझे उनसे बेहतर स्थान मिले ऐसा मुझे मंजूर नहीं है |
यह सुन देवराज इन्द्र ने एक देवदूत को युधिष्ठिर को उस लोक में ले जाने को कहा जहाँ उसके भाई और द्रौपदी है |
देवदूत युधिष्ठिर को असिपत्र नामक नरक में ले गए| वहाँ से बहुत बदबू आ रही थी और चारो ओर अँधेरा ही अँधेरा था |
इधर उधर हर जगह लाशें पडी थी और उनके ऊपर लोहे की चोंच वाले बडे बडे गिद्ध घूम रहे थे |
बहुत चलने के बाद युधिष्ठिर ने देवदूत से पूछा कि हे देवदूत हमे अभी और कितना चलना होगा ?
यह सुन देवदूत बोले कि मुझे देवताओ ने यह आदेश दिया था कि जबतक आप वापस आने को ना बोले तबतक मैं आपको इसी लोक में विचरण करता रहू| अगर आप कहे तो हम वापस चले?
कुछ विचार करने के पश्चात् युधिष्ठिर ने देवदूत कि बात मान ली और जैसे ही वो वापस आने के लिए मुड़े तभी कुछ दर्द से भरी हुई आवाज़े आने लगी|
हे भ्राता आपके यहाँ आने से हमे बहुत प्रसन्ता प्राप्त हुई|
युधिष्ठिर ने उनका परिचय पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि वह और कोई नहीं बल्कि उनके भ्राता अर्जुन, भीम,नकुल,सहदेव,कर्ण और द्रौपदी है |
यह सुन युधिष्ठिर भाव विभोर हो गए और देवदूत को बोले कि अगर मेरे यहाँ रहने से मेरे भ्राता और द्रौपदी को प्रसन्ता मिलती है तो मैं यही रहूँगा इसलिए तुम अकेले ही वापस लौट जाओ |
देवदूत युधिष्ठिर से आज्ञा लेकर स्वर्ग आगए और सारा वृतांत देवराज इन्द्र को सुनाया|
देवदूत की बात सुनने के पश्चात् इंद्रदेव सभी देवताओ के साथ युधिष्ठिर के पास गए, देवताओ के वहाँ पहुंचते ही चारो ओर प्रकाश और खुशबू फ़ैल गई |
देवराज इन्द्र युधिष्ठिर को बोले हे युधिष्ठिर तुमने महाभारत युद्ध में जो गुरु द्रौणाचार्य के वध हेतु झूठ बोला था उसी के कारणवश आज तुम्हे इस नरक के दर्शन करने पड़े|
तुम्हे सभी भाई द्रौपदी संग पहले ही स्वर्गलोक में विराजमान है |
यह सुन युधिष्ठिर ने देवनदी गंगा में स्नान कर दिव्य रूप धारण कर लिया और स्वर्ग की ओर चल पड़े|
स्वर्ग पहुंचकर उन्होंने देखा कि अर्जुन भगवान श्री कृष्ण की सेवा में लगे हुए है, युधिष्ठिर को देख श्री कृष्ण और अर्जुन दोनों उनसे गले मिले|
भीम भी वासुदेव के साथ बैठे थे और नकुल और सहदेव भी अश्विनी कुमारों के साथ बैठे थे |
इंद्रदेव द्रौपदी के बारे में बताते हुए युधिष्ठिर को बोले कि द्रौपदी का जन्म माता लक्ष्मी के अंश से हुआ था |