आख़िर क्यों श्री कृष्ण ने जोड़े थे कर्ण के सामने हाथ?

श्री कृष्ण ने जोड़े थे कर्ण के सामने हाथ?: मित्रों आप सब यह तो जानते ही हैं कि महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म के लिए कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। उस युद्ध में कौरवों के पास गुरु द्रोण, भीष्म पितामह, कर्ण, बर्बरीक, अश्वत्थामा जैसे एक से बढ़कर एक महारथी थे।

जबकि पांडवों के पास सिर्फ धनुर्धर अर्जुन और भीम जैसे ही योद्धा थे, फिर भी महाभारत का युद्ध पांडवों ने जीता था। यह संभव हुआ था भगवान श्री कृष्ण की वजह से, क्योंकि उस युद्ध में पांडवों का साथ भगवान श्री कृष्ण दे रहे थे और जब स्वयं नारायण ही किसी के साथ हो तो उसका पराजित होना असंभव है।

जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तब अर्जुन को अपनी धनुर विद्या पर अभिमान हो गया था, तब श्री कृष्ण ने उन्हें सत्य से अवगत कराया और कर्ण के आगे हाथ जोड़े थे।

तो आज हम आपको बताने वाले हैं कि आख़िर क्यों श्री कृष्ण ने जोड़े थे कर्ण के सामने हाथ?

श्री कृष्ण ने जोड़े थे कर्ण के सामने हाथ?

महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन को हुआ अपनी धनुर्विद्या पर अभिमान

मित्रों जब 17 वे दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तब युद्ध शिविर में श्री कृष्ण बैठे हुए थे, तभी वहां अर्जुन आए और युद्ध में अपने द्वारा दिखाए गए पराक्रम की बढ़ाई करते हुए कहने लगे कि जो कर्ण कभी पांडवों के सामने अपना सिर नहीं झुकाता था, मैंने उसका वध कर दिया। जो अपने आप को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहता था वह मेरे सामने नतमस्तक हो गया, और अपना धनुष भी नहीं उठा पाया। मेरे पराक्रम के आगे उसका पराक्रम कुछ भी नहीं था।

अपने प्रिय अर्जुन के मुख से ऐसी बातें सुनकर श्री कृष्ण मन ही मन बहुत दुखी हुए क्योंकि अर्जुन की बातों से अभिमान झलक रहा था। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि युद्ध भूमि में तुम ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लिटाया था, तो इसका मतलब यह हुआ कि तुम भीष्म पितामह से अधिक बलशाली और श्रेष्ठ हो।

अर्जुन ने कहा- “नहीं!! मैं भीष्म पितामह से श्रेष्ठ कभी भी नहीं हो सकता, परंतु मैं कर्ण से श्रेष्ठ अवश्य हूं”।

और उदाहरण दिया कि युद्ध भूमि में मेरे बाणों से कर्ण का रथ 25 से 30 कदम पीछे हट जाता था, लेकिन कर्ण के बाड़ों से मेरा रथ मात्र एक या दो कदम ही पीछे हटता था। तो अब आप ही बताइए कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन हुआ?

आख़िर क्यों श्री कृष्ण ने जोड़े थे कर्ण के सामने हाथ?

श्री कृष्ण ने कहा कि कर्ण तुमसे श्रेष्ठ हुआ। अर्जुन को श्री कृष्ण के मुख से यह बात सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा कि हे माधव!! युद्ध के दौरान भी आप कर्ण की ही प्रशंसा कर रहे थे और अभी-भी आप उसे ही मुझसे श्रेष्ट कह रहे हो, आपने मेरे शौर्य की प्रशंसा नहीं की, ऐसा क्यों?

श्री कृष्ण ने कहा- “तुम्हारे रथ में स्वयं नारायण यानी कि मैं बैठा था और महाबली बजरंगबली भी विराजमान थे, फिर भी कर्ण के तीरों से तुम्हारा रथ दो कदम पीछे हट जाता था”। अगर तुम्हारे रथ में हम दोनों ना होते तो तुम्हारा रथ कर्ण की तीरों से तिनके की भांति बिखर जाता।

और अगर तुम सोचते हो कि कर्ण का वध तुमने किया है तो यह तुम्हारी गलतफहमी है, तुम्हारा अहंकार है, जिस वजह से तुम सत्य नही देख पा रहे हो, क्योंकि कर्ण का वध तुमने नहीं बल्कि परशुराम के दिए गए श्राप की वजह से हुआ है। उन्होंने कर्ण को श्राप दिया था कि तुम मेरे द्वारा सिखाई गई विद्याओं का युद्ध में उपयोग नहीं कर पाओगे। युद्ध के मैदान में जब तुम्हें सबसे ज्यादा जरूरत होगी उसी क्षण तुम अपनी युद्ध कला और मंत्र भूल जाओगे और हुआ भी ऐसा ही।

इतना ही नहीं जब युद्ध प्रारंभ होने वाला था तब मैं कर्ण के पास यह प्रस्ताव लेकर गया था कि वह कौरवों की ओर से अधर्म का युद्ध ना लड़े बल्कि पांडवों की ओर से लड़ कर धर्म का साथ दे, परंतु उसने मेरा प्रस्ताव यह कह कर ठुकरा दिया था कि दुर्योधन मेरा सब से अच्छा मित्र है, उसने हर कदम पर मेरा साथ दिया है। और मेरा धर्म यह है कि मैं अपने मित्र के बुरे समय में उसका साथ दूं।

कर्ण ने कौरवों की तरफ से युद्ध लड़कर दुर्योधन से अपनी मित्रता निभाई और युद्ध के दौरान अपने प्राण निछावर करके धर्म का साथ भी दिया।

अब तुम स्वयं बताओ तुमने कर्ण का वध कैसे किया? और कर्ण ने यह जानते हुए भी अपने कुंडल और अपना कवच दान कर दिया कि उनके बिना वह युद्ध में पराजित हो सकता है, तो तुम ही बताओ तुम कर्ण से श्रेष्ठ कैसे हो सकते हो?

इतना कहकर भगवान श्री कृष्ण कर्ण को याद करते हुए हाथ जोड़कर नतमस्तक हो गए।

आज के लिए इतना ही, आशा करते है आपको हमारी आज की यह पोस्ट पसंद आई होगी | नमस्कार।

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